जम्मू-कश्मीर में इस साल विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है. चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर की विधानसभा सीटों का परिसीमन किया जाना है. परिसीमन आयोग ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार कर ली है, जिसे अभी सरकार को सौंपना बाकी है. इसी बीच कश्मीरी पंडितों ने एक बार फिर से परिसीमन आयोग के सामने अपने लिए एक 'फ्लोटिंग सीट' को रिजर्व रखने की मांग की है.
अभी परिसीमन आयोग की जो ड्राफ्ट रिपोर्ट आई है, उसमें जम्मू में 6 और कश्मीर घाटी में 1 विधानसभा सीट बढ़ाने की बात कही गई है. कश्मीरी पंडितों के लिए कोई अलग से विधानसभा सीट को आरक्षित रखने की बात नहीं है.
पिछले साल भी कश्मीरी पंडितों ने परिसीमन आयोग से अपने लिए एक अलग से 'फ्लोटिंग सीट' रखने की मांग की थी. अब एक बार से ये मांग की जा रही है. कश्मीरी पंडित इसके लिए सिक्किम का उदाहरण देते हैं.
क्या होती है फ्लोटिंग सीट?
फ्लोटिंग सीट माने किसी खास समुदाय के लिए कोई विधानसभा सीट आरक्षित कर देना. यहां से सिर्फ उसी समुदाय के लोग चुनाव लड़ सकते हैं और उसी समुदाय के लोग ही वोटिंग कर सकते हैं. अगर कश्मीरी पंडितों के लिए फ्लोटिंग सीट बन जाती है, तो इस सीट पर सिर्फ कश्मीरी पंडित ही चुनाव लड़ सकते हैं और वोट भी कश्मीरी पंडित ही डाल सकते हैं. ऐसी सीट पर और किसी समुदाय को वोटिंग करने या चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं होती.
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सिक्किम का उदाहरण क्यों?
सिक्किम में एक विधानसभा सीट है सांघा. ये देश की एकमात्र फ्लोटिंग सीट है. ये सीट बौद्ध भिक्षुओं के लिए आरक्षित है. यहां से सिर्फ बौद्ध भिक्षु ही चुनाव लड़ सकते हैं और वही वोट भी डाल सकते हैं.
बौद्ध मठ संघों की मांग के बाद 1958 में इस सीट को बनाया गया था. 1975 में जब सिक्किम अलग राज्य बना, तो भी ये सीट बनी रही. अभी यहां से सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की सोनम लामा विधायक हैं.
जिस तरह जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू था, उसी तरह से सिक्किम में अनुच्छेद 371(F) लागू है. अनुच्छेद 371(F) सिक्किम को खास दर्जा देता है.
इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं मिली?
भारत में धार्मिक आधार पर आरक्षण की इजाजत नहीं है. सिक्किम में बौद्ध भिक्षुओं के लिए अलग से सांघा सीट बनाने पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इस सीट से बौद्ध भिक्षुओं का आरक्षण खत्म करने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट में ये चुनौती राम चंद्र पौद्याल ने दी थी.
1993 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस मांग को ठुकरा दिया था और बौद्ध भिक्षुओं के लिए अलग से फ्लोटिंग सीट को सही ठहराया था. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सांघा चोग्याल राजाओं के समय से सिक्किम में थे, लिहाजा ये आरक्षण धर्म आधारित नहीं है.
क्या कश्मीर में ऐसा हो सकता है?
कश्मीरी पंडितों का कहना है कि जिस तरह सांघा में बौद्ध भिक्षुओं के लिए अलग से विधानसभा सीट बनी है, उसी तरह उनके लिए भी कश्मीर में ऐसी सीट बने. लेकिन सवाल ये है कि क्या ऐसा हो सकता है?
5 अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर से खास दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाया गया तो उसका बंटवारा भी किया गया. बंटवारा करके जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया.
इसके लिए जम्मू-कश्मीर रिऑर्गनाइजेशन एक्ट पास किया गया. इस एक्ट में प्रावधान है कि अगर जम्मू-कश्मीर में नई विधानसभा सीट बनती है तो उसे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया जाएगा.
फिर क्या है रास्ता?
कश्मीरी पंडितों का कहना है कि अगर सिक्किम फॉर्मूला कश्मीर में लागू नहीं हो सकता तो पुडुचेरी फॉर्मूला यहां लागू कर दिया जाएगा. पुडुचेरी में कुल 33 विधानसभा सीट हैं, जिनमें से 30 पर चुनाव जनता करती है, जबकि बाकी की 3 सीटों पर केंद्र सरकार नामित करती है.