दुनियाभर में आज अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जा रहा है. हर साल 29 जुलाई को यह दिन बाघों की लगातार घटती आबादी पर नियंत्रण करने और लोगों को जागरूक करने के लिए इसे मनाया जाता है. भारत के लिए यह दिन इसलिए भी खास होता है क्योंकि टाइगर यानी बाघ देश का राष्ट्रीय पशु भी है. एक समय ऐसा था जब देश में बाघों की संख्या घटकर महज 268 रह गई थी. हालांकि सरकारों के तमाम प्रयासों का ही परिणाम है कि 2022 की गणना में देश में बाघों की संख्या अब 3167 हो चुकी है, जो कि वैश्विक संख्या का लगभग 75 प्रतिशत है. इससे पहले 2018 में ये संख्या 2967 थी. यानी पिछले चार सालों में 200 बाघ बढ़े हैं.
दरअसल, भारत में करीब 50 साल पहले 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई थी. तब देश में बाघों की संख्या केवल 268 थी. इस प्रोजेक्ट का ही परिणाम है कि देश में इस खूबसूरत दुलर्भ जीव की संख्या तेजी से बढ़ रही है. एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, 1973 में 18,278 वर्ग किमी जमीन पर 9 टाइगर रिजर्व की प्रारंभिक संख्या बढ़कर अब 53 हो गई है, जो कुल 75,796.83 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हैं. ये देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.3 प्रतिशत है. आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में 2018 में संख्या 2967, 2014 में 2226, 2010 में 1706 तो 2006 में 1411 थी.
मध्य प्रदेश में हैं सबसे ज्यादा बाघ
मध्य प्रदेश इस दौड़ में सबसे आगे है और इसका टाइगर स्टेट का दर्जा बरकरार है. कारण, 2022 की गणना में एमपी में 785 बाघ पाए गए हैं, जो देश के किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा है. इसके बाद लिस्ट में कर्नाटक 563 बाघों के साथ दूसरे स्थान पर, उत्तराखंड 560 के साथ तीसरे और महाराष्ट्र 444 बाघों के साथ चौथे स्थान पर शामिल हैं. दरअसल, मध्य प्रदेश में पिछले 4 वर्षों में बाघों की संख्या में बड़ा उछाल आया है. 2018 की गणना में 526 बाघ पाए गए थे. यानी चार वर्षों में 259 बाघ बढ़ गए हैं. सबसे ज्यादा बाघ बांधवगढ़ और कान्हा नेशनल पार्क में हैं.
सीएम शिवराज ने लोगों को दी बधाई
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के लोगों को बधाई देते हुए कहा कि मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या 2018 में 526 से बढ़कर 2022 में 785 हो गई. उन्होंने कहा, "यह बहुत खुशी की बात है कि हमारे राज्य के लोगों के सहयोग और वन विभाग के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप, चार वर्षों में हमारे राज्य में बाघों की संख्या 526 से बढ़कर 785 हो गई है.".
इस सफलता के लिए राज्य के लोगों को बधाई देते हुए उन्होंने आगे कहा, "आइए हम सब मिलकर अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर भावी पीढ़ियों के लिए प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लें."
मध्य प्रदेश और कर्नाटक में रही है नंबर वन की दौड़
बता दें कि 2006 में राज्य में बाघों की संख्या 300 थी, लेकिन 2010 में कर्नाटक 300 के आंकड़े के साथ सबसे अधिक बाघों के मामले में नंबर एक पर आ गया था. जबकि मध्य प्रदेश में संख्या 300 के मुकाबले घटकर 257 रह गई थी. 2014 में, कर्नाटक में 406 बाघ दर्ज किए गए, जबकि एमपी में 300 बाघ पाए गए थे. लेकिन इसके बाद मध्य प्रदेश में बाघों की आबादी तेजी बढ़ी और 2018 में कर्नाटक में 524 के मुकाबले 526 बड़ी बिल्लियों के साथ शीर्ष स्थान हासिल कर लिया.
टाइगर कॉरिडोर में लैंड यूज चेंज कराना आसान नहीं
प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्षों पर एक सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने यह सुनिश्चित किया है कि टाइगर कोरिडॉर में किसी भी तरह से लैंड यूज बदलने से इसमें किसी भी तरह की बाधा प्रभाव की संभावना हो सकती है. इसके लिए राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड से अनुमोदन की आवश्यकता होती है. लेकिन कई बाधाएं अब भी बनी हुई हैं.
उदाहरण के लिए, केन-बेतवा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट को दिसंबर 2021 में केंद्र द्वारा मंजूरी मिलने से बहुत पहले ही पर्यावरण कार्यकर्ताओं और संगठनों के गुस्से का सामना करना पड़ा है. कारण, जल संसाधन मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव के मुताबिक, दावा किया गया है कि प्रोजेक्ट के एक हिस्से के रूप में बनाया गया दौधन बांध पन्ना टाइगर रिजर्व की 4,141 हेक्टेयर भूमि पानी से डूब जाएगी.
आखिर क्या है प्रोजेक्ट टाइगर?
बाघों की घटती आबादी को संरक्षण देने के लिए 1 अप्रैल 1973 को भारत में प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया गया. शुरुआत में इस योजना में 18,278 वर्ग किमी में फैले 9 टाइगर रिजर्व को शामिल किया गया. पिछले 50 सालों में इस योजना का विस्तार हुआ और आज इनकी संख्या बढ़कर 53 हो गई है. ये 53 टाइगर रिजर्व 75,500 वर्ग किमी में फैले हैं. इंदिरा गांधी सरकार में शुरू हुए प्रोजेक्ट टाइगर के पहले निदेशक का जिम्मा कैलाश सांखला ने संभाला था. कैलाश को 'द टाइगर मैन ऑफ इंडिया' भी कहा जाता है. बाघों के प्रति उनके समर्पण को देखते हुए ही उन्हें प्रोजेक्ट टाइगर का पहला निदेशक बनाया गया था.
(इनपुट: रवीश पाल)