हर तरफ गम है.. गुस्सा है... तो गर्व भी है.. कोकरनाग में शहीद हुए जम्मू कश्मीर पुलिस के जांबाज DSP हुमायूं भट्ट का बडगाम हुमहामा में जनाजा निकला तो लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. क्या बुजुर्ग और क्या जवान. हर शख्स शहीद डीएसपी हुमायूं भट्ट के जनाजे को कंधा देकर मानो वो उन्हें ये अहसास कराना चाहता था कि वतन की सुरक्षा का बोझ कितना बड़ा होता है. जांबाज हुमायूं भट्ट अवाम की सुरक्षा का बोझ अपने सीने पर लेकर धरती मां के अंतस में समा गए.
हुमायूं भट्ट को ये पता है कि उन्होंने जिस कर्तव्य पथ पर चलकर अलविदा कहा है वो उनके परिवार के लिए फख्र का हिस्सा है. आधी रात को दुआओं के लिए उठे हजारों हाथ और फातिहा पढ़ते लोग इस बात की तस्दीक हैं. शहीद डीएसपी हुमायूं भट्ट का पार्थिव शरीर बीती रात जिस वक्त बडगाम में उनके घर लाया गया तो माहौल बेहद गमगीन हो उठा.
परिजनों को उनकी शहादत पर फख्र था, लेकिन जांबाज लाड़ला इस तरह अचानक रुखसत हो जाएगा, इसका अहसास नहीं था. घर की महिलाएं बिलख उठीं, उनके आंसू संभाले नहीं जा रहे थे. आतंकियों की कायरता पर हर आंख नम थी, लेकिन लाड़ले की जांबाजी पर सिर फख्र से ऊंचा था.
डीएसपी हुमायूं को बडगाम में किया गया सुपुर्द-ए-खाक
डीएसपी हुमायूं भट्ट के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है. डीएसपी को बुधवार शाम श्रीनगर के जिला पुलिस लाइन में पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई. जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शहीद हुमायूं भट्ट को श्रद्धांजलि दी.
इस दौरान पूर्व आईजी गुलाम हसन भट्ट ने अपने शहीद बेटे हुमायूं के पार्थिव शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की. इस दृश्य ने सबको झकझोर कर रख दिया. इसके बाद हुमायूं भट्ट के पार्थिव शरीर को उनके आवास पर लाया गया, जहां शहीद बेटे को देखकर चीख पुकार मच गई. बडगाम में डीएसपी हुमायूं के पार्थिव शरीर को सुपुर्द-ए-खाक किया गया.
दो साल पहले मेरठ से जम्मू में हुई थी मेजर आशीष की पोस्टिंग
शहीद मेजर आशीष का पार्थिव शरीर पानीपत पहुंच गया है. पैतृक गांव बिंझौल में उनके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही है. उधर घर में शव पहुंचते ही कोहराम मच गया. बुधवार को पति के शहीद होने की खबर के बाद से पत्नी शोक में डूबी हैं. भाई की मौत के गम में रोते-रोते बहनें बेहोश हुई जा रही हैं. एक मासूम बेटी फफक-फफक कर रो रही है. मेजर आशीष 3 बहनों के इकलौते भाई थे. तीनों बहनें शादीशुदा हैं.
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मेजर आशीष के पिता लालचंद नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (NFL) में क्लर्क के पद पर नौकरी करते थे. दो साल पहले ही वह रिटायर्ड हुए हैं, जबकि मां गृहिणी हैं. परिजनों ने बताया कि करीब 9 साल पहले जींद से आशीष की शादी हुई थी. पत्नी ज्योति गृहिणी हैं और पांच साल की बेटी वामिका स्कूल में पढ़ती है. मेजर आशीष की 2 साल पहले ही मेरठ से जम्मू में पोस्टिंग हुई थी.
साल 2013 में आशीष ने पहले ही प्रयास में एसएसबी की परीक्षा पास की और सिख रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट बने. उनको इसी साल 11 अगस्त को सेना मेडल से सम्मानित भी किया गया था.
कर्नल मनप्रीत सिंह के घर पर पसरा मातम, सुनाई पड़ रही चीत्कार
वहीं अनंतनाग में शहीद हुए कर्नल मनप्रीत सिंह के घर पंचकूला में सन्नाटा पसरा है. किसी को समझ नहीं आ रहा कि ये क्या हो गया. पत्नी को काफी वक्त तक बताया नहीं गया कि मेजर साहब नहीं रहे. किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि ये खबर उन्हें कैसे दी जाए.
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घर के चप्पे-चप्पे से एक परिवार का चीत्कार सुनाई पड़ रही है. घर के एक कमरे में मां-बहनें दहाड़ मार रही हैं तो दूसरे हिस्से में परिवार के बुजुर्ग-जवान दिल पर पत्थर रखकर किसी तरह अपने गमों को दबाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं. इस घर के लाल ने अपने लहू से बहादुरी की एक नई कहानी लिखी है. कल जब अनंतनाग के कोकरनाग गांव में आतंकियों को दबोचने का ऑपरेशन चल रहा था तो कर्नल मनप्रीत सिंह सबसे आगे खड़े थे.
कर्नल मनप्रीत का करियर जांबाजी की कहानियों से भरा है
कर्नल मनप्रीत 17 साल से सेना की सेवा में थे. राष्ट्रीय राइफल्स की यूनिट के इंचार्ज थे. उन्हें सेना पदक मिल चुका था. कर्नल मनप्रीत ने अनंतनाग में शौर्य की नई गाथा लिखी है, लेकिन उनका परिवार अब तन्हा रह गया है. उनकी पत्नी हरियाणा के सरकारी स्कूल में पढ़ाती हैं. छह साल का उनका बेटा और 2 साल की उनकी बेटी अब पिता के साए के बिना ही रहेंगे. इसके जिम्मेदार वो दहशतगर्द हैं, जिन्हें इस दुस्साहस की कीमत जरूर चुकानी पड़ेगी.
अनंतनाग के घने जंगलों वाले इलाके में आतंकियों से हुई मुठभेड़
अनंतनाग का वो इलाका घने जंगलों वाला था. आतंकी ऊंचाई पर छिपे थे, ऊपर से फायरिंग कर रहे थे. कर्नल मनप्रीत सिंह की टीम नीचे से ऊपर की तरफ बढ़ रही थी. आतंकियों ने झाड़ियों की तरफ से गोलियां झोंक दीं. इस दौरान कमांडिंग अफसर मनप्रीत सबसे आगे रहे. गोलियों की बौछार इतनी तेज थी कि कर्नल मनप्रीत मौके पर शहीद हो गए. उनके पार्थिव शरीर तक उनकी टीम को पहुंचना भी मुश्किल हो गया, क्योंकि वो सीधी फायरिंग लाइन में थे. कर्नल मनप्रीत ने वतन पर खुद को कुर्बान कर दिया. अब अनंतनाग से सैकड़ों किलोमीटर दूर न्य़ू चंडीगढ़ में उनके घर में आंसुओं का सैलाब बह रहा है.