आर्मी ने पिछले महीने अपनी तरह का पहला बड़ा अभ्यास किया. यह अभ्यास 25-29 जुलाई तक किया गया था. इसका उद्देश्य उपग्रह संचार प्रणाली को बेहतर बनाना और यहां काम करने वाले कर्मियों को ट्रेनिंग देना था.
इस अभ्यास के जरिए सेना ने पश्चिम में लक्षद्वीप द्वीप से लेकर पूर्व में अंडमान तक और उत्तर में लद्दाख और कश्मीर के ऊंचे इलाकों से लेकर दक्षिणी छोर तक फैली अपनी अंतरिक्ष डोमेन क्षमताओं को बढ़ावा दिया. अंतरिक्ष और जमीनी क्षेत्रों के लिए जिम्मेदार एजेंसियों के साथ-साथ इसरो ने भी इस अभ्यास में हिस्सा लिया था.
280 प्लेटफार्मों की जांच की गई
सेना के एक अधिकारी ने बताया, ''फील्ड फॉर्मेशन के दौरान 280 से ज्यादा प्लेटफार्मों की जांच की गई. कर्मियों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उन्हें ऐसे हालात का सामना करने की ट्रेनिंग दी गई, जहां स्थानीय मीडिया भी काम नहीं करती है.
इसरो के उपग्रहों को किया इस्तेमाल
सूत्रों के मुताबिक आर्मी ने अभ्यास के दौरान इसरो के कई ऐसे उपग्रहों का इस्तेमाल किया, जो कई तरह के सैकड़ों संचार टर्मिनलों को जोड़ती है. इन टर्मिनलों में स्टैटिक टर्मिनल, ट्रांसपोर्टेबल व्हीकल माउंटेड टर्मिनल, मैन-पोर्टेबल और स्मॉल फॉर्म फैक्टर मैन-पैक टर्मिनल शामिल हैं.
आर्मी के पास नहीं अपना सैटेलाइट
आर्मी अभी कुछ सुदूर सीमावर्ती क्षेत्रों में उपग्रह संचार नेटवर्क का उपयोग कर रही है, जबकि नौसेना और वायु सेना के पास खुद का एक उपग्रह है. आर्मी के पास 2025 तक खुद का उपग्रह हो सकता है. रक्षा अधिग्रहण परिषद ने इस साल मार्च में आर्मी के लिए उपग्रह जीसैट -7 बी के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है.
पहला स्वदेशी मल्दीबैंड उपग्रह होगा
सेना के लिए उपग्रह को खास तरीके से डिजाइन किया गया है, जो उन्नत सुरक्षा विशेषताओं के साथ अपनी तरह का पहला स्वदेशी मल्टीबैंड उपग्रह है. यह न केवल जमीन पर तैनात सैनिकों के लिए सामरिक संचार की जरूरतों को पूरा करेगा बल्कि दूर से संचालित विमान, वायु रक्षा हथियारों और अन्य अहम मिशन व फायर सपोर्ट प्लेटफार्मों के लिए भी मददगार होगा.
सेना के अधिकारी ने बताया,'' हम इस प्रकार के संचार उपग्रह के हर पहलू की ट्रेनिंग अपने कर्मियों को दे रहे हैं. वहीं इस दिशा में हमने हाल ही में मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन एंड इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स को उपग्रह प्रौद्योगिकी की ट्रेनिंग देने का अनुरोध किया है.