देश में मुस्लिम समुदाय के सामने राजनीतिक-सामाजिक और धार्मिक चुनौतियों पर मुसलमानों की बड़ी संस्था जमीयत उलेमा-ए हिंद देवबंद में बड़ा सम्मेलन कर रही है. इस सम्मेलन में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द से जुड़े हुए 5000 मौलाना और मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल हो रहे हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने-माने इस्लामी विद्वान मौलाना महमूद मदनी कर रहे हैं.
जमीयत उलेमा-ए हिंद मुसलमानों का 100 साल पुराना संगठन है. जमीयत मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन होने का दावा करता है. इसके एजेंडे में मुसलमानों के राजनीतिक-सामाजिक और धार्मिक मुद्दे रहते हैं.
जमीयत उलेमा-ए हिंद इस्लाम से जुड़ी देवबंदी विचारधारा को मानता है. देवबंद की स्थापना वर्ष 1919 में तत्कालीन इस्लामिक विद्धानों ने की थी. इनमें अब्दुल बारी फिरंगी महली, किफायुतल्लाह देहलवी, मुहम्मद इब्राहिम मीर सियालकोटी और सनाउल्लाह अमृतसरी थे.
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अंग्रेजी राज में जमीयत कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर खिलाफत आंदोलन में शामिल हुआ था. इसके अलावा इसने देश के बंटवारे का भी विरोध किया और भारत की संयुक्त सांस्कृतिक विरासत की पैरवी की. हालांकि देश के बंटवारे के दौरान इस स्टैंड की वजह से जमीयत में बंटवारा हो गया और जमीयत उलेमा ए इस्लाम नाम का एक नया संगठन बना जो पाकिस्तान बनने का समर्थन कर रहा था.
जमीयत उलेमा-ए हिंद का विजन इस्लामिक मान्यताओं, पहचान की रक्षा करना, इस्लाम की शिक्षा को बढ़ावा देना है. इसके अलावा ये संगठन मुसलमानों के इबादतगाहों और इस्लामिक धरोहरों की भी रक्षा करता है.
जमीयत का मानना है कि इस्लाम विश्व बंधुत्व और शांति की प्रेरणा देता है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद आतंकवाद और अतिवाद की सभी रुपों में कड़ी आलोचना करता है. जमीयत का मानना है कि भारत में सभी नागरिकों को बराबर अधिकार प्राप्त है और सभी के अधिकार और कर्तव्य संविधान से बंधे हुए हैं.
जमीयत उलेमा-ए हिंद मुसलमानों के नागरिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकारों को भी संरक्षित करने का काम करता है. इसके अलावा जमीयत मुस्लिम समाज में जरूरी शैक्षणिक और सामाजिक सुधार को भी बढ़ावा देता है. जमीयत मुस्लिम समुदाय के लोगों को अलग अलग कानूनी मुद्दों पर मदद मुहैया कराता है.
हाल ही में खरगोन हिंसा और दिल्ली के जहांगीरपुरी में जब बुलडोजर की कार्रवाई की गई तो जमीयत ने इसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जमीयत ने दावा किया कि मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है. इससे पहले असम एनआरसी के खिलाफ भी जमीयत कोर्ट तक जा चुका है.