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चांद पर इंडिया का विनिंग मोमेंट... वो 17 मिनट जब थम गई थीं वैज्ञानिकों की सांसें

तारीख 23 अगस्त 2023... समय शाम के 6 बजकर 4 मिनट...और भारत के चंद्रयान-3 ने चांद पर टचडाउन कर दिया. ये तारीख दुनिया में इतिहास बन गई. भारत के चांद पर पहुंचने के आखिरी 17 मिनट ऐसे थे, जिनको लेकर वैज्ञानिकों की भी सांसें थम गईं. लैंडिंग की प्रक्रिया में इन लम्हों में लैंडर को खुद उतरना होता है. इसरो के पास कोई कमांड नहीं थी. सॉफ्ट लैंडिंग हुई तो पूरा देश जश्न में डूब गया.

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लैंडिंग प्रक्रिया पर नजर रख रहे साइंटिस्ट.
लैंडिंग प्रक्रिया पर नजर रख रहे साइंटिस्ट.

चंद्रयान 3 मिशन (Chandrayaan 3 Mission) की लैंडिंग के आखिरी 17 मिनट सबसे अहम थे. इन्हीं 17 मिनट में चंद्रयान-2 की उम्मीदें टूटी थीं. इस बार इसरो पूरी तैयारी के साथ टेरर ऑफ 17 मिनट के खेल में जीत हासिल कर ली है. खतरनाक लम्हों की बाधाओं को पार करके चंद्रयान 3 चांद पर उतर गया. इसके बाद हिंदुस्तान ने इतिहास रच दिया. पूरी दुनिया में भारत की धूम मच गई.

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चंद्रयान-3 ने चांद पर पहुंचने के लिए 40 दिनों तक सफर किया. इसके बाद लैंडिंग के आखिरी समय को वैज्ञानिक 17 मिनट्स ऑफ टेरर यानी खौफ के 17 मिनट बता रहे थे. इन 17 मिनट में लैंडर खुद काम करता है. इस दौरान इसरो से कोई भी कमांड नहीं दी जाती. लैंडर को सही समय, सही ऊंचाई और सही मात्रा में ईंधन का इस्तेमाल करते हुए लैंडिंग करनी होती है. गलती की कोई भी गुंजाइश नहीं होती. उन 17 मिनट में चार फेज होते हैं, जो बताते हैं कि चंद्रयान कैसे उतरेगा.

इस तरह चांद पर उतरा लैंडर... रफ ब्रेकिंग फेज

चंद्रमा की सतह से 30 किलोमीटर की ऊंचाई से लगातार अपनी गति को नियंत्रित करते हुए विक्रम लैंडर चांद की सतह की तरफ बढ़ रहा था. ये वो समय होता है, जब विक्रम पर इसरो का कोई कंट्रोल नहीं रहता. वो इसरो की तरफ से पहले दिए गए इनपुट के आधार पर खुद फैसले करते हुए चांद की सतह तक पहुंचता है.

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पहले फेज रफ ब्रेकिंग में चंद्रयान की ऊंचाई 30 किलोमीटर से घटकर 7.4 किमी तक आती है. इस फेज में स्पीड 1.68 किमी प्रति सेकेंड तक होनी चाहिए. ग्यारह मिनट के भीतर ये फेज पूरा होता है.

लैंडिंग के समय आखिरी 17 मिनट थे सबसे खतरनाक.

दूसरे फेज में इतनी थी ऊंचाई

दूसरा फेज है- एल्टीट्यूड होल्ड, यहां हमारा चंद्रयान चंद्रमा की सतह से 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई से 6.8 किलोमीटर तक पहुंचता है. हॉरिजॉन्टल स्पीड तब 336 मीटर प्रति सेकेंड होनी चाहिए और ये स्टेज दस सेकेंड का था.

तीसरा फेज है- फाइन ब्रेकिंग

यहां ऊंचाई चंद्रमा से सिर्फ 800 मीटर से 1300 मीटर की रह जाती है. स्पीड बहुत कम, इसीलिए शून्य किमी प्रति घंटा लिखी गई. ये स्टेज बारह सेकेंड का होता है. यहां लैंडर की पोजिशन पूरी तरह से वर्टिकल हो जाती है. विक्रम के सेंसर चालू हो जाते हैं.

चौथे फेज टर्मिनल डिसेंट में हुई लैंडिंग

इसके बाद चौथा फेज आता है टर्मिनल डिसेंट. इस फेज में उंचाई सिर्फ 150 मीटर रह जाती है. वहीं स्पीड तीन मीटर प्रति सेकेंड से लगातार घटती है. यही वो स्टेज है, जिसके लिए दावा किया जा रहा था कि सबकुछ सही रहा तो 73 सेकेंड के भीतर विक्रम लैंडर लैंड कर जाएगा और विक्रम ने ये करके दिखा दिया. लैंडिंग होते ही इसरो के कमांड सेंटर में बैठे एक-एक वैज्ञानिक के चेहरे पर कामयाबी की खुशी दिखने लगी. तालियां बजने लगीं.

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लैंडिंग प्रक्रिया पर नजर रख रहे साइंटिस्ट.

पिछली बार इन नाजुक पलों में क्रैश हो गया था लैंडर

साल 2019 में चंद्रयान-2 को इन्हीं नाजुक पलों में नाकामी मिली थी. तब लैंडर चंद्रमा की सतह पर 2.1 किमी की ऊंचाई तक पहुंच गया था, लेकिन एक छोटी सी तकनीकी गड़बड़ी के कारण क्रैश हो गया.

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इस बार इसरो ने पुख्ता इंतजाम किए गए. जिस तरह से लैंडर विक्रम के सारे कैमरे बिल्कुल सही काम कर रहे थे और उसने अलग-अलग कैमरों से चांद के दक्षिणी ध्रुव की तस्वीरें भेजकर भरोसा दे दिया था कि उसने चांद पर उतरने वाली जगह पर अपनी नजर जमा रखी है.

रूस, जापान और इजरायल भी कर चुका है कोशिश

बीते 4 साल में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश भारत के अलावा रूस, जापान और इजरायल भी कर चुका है. इन सभी को आखिरी पलों में नाकामी मिली, लेकिन इस बार भारत ने कामयाबी हासिल की और दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच गया.

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