scorecardresearch
 

'जहां घुटने टेकती रही हैं सरकारें...', पहलवानों का अखाड़ा बना जंतर-मंतर कितना ताकतवर?

यूं तो जंतर-मंतर पर पहला विरोध प्रदर्शन 1993 में हुआ था. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सत्ता तक अपनी बात पहुंचाने, सरकारी नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने या फिर अपने अधिकारों को लेकर कोई मुहिम छेड़ने के लिए देशभर से लोग जंतर मंतर पर ही क्यों जुटते हैं?

Advertisement
X
जंतर-मंतर
जंतर-मंतर

साल 1724 में जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय ने जब दिल्ली का जंतर-मंतर बनवाया था तो उन्हें जरा भी इल्म नहीं होगा कि यह स्मारक आगे चलकर देश में विरोध प्रदर्शनों का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरेगा. जंतर-मंतर से विरोध के इतने शक्तिशाली स्वर उभरे हैं कि इससे कुछ ही दूरी पर मौजूद संसद में सरकारें बदल गई हैं. यही नहीं यहां से पैदा हुए विरोध से नई पार्टी भी वजूद में आई है. और आज यही जंतर-मंतर मेडलधारी पहलवानों का अखाड़ा बना हुआ है, जहां वे इंसाफ की उम्मीद लगाए डटे हुए हैं.

Advertisement

यूं तो जंतर-मंतर पर पहला विरोध प्रदर्शन 1993 में हुआ था. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सत्ता तक अपनी बात पहुंचाने, सरकारी नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने या फिर अपने अधिकारों को लेकर कोई मुहिम छेड़ने के लिए देशभर से लोग जंतर- मंतर पर ही क्यों जुटते हैं?

आखिर क्या है इसकी वजह?

इस सवाल का जवाब किसान नेता महेंद्र टिकैत की अगुवाई में 1988 में बोट क्लब पर हुए विशाल आंदोलन से जुड़ी हुआ है. इस साल केंद्र सरकार के खासमखास विभागों की इमारतों के बीच हरे-भरे बोट क्लब पर किसानों का जमघट लगा था, जिसकी वजह से पूरी दिल्ली ठप सी हो गई थी. इंडिया गेट, विजय चौक और बोट क्लब पर किसान ही किसान नजर आ रहे थे. किसानों ने अपनी बैलगाड़ियां और ट्रैक्टरों को बोट क्लब पर खड़ा कर दिया था. दिल्ली के बोट क्लब पर उन दिनों पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि (31 अक्टूबर) के अवसर पर होने वाली रैली के लिए रंगाई-पुताई का काम चल रहा था. इस कार्यक्रम के लिए जो मंच बनाया गया था, उस पर भी किसानों ने कब्जा कर जमा लिया.

Advertisement

अपनी 35 मांगों के साथ 14 राज्यों से लगभग पांच लाख किसानों ने सरकार की चूलें हिलाकर रख दी थीं. इन किसानों ने अकेले दिल्ली कूच नहीं किया था बल्कि इनके साथ बड़ी संख्या में मवेशी, बैलगाड़ियां और ट्रैक्टरों का कारवां यहां पहुंचा था. आलम ये था कि सेंट्रल दिल्ली में हर जगह मवेशी ही नजर आ रहे थे. मवेशियों के गोबर और खाना बनाने वाले मिट्टी के चूल्हों की राख ने दिल्लीवालों के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर दी थी, जिसके बाद सरकार को मजबूरन एक फैसला लेना पड़ा. 

सरकार का वो आदेश

हालांकि, सरकार ने यह फैसला सुरक्षा कारणों का हवाला देकर लिया. बोट क्लब के प्रधानमंत्री कार्यालय से चंद मीटर की दूरी पर होने की वजह से यहां प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई. इस संबंध में केंद्र सरकार ने 1993 में एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि धरना और विरोध प्रदर्शनों के लिए अब से जंतर मंतर का ही रुख किया जाए.  

जंतर-मंतर से बदली सरकारें

वैसे तो जंतर-मंतर समय-समय पर सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ पुरजोर विरोध का गवाह बनता रहा है. लेकिन 2011 के अन्ना आंदोलन ने एक तरह से राजनीति का नक्शा ही बदलकर रख दिया. छह अप्रैल 2011 को जन लोकपाल कानून के लिए अन्ना हजारे ने जंतर मंतर से ही पहला अनशन शुरू किया था. इस अनशन की दस्तक इतनी जोरदार थी कि अन्ना के समर्थन में पूरा देश खड़ा हो गया था.

Advertisement

अन्ना आंदोलन के दौरान कई ऐसे तस्वीरें आई थीं, जिसमें अरविंद केजरीवाल हाथ में तिरंगा लिए जन लोकपाल कानून बनाने की मांग करते दिखे. उन्हें कई बार गिरफ्तार भी किया गया. अन्ना आंदोलन लंबे वक्त तक चला. सरकार से कई बार बातचीत भी हुई. भूख हड़तालें हुईं. लेकिन इन सबके बावजूद जन लोकपाल कानून नहीं बन पाया. लेकिन अन्ना के इस आंदोलन ने तत्कालीन यूपीए सरकार की जड़ें हिला दी थी और उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा.

जंतर-मंतर से निकली एक राष्ट्रीय पार्टी

अन्ना आंदोलन के साथ खड़ी हजारों की भीड़ में एक शख्स अरविंद केजरीवाल भी था. आंदोलन को मिले जनता के भरपूर समर्थन के बाद केजरीवाल ने दो अक्टूबर 2012 को एक राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया. इसी जंतर-मंतर से निकली आम आदमी पार्टी आज राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी है और अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति का चेहरा. वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने 2013 में जंतर मंतर पर ही नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन किया था.

जब खोपड़ी और मरे चूहे लेकर किसानों ने किया था प्रदर्शन

यूं तो जंतर-मंतर पर हर समय प्रदर्शन होते रहते हैं. लेकिन 2017 में कर्ज माफी की मांग को लेकर जब तमिलनाडु के किसान जंतर-मंतर पहुंचे थे. तो पूरा देश उनकी पीड़ा में सिहर उठा था. ये किसान सूखे की वजह से बर्बाद हो चुकी फसलों के लिए राहत पैकेज और कर्ज माफी की मांग कर रहे थे. सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का इन किसानों का तरीका भी बहुत अनूठा था. इन्होंने कर्ज की वजह से आत्महत्या कर चुके किसानों की खोपड़ी लेकर तो कभी मुंह में मरे हुए चूहे दबाकर विरोध जताया था. 

Advertisement

निर्भया के समर्थन में उमड़ा था जनसैलाब

साल 2012 में निर्भया रेप केस मामले में कड़ाके की ठंड के बीच लोगों का हुजूम जंतर-मंतर पर उमड़ा था. इस मामले में नाबालिग दोषी की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक नहीं लगाने पर निर्भया के माता-पिता ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया था.

पहलवानों का अखाड़ा बना जंतर-मंतर 

जंतर-मंतर पर पहलवान 23 अप्रैल से कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. पहलवानों ने बृजभूषण पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है और उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं. दिल्ली पुलिस ने महिला पहलवानों की शिकायत पर बृजभूषण सिंह के खिलाफ दो मामले दर्ज किए थे. नाबालिग की शिकायत पर पहली एफआईआर में बृजभूषण के खिलाफ पॉक्सो एक्ट लगाया गया है. दूसरी एफआईआर में धारा 345, धारा 345(ए), धारा 354 (डी) और धारा 34 लगाई गई हैं. 

जंतर-मंतर प्रदर्शन पर रोक की भी उठी थी मांग

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट से जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की अपील करते हुए धरना स्थल को चार किलोमीटर दूर रामलीला मैदान में स्थानांतरित करने की मांग की थी. दरअसल यहां आसपास के लोगों ने इन प्रदर्शनों की वजह से एनजीटी से ध्वनि प्रदूषण की शिकायत की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जंतर-मंतर पर होने वाले प्रदर्शनों पर पूर्ण प्रतिबंध से इनकार कर दिया था.

Advertisement

कब हुआ, किसने कराया जंतर-मंतर का निर्माण?

जंतर-मंतर का निर्माण साल 1724 में जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने कराया था. गणित और ज्योतिष में खास रुचि रखने वाले जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वितीय ने अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए दिल्ली के साथ ही बनारस (अब वाराणसी), उज्जैन, मथुरा और जयपुर में जंतर-मंतर का निर्माण कराया था. इसके पीछे ये भी कहा जाता है कि तब हिंदू और मु्स्लिम खगोलशास्त्रियों के बीच ग्रहों की स्थिति को लेकर बहस छिड़ गई थी जिसके बाद इसे शांत करने के लिए जय सिंह जंतर-मंतर का निर्माण कराया था.

Advertisement
Advertisement