यूक्रेन संघर्ष के बाद मिडिल ईस्ट के बड़े तेल उत्पादक देशों ने भारत की तुलना में यूरोपीय देशों को अधिक तरजीह दी. मिडिल ईस्ट के देश अधिक कीमतों पर यूरोप के देशों को तेल बेच रहे थे. लेकिन हम ऐसा करने में सक्षम नहीं थे. ऐसे में भारत को अधिक छूट पर रूस से कच्चा तेल मिल रहा था और हमने उसे खरीदना शुरू किया. विदेश मंत्री जयशंकर ने जर्मनी के एक अखाबर को दिए इंटरव्यू में ये बातें कही.
जयशंकर ने कहा कि रूस और यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए भारत मध्यस्थ की भूमिका निभाने किए तैयार था. लेकिन भारत का हमेशा से विश्वास था कि उसे इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए खुद से पहल नहीं करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि भारत उम्मीद नहीं करता कि चीन को लेकर यूरोप की वही राय हो, जो भारत की चीन को लेकर है. इसी तरह यूरोप को भी समझना चाहिए कि रूस को लेकर भारत का वो रुख नहीं हो सकता, जो रूस को लेकर यूरोप का है.
जयशंकर ने कहा कि रूस के साथ भारत के बहुत ही स्थिर और दोस्ताना संबंध हैं और रूस ने कभी भी हमारे हितों को नुकसान नहीं पहुंचाया. जबकि दूसरी तरफ हमारे चीन के साथ राजनैतिक और सैन्य तौर पर अधिक जटिल संबंध हैं.
रूस से कच्चा तेल खरीदना सही फैसला
जयशंकर ने कहा कि रूस से कच्चा तेल खरीदना बिल्कुल सही फैसला है. जब यूक्रेन में युद्ध शुरू हुआ था तो मिडिल ईस्ट के देशों ने यूरोप के देशों को प्राथमिकता दी. क्योंकि यूरोप के देश तेल के लिए अधिक कीमत दे रहे थे. हमारे पास ऐसे में क्या विकल्प था? या तो हमें तेल नहीं मिलता क्योंकि सारा तेल यूरोप के देश खरीद रहे थे या फिर हम अधिक कीमतों पर तेल खरीदते क्योंकि यूरोप पहले से ही बहुत अधिक कीमत पर तेल खरीद रहा था.
उन्होंने कहा कि ऐसे में भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीद कर बाजार में तेल की कीमतों को स्थिर करने का काम किया है.
बता दें कि यूक्रेन युद्ध के बीच रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर भारत को कई बार आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. लेकिन इस बार भी जयशंकर ने भारत के इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि हमारा रूस से तेल खरीदना हमारा फैसला है. इसे लेकर दूसरे देशों को चिंता नहीं करनी चाहिए.
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत, रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना चाहता है, लेकिन यह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को भी उतना ही महत्व देता है. भारत दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध रखने में सक्षम है.