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SC कॉलेजियम ने की जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद HC भेजने की सिफारिश, बार एसोसिएशन का विरोध

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जारी किए गए बयान के मुताबिक, जस्टिस वर्मा के तबादले का फैसला कॉलेजियम की पिछली बैठक में ही ले लिया गया था, जिसे अब केंद्र सरकार को भेजा गया है. हालांकि, बीते दिन इलाहाबाद हाई कोर्ट के बार एसोसिएशन ने कहा था कि हाई कोर्ट को 'डंपिंग ग्राउंड' नहीं बनाया जा सकता, और उनके खिलाफ महाभियोग की मांग की थी.

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जस्टिस यशवंत वर्मा (फाइल फोटो)
जस्टिस यशवंत वर्मा (फाइल फोटो)

हाल ही में हुई सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक में जस्टिस यशवंत वर्मा के तबादले पर सहमति बनी है. इस बैठक के दौरान कॉलेजियम ने प्रस्ताव पारित करते हुए सरकार को सिफारिश भेज दी है. सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जारी किए गए बयान के मुताबिक, जस्टिस वर्मा के तबादले का फैसला कॉलेजियम की पिछली बैठक में ही ले लिया गया था.

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अब यह फैसला सरकार को भेजा गया है और उम्मीद की जा रही है कि अगले एक या दो दिनों में सरकार इस पर अंतिम निर्णय ले सकती है. इस सिफारिश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा प्रदर्शन किया गया है. 

बार एसोसिएशन ने की महाभियोग की मांग

सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश से पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे गंभीर आरोपों के संदर्भ में महाभियोग की मांग की थी. एसोसिएशन की जनरल बॉडी मीटिंग, जो लाइब्रेरी हॉल में आयोजित की गई थी, में कुल 11 प्रस्ताव पारित किए गए. इनमें से एक प्रस्ताव में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया गया है कि जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद हाई कोर्ट में तबादला ना किया जाए. एसोसिएशन ने कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को "डंपिंग ग्राउंड" नहीं बनाया जा सकता.

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सीबीआई-ईडी से मामले की जांच की मांग

बार एसोसिएशन ने यह भी मांग की है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ चल रहे मामले को सीबीआई और ईडी द्वारा जांच के लिए रजिस्टर किया जाए, जैसे कि किसी अन्य सिविल सर्वेंट, पब्लिक सर्वेंट या राजनेता के खिलाफ होता है. एसोसिएशन ने मांग की है कि अगर आवश्यक हो, तो जस्टिस वर्मा को सीजेआई की अनुमति से कस्टडी में लेकर पूछताछ की जा सकती है.

यह भी पढ़ें: कैश कांड विवादः इलाहाबाद HC बार एसोसिएशन ने बुलाई बैठक, बढ़ सकती हैं जस्टिस यशवंत वर्मा की मुश्किलें

इसके अतिरिक्त, एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच प्रक्रिया को "अस्वीकार्य" बताया है और कोर्ट द्वारा दी गई दलीलों और सफाई को खारिज कर दिया है. बार ने "अंकल जज सिंड्रोम" का मुद्दा भी उठाया है, जिसमें मांग की गई है कि जिस अदालत में कोई जज है, उसके परिवार के सदस्य वहां वकालत ना करें.

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