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नाराज रहे जाट, उपेक्षित रहा मीणा समुदाय... जानिए 5 कारण, जिससे राजस्थान में 11 सीटें हार गई बीजेपी

कस्वां खेमे ने दिग्गज राजपूत नेता राठौड़ पर आरोप लगाया कि वे जाट समुदाय से आने वाले राहुल कस्वां को टिकट नहीं दिए जाने के लिए जिम्मेदार हैं. टिकट नहीं मिलने के बाद भाजपा छोड़ कस्वां कांग्रेस में शामिल हो गए और चुरू लोकसभा सीट पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा.

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राजस्थान में 25 में से 11 सीटें कैसे हार गई बीजेपी
राजस्थान में 25 में से 11 सीटें कैसे हार गई बीजेपी

करीब छह महीने पहले दिसंबर 2023 में राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे. भाजपा ने 199 में से 115 सीटें हासिल कीं, जिससे पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में रेगिस्तानी राज्य में अपनी सरकार बनाने का रास्ता खुला. वास्तव में ऐसा क्या हुआ कि भाजपा 25 में से 11 सीटें हार गई और पार्टी को भारी झटका लगा. वो राजनीतिक दल जिसने 2014 में अपने दम पर सभी 25 सीटें जीती थीं और 2019 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के साथ गठबंधन में 25 सीटें जीती थीं. आखिर 2024 में राजस्थान में भाजपा को हार का सामना क्यों करना पड़ा, मोटे तौर पर देखा जाए तो इसके 5 प्रमुख कारण हैं. 

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1. सबसे पहले, जिस तरह से राजस्थान में जाट समुदाय के सदस्यों ने, मुख्य रूप से शेखावाटी बेल्ट में, पार्टी के साथ अपमानित महसूस किया, उसके कारण भाजपा को 25 लोकसभा सीटों में से कम से कम 6 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. चुरू में, भाजपा के मौजूदा सांसद राहुल कस्वां को कथित तौर पर वरिष्ठ भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ के इशारे पर टिकट देने से इनकार कर दिया गया. लोकसभा चुनाव के पहले चरण से कुछ दिन पहले तीखी आलोचनाओं के साथ उनकी आंतरिक पार्टी प्रतिद्वंद्विता खुलकर सामने आ गई थी. 

कस्वां खेमे ने दिग्गज राजपूत नेता राठौड़ पर आरोप लगाया कि वे जाट समुदाय से आने वाले राहुल कस्वां को टिकट नहीं दिए जाने के लिए जिम्मेदार हैं. टिकट नहीं मिलने के बाद भाजपा छोड़ कस्वां कांग्रेस में शामिल हो गए और चुरू लोकसभा सीट पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा. चुरू में जाटों के विरोध के प्रभाव के कारण भाजपा को पूरे शेखावाटी क्षेत्र में बड़ी हार का सामना करना पड़ा, जिसमें चुरू, झुंझुनू और सीकर लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं.

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झुंझुनू लोकसभा सीट पर कांग्रेस के बृजेंद्र ओला ने बीजेपी के शुभकरण चौधरी को हराया. सीकर में सीपीआई (एम) के अमराराम ने कांग्रेस के समर्थन से बीजेपी उम्मीदवार सुमेधानंद सरस्वती को हराया. सीपीआई (एम) ने कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन के तहत सीकर सीट पर चुनाव लड़ा था. अच्छी खासी जाट मतदाताओं वाली एक अन्य सीट नागौर में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाली आरएलपी के प्रमुख हनुमान बेनीवाल भाजपा की ज्योति मिर्धा पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे.

इन सभी सीटों पर कांग्रेस या उसके सहयोगियों को जाट समुदाय के समर्थन ने भाजपा उम्मीदवारों की हार सुनिश्चित करने में निर्णायक भूमिका निभाई. कथित तौर पर एक राजपूत नेता के इशारे पर चुरू सीट से एक प्रमुख जाट नेता को टिकट देने से इनकार कर दिया गया, ये भी फैक्ट है कि राजस्थान में मुख्यमंत्री और राज्य भाजपा प्रमुख ब्राह्मण हैं, जिससे यह धारणा बन गई कि पार्टी पर ब्राह्मण और राजपूत समुदाय के सदस्यों द्वारा, कंट्रोल किया जा रहा है. जिसके कारण भाजपा को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.

दूसरे, जिस तरह से राजस्थान में मीना समुदाय में कद्दावर शख्सियत डॉ. किरोड़ी लाल मीना को प्रमुख मंत्रालय से हटा दिया गया. विधानसभा चुनाव के बाद अपेक्षाकृत कम अनुभव वाले लोगों को अधिक महत्वपूर्ण विभाग दिए जाने के बाद वह खुद को उपेक्षित महसूस कह रहे थे. इसे मीना समुदाय के नेता के अपमान के तौर पर देखा गया.  परिणामस्वरूप, भाजपा को दौसा, टोंक-सवाई माधोपुर और भरतपुर सीटों पर अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, जहां मीना समुदाय की काफी आबादी है.

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तीसरा, विधानसभा चुनावों के दौरान, गुर्जर समुदाय के सदस्य अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले कांग्रेस उम्मीदवारों को हराने के लिए बड़ी संख्या में सामने आए थे. इन लोगों को सचिन पायलट के मुख्यमंत्री नहीं बनने के लिए जिम्मेदार माना गया था. हालाँकि, लोकसभा चुनाव के दौरान, गुर्जर समुदाय के सदस्यों ने कांग्रेस के उन उम्मीदवारों का समर्थन किया जो पायलट के करीबी माने जाते थे. नतीजतन, कांग्रेस ने टोंक-सवाई माधोपुर, दौसा, भरतपुर सीटों पर शानदार जीत हासिल की, जबकि जयपुर ग्रामीण सीट वह 10,000 से भी कम वोटों से हार गई. इन सीटों पर सचिन पायलट खेमे के सदस्य हरीश मीना, मुरारी लाल मीना, संजना जाटव, अनिल चोपड़ा ने चुनाव लड़ा था. दूसरी ओर, जालौर-सिरोही लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले वैभव गहलोत लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने में असफल रहे, बावजूद इसके कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने बेटे की जीत सुनिश्चित करने के लिए काफी प्रयास किए.

चौथा, जिस तरह से राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पार्टी के भीतर दरकिनार कर दिया गया और उन्हें झालावाड़-बारां निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार के लिए बड़े पैमाने पर हटा दिया गया, जहां से उनके बेटे दुष्यंत चुनाव लड़ रहे थे, जिसके कारण भाजपा को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.

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 पांचवां, भाजपा पिछले साल राजस्थान विधानसभा चुनावों के नतीजों से सबक सीखने में विफल रही क्योंकि पार्टी ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी संगठनात्मक ताकत नहीं बढ़ाई, जहां वह पिछले विधानसभा चुनावों में हार गई थी और लोकसभा चुनाव के दौरान फिर से हार गई थी. 

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