भारत-चीन सीमा पर डोकलाम, गलवान और तवांग घाटी में चीनी पीएलए आर्मी से हुई खूनी झड़पों में एक बात सामान्य थी. चीन के सैनिक लाठी-डंडे, बेसबॉल या कंटीले तारों से बंधे डंडों से हमला करते आए हैं. उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब देने के लिए ITBP ने अपने जवानों को अन-आर्म्ड क्लोज कॉम्बैट की ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी है. ताकि बिना हथियारों के भी हमारे जवान चीनी सैनिकों को अपने फौलादी मुक्के या किक से चित कर सकें.
अब अगर चीनी सैनिक लाठी-डंडों से लैस होकर हमारे जवानों को उकसाते हैं. या भारतीय जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं तो आईटीबीपी के जवान उनके ईंट का जवाब पत्थर से देंगे. ये ट्रेनिंग आईटीबीपी के पंचकूला के भानु स्थित बेसिक ट्रेनिंग सेंटर में चल रही है. आईटीबीपी ने पिछले 2 साल में करीब 3500 जवानों को ट्रेंड करके चीन सीमा पर तैनात किया है.
यह ट्रेनिंग 16 हफ्ते की होती है. हर साल ट्रेनिंग में 15 से 20 नए मूव शामिल किए जाते हैं. आईटीबीपी की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा जवान इस तरह के अन-ऑर्म्ड कॉम्बैट ट्रेनिंग में ट्रेंड हों. इस प्रोग्राम में 35 साल तक के युवाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है. ट्रेनिंग में खासतौर पर बिना गोली चलाए जापानी और इजरायली टेक्निक से जूडो-कराटे, कुंगफू, कोरोमा समेत अन्य कई तरह की युद्धकलाएं सिखाई जा रही है.
चीनी सैनिकों के क्रूर हमले जैसी परिस्थितियों से निपटने के लिए आईटीबीपी ने अन-आर्म्ड कॉम्बैट रणनीति बनाई है. ट्रेनिंग के लिए चीन जैसे हथियार बनाए गए हैं. सर्दियों में कैसे विपरीत परिस्थितियों में इन चीनी सैनिकों से जंग लड़नी है, वो भी बताया जा रहा है.
आईटीबीपी के आईजी ईश्वर सिंह दुहन ने बताया कि निहत्थे युद्ध लड़ने की नई तकनीक में रक्षात्मक और आक्रामक दोनों मूव्स शामिल हैं. उन्होंने बताया कि पिछले साल जवानों के लिए यह मॉड्यूल लाया गया था. LAC के साथ कुछ सबसे कठिन चौकियों में तैनात सैनिकों की शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए यह ट्रेनिंग मॉड्यूल बनाया गया है. अपने जवानों को दुश्मन की शैली में जवाब देने के लिए तैयार किया जा रहा है.