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'सीख' या 'सबक' जो भी मिले... जितिन प्रसाद के पॉलिटिकल करियर पर होगा असर!

भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस को अपनी प्राथमिकता बताने वाले योगी सरकार में इस मामले के सामने आने के बाद चर्चा है कि जितिन प्रसाद को 'सीख' या 'सबक' मिलना तय है.

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यूपी सरकार में लोक निर्माण विभाग के मंत्री जितिन प्रसाद चर्चा में हैं.
यूपी सरकार में लोक निर्माण विभाग के मंत्री जितिन प्रसाद चर्चा में हैं.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पार्टी के तौर-तरीकों में ना ढाल पाने से उठ रहे सवाल
  • चुनाव से पहले कांग्रेस से बीजेपी में शामिए हुए थे जितिन

यूपी के लोक निर्माण विभाग में बड़ी गड़बड़ियों के सामने आने के साथ ही मुख्यमंत्री की पहल पर कई अधिकारियों और मंत्री के OSD समेत विभाग के HOD के खिलाफ कार्रवाई तो हो गई है, मगर अब ये सवाल उठ रहे हैं कि इससे कांग्रेस से बीजेपी में आकर सीधे कैबिनेट मंत्री बने जितिन प्रसाद के राजनीतिक भविष्य पर क्या असर होगा? इसके पीछे ये सबसे बड़ी वजह है कि ना सिर्फ लोक निर्माण विभाग में गड़बड़ियों की बात सामने आई, बल्कि इस बात की भी चर्चा होती रही कि जितिन प्रसाद के जिस OSD की सबसे ज्यादा भूमिका बताई जा रही है वो उनके सबसे करीबी थे. इसीलिए क्या इतने बड़े पैमाने पर तबादलों में गड़बड़ी की भनक खुद मंत्री को नहीं लगी?
 
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस को अपनी प्राथमिकता बताने वाले योगी सरकार में इस मामले के सामने आने के बाद चर्चा है कि जितिन प्रसाद को 'सीख' या 'सबक' मिलना तय है. हालांकि परिस्थिति ये तय करेगी पर कहा जा रहा है कि जितिन की 'अनदेखी' ने कहीं ना कहीं नेतृत्व को भी असहज कर दिया है.

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लोक निर्माण विभाग के मंत्री जितिन प्रसाद के विशेष कार्याधिकारी अनिल कुमार पांडे तबादलों को लेकर सबसे ज्यादा घेरे में आए. सवाल उठता देख सचिवालय प्रशासन विभाग ने अनिल कुमार पांडे को मूल विभाग में वापस दिल्ली भेजने का आदेश जारी कर दिया और उनके खिलाफ सतर्कता जांच और कार्रवाई की सिफारिश भी कर दी.

इस बीच, ये चर्चा लगातार होती रही कि अनिल पांडे जितिन प्रसाद के सबसे ज्यादा करीबी हैं. वही उन्हें अपने साथ दिल्ली से लेकर आए थे. ऐसे में जितिन प्रसाद की भूमिका को इससे परे रखना तर्क संगत नहीं है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ना सिर्फ कार्रवाई की पहल की, बल्कि मंत्रिपरिषद की बैठक में मंत्रियों को नसीहत भी दी और साफ कहा कि भ्रष्टाचार और अनियमितता की एक भी घटना को बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

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इसके साथ ही ये भी कहा कि मंत्री अपने दफ्तर और स्टाफ पर नजर रखें. इसके बाद दूसरे दिन जितिन प्रसाद के दिल्ली जाने और गृह मंत्री से मिलने की चर्चा है. कहा ये भी जा रहा है कि जितिन को दिल्ली तलब किया गया है.

जितिन का सक्रिय ना होना अगर गड़बड़ी की वजह तो...
दरअसल, बीजेपी में चुनाव से पहले जॉइनिंग के वक्त से ही जितिन प्रसाद को जिस तरह से पार्टी का बड़ा ब्राह्मण चेहरा बताया गया, उससे ये तय था कि जितिन प्रसाद को पार्टी में अहम पद और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने वाली है. मंत्रिमंडल में सबसे अहम पद देकर ये साबित भी किया गया कि न सिर्फ जितिन प्रसाद को पार्टी महत्व दे रही है बल्कि पार्टी को जितिन प्रसाद से काफी उम्मीदें भी हैं. लेकिन लोक निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभाग पाने के बाद सिर्फ 100 ही दिन हुए थे कि तबादलों को लेकर हाल के वर्षों का सबसे बड़ा विवाद हो गया.

इस बीच ये बात होती रही कि जितिन अब तक भाजपा कल्चर में घुल-मिल भी नहीं पाए हैं और लोगों से भी फ्रेंड्ली नहीं हो पाए हैं. बीजेपी जितिन को ब्राह्मण नेता के तौर पर लाई थी पर जितिन प्रसाद ने 2004 के बाद से कोई चुनाव नहीं जीता है. पार्टी ने उनको एमएलसी बनाया मगर पार्टी के कार्यक्रमों में उनकी सक्रियता कम ही बनी रही. इस बीच लोक निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभाग में इतनी बड़ी गड़बड़ी के सामने आने से अब ये तय है कि पार्टी की नजर जितिन प्रसाद पर होगी. 

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जितिन प्रसाद को अपने को साबित करने के लिए अब ज्यादा जोर लगाना पड़ेगा क्योंकि अब पार्टी की नजर उन पर रहेगी. अगर पार्टी ने हाशिए पर किया तो अब आगे का रास्ता भी मुश्किल हो सकता है. वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल का कहना है कि‘योगी आदित्यनाथ ने काम करने का एक तरीका पिछले 5 साल में बनाया है. जितिन प्रसाद का खुद को इस कार्यशैली में ढाल न पाना खुद मुख्यमंत्री के लिए असहजता का कारक है. यही बात जितिन प्रसाद के लिए महत्वपूर्ण है.

खुद योगी आदित्यनाथ सत्ता संभालने के बाद से भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करते रहे हैं. पिछले कार्यकाल में इतना बड़ा कोई मामला सामने नहीं आया जिसमें विभाग के भ्रष्टाचार को लेकर सीधे मंत्री पर सवाल उठता. इस बार सरकार बनते हाई ‘transfer policy’ के जरिए सरकार ने एक संदेश देने की कोशिश की. मगर उसके बाद ही ये विवाद और ट्रांसफर में गड़बड़ी सामने आ गई.

हालांकि, इस पूरे मामले पर जितिन प्रसाद चुप्पी साधे हुए हैं. लेकिन अब उनके व्यवहार और ‘बॉडी लैंग्वेज’ पर ही सवाल उठ रहे हैं. जिस तरह से पार्टी में शामिल होने के बाद जितिन अलग-थलग दिखते रहे, उसके भी मायने निकाले जा रहे हैं. ये बात अब बिल्कुल खुले रूप में कही जा रही है कि मंत्री का सारा काम जो OSD अनिल पांडे संभालते थे, उनको वो खास तौर पर लेकर आए. 

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विभागीय फाइलें ओएसडी के माध्यम से ही मंत्री के पास जाती थीं. ऐसे में इतनी बड़ी गड़बड़ी में OSD को पूरी तरह जिम्मेदार माना जा रहा है. क्या मंत्री को इसकी जानकारी भी नहीं थी? अनिल पांडे इससे पहले केंद्रीय उपभोक्ता मामले और खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में अवर सचिव रहे हैं और उनको जितिन प्रसाद की सिफारिश पर ही उत्तर प्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर तैनाती दी गई थी.

ये बात पहले से ही चर्चा में रही है कि जितिन प्रसाद के UPA सरकार में मंत्री रहने के दौरान भी अनिल पांडे उनके साथ तैनात रहे हैं, इसलिए अब जितिन प्रसाद को सीख या सबक मिलना तय है. सीख मिलती है तो भी आगे पार्टी की उन पर नजर रहेगी.

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