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देश को बर्दाश्त नहीं इंटर रिलीजन या इंटर कास्ट शादी? इंडिया टुडे के GDB सर्वे में चौंकाने वाले रिजल्ट

India Today Survey: इंडिया टुडे का ये सर्वे इस ओर इशारा करता है कि भले ही देश मॉडर्निज्म की ओर बढ़ रहा हो, लेकिन सोशल और कल्चरल बदलाव की रफ्तार अभी भी धीमी है. समाज में सच पूछ‍िए तो कम्युन‍िकेशन की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा महसूस की जा रही है.

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Representational Image (Chat GPT)
Representational Image (Chat GPT)

भारत में समाज के व्यवहार और नजरिये को समझने के लिए इंडिया टुडे ग्रुप ने हाउ इंडिया लिव्ज (How India Lives) और कैडेंस इंटरनेशनल (Kadence International) के साथ मिलकर देश का पहला सकल घरेलू व्यवहार (Gross Domestic Behavior यानी GBD) सर्वे किया. इस सर्वे में 21 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 98 जिलों में 9,188 लोगों से बातचीत की गई. इस स्टडी के नतीजे वाकई चौंकाने वाले हैं, खासतौर पर जब बात शादी की हो तो उसमें लोगों का नजरिया आम सोच से एकदम अलग ही निकला. 

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खानपान पर पाबंदी: हाउसिंग सोसाइटियों को कितना अधिकार

सर्वे में पूछा गया कि रेजिडेंट के संगठनों या हाउसिंग सोसाइटियों को व्यक्तिगत अपार्टमेंट या सार्वजनिक जगहों पर कुछ प्रकार के भोजन (जैसे मांस या बीफ) पर पाबंदी लगाने का अधिकार है? इस पर 41% लोगों ने इसका समर्थन किया, जबकि 54% ने इसका विरोध किया. भई खाना तो सबके अपने रीजन और पसंद के आधार पर है, इस पर हाउस‍िंग सोसायटी को रोक लगाने का अध‍िकार देने के ख‍िलाफ ज्यादा संख्या में लोग थे.

Gross Domestic Behaviour सर्वे की हर एक डिटेल यहां क्लिक कर पढ़ें

राज्यों के आंकड़ें देखें तो केरल के 88% उत्तरदाताओं ने अपने आसपास के इलाकों में ऐसी किसी भी पाबंदी का विरोध किया, वहीं  उत्तराखंड के 75% उत्तरदाता इस तरह की पाबंदियों के समर्थन में दिखे. यहां यह आंकड़ा ये द‍िखाता है कि उत्तर और दक्षिण में इस विषय पर समाज में बिल्कुल अलग राय हैं. 

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इंटर र‍िल‍िजन शादी को लेकर बंटा भारत 

सर्वे में जब यह सवाल पूछा गया कि अगर पुरुष और महिला अलग-अलग धर्म के हैं और शादी करना चाहते हैं, तो क्या उन्हें इसकी आज़ादी होनी चाहिए? तो इसके जवाब में 61% लोग व‍िरोध में थे वहीं सिर्फ 37% ने इसका समर्थन किया.

यही नहीं, इस मुद्दे पर राज्यों के नजरिए में भी बड़ा अंतर देखा गया. जहां 90% चंडीगढ़ के उत्तरदाताओं ने इंटर र‍िल‍िजन मैर‍िज यानी गैर धर्म में शादी का विरोध किया, वहीं 94% केरल के उत्तरदाता इसे पूरी तरह से समर्थन देने वाले निकले. यह आंकड़ा दर्शाता है कि इस विषय पर समाज की सोच अभी भी साफ तौर पर बंटी हुई है.

इस राज्य को इंटर कास्ट शादी से नहीं पड़ता फर्क, यहां जड़ें अभी भी गहरी 

भारत में जाति व्यवस्था कितनी गहरी जड़ें जमाए हुए है, इसकी एक नजीर सर्वे में मिले नतीजों से साफ झलकती है. जब लोगों से सवाल पूछा गया कि अगर पुरुष और महिला अलग-अलग जाति के हैं और शादी करना चाहते हैं तो क्या उन्हें इसकी आज़ादी होनी चाहिए? तो 56% लोगों ने इसका सीधा-सीधा विरोध किया, जबकि सिर्फ 43% लोगों ने इसका समर्थन किया. इसमें  चंडीगढ़ के 91% उत्तरदाताओं ने इंटर कास्ट मैर‍िज को सपोर्ट किया, जो कि सबसे अधिक है. इसके उलट, उत्तर प्रदेश के 84% उत्तरदाताओं ने इसका विरोध किया. यह बताता है कि उत्तर भारत में जातिगत सोच अभी भी गहरी है, जबकि कुछ इलाकों में बदलाव की बयार बह रही है.

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देश की मांग:  धर्म के नाम पर नौकरी में न हो भेदभाव, UP एकदम उलट

सर्वे में यह भी पूछा गया कि क्या किसी नियोक्ता को धर्म के आधार पर किसी को नौकरी पर न रखने का अधिकार होना चाहिए? इस पर 60% लोगों ने इसे गलत बताया, जबकि 39% ने इसे सही माना. केरल के 88% उत्तरदाताओं ने नौकरी में धर्म के आधार पर भेदभाव का कड़ा विरोध किया, वहीं उत्तर प्रदेश के 51% उत्तरदाताओं ने इसे सही ठहराया. इससे पता चलता है कि कुछ राज्यों में अब भी धर्म को नौकरी के अवसरों में एक निर्णायक कारक माना जाता है.

इस राज्य को छोड़ किसी को अपने पड़ोसी के धर्म से द‍िक्कत नहीं 

सर्वे में पूछा गया कि क्या आप इस बात को लेकर सहज हैं कि आपके गांव या इलाके में दूसरे धर्म के लोग या परिवार आकर रहने लगें? इस पर 70% उत्तरदाताओं ने 'हां' कहा, जबकि 28% ने इसका विरोध किया और 2% ने कोई राय ही नहीं दी. वहीं, अलग-अलग स्टेट के आंकड़ों की बात करें तो पश्चिम बंगाल के 91% उत्तरदाताओं को अपने पड़ोस में रह रहे दूसरे धर्म के लोगों से कोई दिक्कत नहीं है. इस मामले में उत्तराखंड राज्य एकदम ही अलग न‍िकला. यहां के 72% उत्तरदाता इसका विरोध करते दिखे. यह आंकड़ा बताता है कि र‍िल‍िज‍ियस को-एग्जिस्टेंस यानी धार्म‍िक सह अस्त‍ित्व को लेकर समाज में अभी भी विचारधाराओं में अंतर है. 

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विविधता और भेदभाव के आधार पर टॉप 5 अग्रणी राज्य:

केरल- रैंक 1 
तमिलनाडु- रैंक 2 
पश्चिम बंगाल- रैंक 3
महाराष्ट्र- रैंक 4 
चंडीगढ़- रैंक 5

विविधता और भेदभाव के आधार पर टॉप 5 फिसड्डी राज्य:

उत्तर प्रदेश- रैंक 21
मध्य प्रदेश - रैंक 22
उत्तराखंड - रैंक 20
कर्नाटक - रैंक 19
पंजाब - रैंक 18

समाज कितना बदला?

इन आंकड़ों से यह साफ है कि भारत में रहने वालों की सामाजिक सोच कहीं न कहीं अब भी रूढ़ियों से जकड़ी है. दूसरे धर्म या जाति में शादी की बात हो तो अभी भी समाज का एक बड़ा हिस्सा इसमें सहज नहीं है. वैसे बदलाव की बयार भी नजर आती है क्योंकि कुछ राज्यों के आंकड़े दिखाते हैं कि वहां लोगों में इसे लेकर स्वीकार्यता बढ़ी है. इससे कहीं न कहीं उम्मीद की किरण जरूर नजर आती है. इंडिया टुडे का ये सर्वे इस ओर भी इशारा करता है कि भले ही देश मॉडर्निज्म की ओर बढ़ रहा हो, लेकिन सोशल और कल्चरल बदलाव की रफ्तार अभी भी धीमी है. समाज में सच पूछ‍िए तो कम्युन‍िकेशन की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा महसूस की जा रही है.

क्या है एक्सपर्ट की राय 

आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर व समाजशास्त्री प्रो रविंदर कौर कहती हैं कि इस सर्वेक्षण में यह समझने का लक्ष्य रखा गया कि विविधता और भेदभाव के लिहाज से ग्रामीण/शहरी लोगों, पुरुषों और महिलाओं, और विभिन्न राज्यों की सोच क्या कहती है. अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाहों की स्वीकार्यता के मामले में हर जगह रूढ़िवादिता हावी दिखती है. जाति और धर्म के बंधनों को तोड़ने को लेकर महिलाएं थोड़ी अधिक सतर्कता बरतती हैं. खानपान की आदतों के आधार पर भेदभाव के पक्षधर उत्तरदाताओं की संख्या अधिक नहीं दिखी. उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में पुरुष और महिलाएं सबसे अधिक असहिष्णु हैं. शादी-ब्याह के मामले में रूढ़िवादी सोच ने अभी भी अपनी जड़ें जमा रखी हैं.

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