15 साल पहले 28 सितंबर 2008 को एक युवा महिला पत्रकार दक्षिणी दिल्ली के नेल्सन मंडेला मार्ग पर अपनी कार में मृत पाई गई थी. वह इंडिया टुडे की जर्नलिस्ट सौम्या विश्वनाथन (25 साल) थीं. कई महीनों तक पुलिस ने इस मामले की जांच की, लेकिन हत्यारों का पता नहीं लगा पाई. साल 2009 में बीपीओ कर्मचारी जिगिशा घोष की हत्या के मामले की जांच करते समय आरोपियों ने सौम्या की भी हत्या करने की बात कबूल कर ली. आरोपी ने 4 महीने में 3 मर्डर किए थे. इस कबूलनामे के बावजूद कई बरस बीत गए. लेकिन ट्रायल कोर्ट अब मामले में अंतिम दलीलें सुन रहा है, अभियोजन पक्ष को कोर्ट में सभी सबूत जमा करने में लगभग 14 साल लग गए हैं.
इस मामले की इन्वेस्टिगेशन टीम में शामिल IPS अधिकारी ने बताया कि जिगिशा के साथ ही एक और व्यक्ति की हत्या के मामले में एक आरोपी को दोषी ठहराया गया था. सौम्या मामले में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण (मकोका) अधिनियम के तहत आरोप शामिल किए गए थे. इसीलिए इसमें इतना लंबा समय लग गया.
सौम्या मर्डर केस की टाइमलाइन
28 सितंबर 2008- सौम्या विश्वनाथन की नेल्सन मंडेला मार्ग पर उनकी कार में गोली मारकर हत्या कर दी गई
मार्च 2009- जिगिशा घोष हत्याकांड की जांच से सौम्या की हत्या में उसी आरोपी की संलिप्तता का पता चला
अप्रैल 2009- दिल्ली पुलिस ने सौम्या हत्याकांड में रवि कपूर गैंग के खिलाफ मकोका लगाया
6 फरवरी 2010- रवि कपूर, बलजीत सिंह, अमित शुक्ला, अजय कुमार, अजय सेठी के खिलाफ मकोका, हत्या, डकैती और अन्य अपराधों के तहत आरोप तय किए गए.
5 दिसंबर 2009 को आरोपपत्र पर संज्ञान लिए जाने के बाद से 320 सुनवाइयां हुईं
1 सितंबर 2023 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रवींद्र कुमार पांडे के समक्ष अंतिम बहस शुरू
मुकदमे में क्यों हुई देरी?
अगस्त 2016 से कोर्ट की कार्यवाही का रिकॉर्ड लिखित आदेशों के रूप में ऑनलाइन उपलब्ध है. रिकॉर्ड से पता चलता है कि गवाहों को समन नहीं दिए जाने, गवाहों के कोर्ट में पेश न होने, पुलिस स्टेशन से फॉरेंसिक रिपोर्ट और दस्तावेज प्राप्त करने में देरी के कारण मुकदमे में देरी हुई.
मकोका के तहत साबित करने थे आरोप
मकोका के तहत आरोप लगाए जाने के बाद अभियोजन पक्ष को यह साबित करना था कि ये 5 आरोपी एक संगठित अपराध 'गिरोह' का हिस्सा हैं और हिंसक अपराध के कई मामलों में शामिल हैं. इन लोगों को 2018 में जिगिशा घोष मर्डर केस और नदीम मर्डर केस में दोषी ठहराया गया था, लेकिन संगठित अपराध के सबूत में महीनों और वर्षों की देरी देखी गई.
कई आदेशों के बाद दायर की गईं चार्जशीट
इस साल मार्च में पारित एक आदेश में कहा गया कि 2002 और 2009 में आरोपियों के खिलाफ दर्ज 3 एफआईआर के तहत मामलों के रिकॉर्ड का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है. इसी आदेश से यह भी पता चलता है कि 2007 के 2 मामलों में चार्जशीट की प्रमाणित प्रतियां कई आदेशों के बाद दायर की गईं. पुलिस ने कोर्ट को सूचित किया कि इन लोगों के खिलाफ 8 FIR में से केवल 3 का विवरण खोजा गया था.
आरोपियों ने बचाव में कोई सबूत पेश नहीं किया
दिलचस्प बात ये है कि आरोपियों ने मामले में अपने बचाव में कोई गवाह या सबूत पेश नहीं किया है. फिर भी 5 आरोपियों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया में एक साल लग गया. मार्च 2022 से मई 2023 तक. इस प्रक्रिया के बाद कोर्ट ने सबूतों और इसमें शामिल कानूनी प्रावधानों पर अंतिम दलीलें सुनना शुरू किया. कुछ दलीलें ASJ संजीव कुमार सिंह ने सुनीं. जिन्हें बाद में दूसरी अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया. 1 सितंबर को नवनियुक्त मकोका न्यायाधीश जस्टिस रवींद्र कुमार पांडे ने अंतिम दलीलों पर नए सिरे से सुनवाई शुरू की और मामले की दिन-प्रतिदिन सुनवाई का निर्देश दिया.
क्या बोले सौम्या के माता-पिता?
1 सितंबर से सेशन कोर्ट में इस मामले की रोजाना 2 घंटे सुनवाई हो रही है. सौम्या के माता-पिता हर सुनवाई में भाग ले रहे हैं. बचाव पक्ष के वकीलों ने मीडिया दबाव और मीडिया ट्रायल के बारे में चिंता जताई है. न्याय का इंतजार कर रहे सौम्या के माता-पिता का अब कहना है कि उन्हें जल्द फैसले की उम्मीद है. सौम्या की मां माधवी विश्वनाथन ने आजतक को बताया कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि हमारे पक्ष में फैसला आएगा. 15 साल बहुत लंबा समय है. दिवंगत सौम्या के पिता एमके विश्वनाथन ने कहा कि हमने अभी भी उसका फोन नंबर चालू रखा है, भले ही वह हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसका नंबर अभी भी वही है.