भारत में सामाजिक समावेशिता की स्थिति को लेकर इंडिया टुडे के सकल घरेलू व्यवहार सर्वे ने चौंकाने वाले नतीजे पेश किए हैं, सर्वे के अनुसार, देश भर में 61 प्रतिशत लोग अंतरधार्मिक विवाहों और 56 प्रतिशत लोग अंतर-जाति विवाहों के खिलाफ हैं. कर्नाटक में यह विरोध सबसे ज्यादा है, जहां 94 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अंतरधार्मिक विवाहों को अस्वीकार किया. वहीं, उत्तर प्रदेश में 84 प्रतिशत लोगों ने अंतर-जाति विवाहों का विरोध किया। ये आंकड़े भारत की सामाजिक स्वीकृति में गहरी जड़ें जमाए पूर्वाग्रहों की ओर इशारा करते हैं.
केरल ने कायम की मिसाल
दूसरी ओर, केरल ने समावेशिता के मामले में मिसाल कायम की है. राज्य के उत्तरदाताओं ने न सिर्फ खानपान की पाबंदियों को खारिज किया, बल्कि रोजगार में भेदभाव का भी कड़ा विरोध किया. सर्वे में 88 प्रतिशत केरलवासियों ने कार्यस्थल पर धार्मिक भेदभाव को नकारा, जो इसे देश में सबसे प्रगतिशील राज्य बनाता है. इसके विपरीत, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य सामाजिक रूढ़िवादिता में पिछड़े नजर आए. मध्य प्रदेश सर्वे में सबसे निचले पायदान पर रहा, जहां अंतरधार्मिक गठबंधनों का भारी विरोध देखा गया.
सर्वे में सामने आए पॉजिटिव पहलू
सर्वे में कुछ सकारात्मक पहलू भी सामने आए. देश भर में 70 प्रतिशत लोगों ने पड़ोस में धार्मिक विविधता को स्वीकार किया. पश्चिम बंगाल इस मामले में 91 प्रतिशत के साथ शीर्ष पर रहा, जबकि उत्तराखंड में 72 प्रतिशत लोगों ने इसे अस्वीकार किया. कार्यस्थल पर भी 60 प्रतिशत भारतीयों ने भर्तियों में धार्मिक भेदभाव का विरोध किया. फिर भी, क्षेत्रीय असमानताएं स्पष्ट हैं, जो भारत के सामाजिक ताने-बाने में जटिलता को दर्शाती हैं.
समावेशिता को बढ़ाना जरूरी
ये निष्कर्ष भारत के बहुलतावादी दावों और वास्तविकता के बीच की खाई को उजागर करते हैं. जहां एक तरफ देश अपनी विविधता पर गर्व करता है, वहीं दूसरी ओर अंतरधार्मिक और अंतर-जाति संबंधों के प्रति प्रतिरोध सामाजिक एकता की राह में बड़ी चुनौती बना हुआ है. विशेषज्ञों का कहना है कि ये आंकड़े नीति-निर्माताओं के लिए एक सबक हैं, ताकि समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर प्रभावी कदम उठाए जा सकें.