
वक्फ कानून को चुनौती देने के मामले में एक और रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. इसी मुद्दे पर यह 16वीं याचिका ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 25, 26, और 300ए का उल्लंघन करती है. समाज में चिंता बढ़ रही है, और उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे को संवेदनशीलता से सुलझाएगा.
संविधान के अनुच्छेदों के उल्लंघन का आरोप
इस याचिका में दलील दी गई है कि इस कानून से वक्फ प्रबंधन और प्रशासन की पारंपरिक रीति में जो बुनियादी और ढांचागत बदलाव आता है, खासतौर वह नागरिकों और विशेष रूप से अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 25, 26 और 300ए के तहत दी गई संवैधानिक गारंटी का स्पष्ट उल्लंघन और हनन है.
संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती
याचिका के मुताबिक, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई यह रिट याचिका वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती है.
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धार्मिक स्वायत्तता और वक्फ की प्रकृति पर असर
यह अधिनियम मूल रूप से वक्फ की प्रकृति, कानूनी सुरक्षा और धार्मिक स्वायत्तता को विकृत करता है. मूल कानून — वक्फ अधिनियम, 1995 — के तहत ये सभी गारंटियाँ परिकल्पित हैं और संविधान द्वारा संरक्षित हैं.

प्रशासनिक ढांचे में बदलाव का आरोप
विवादित कानून व्यापक संरचनात्मक परिवर्तन प्रस्तुत करता है, जो न केवल वक्फ प्रशासन के सांप्रदायिक चरित्र को समाप्त करता है, बल्कि असंगत कार्यकारी नियंत्रण भी लागू करता है, जिससे अनुच्छेद 14, 15, 16, 25, 26 और 300A के तहत निहित मूल संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन होता है.
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धारा 3D और 3E बनीं विवाद की जड़
चुनौती के केंद्र में धारा 3D और 3E हैं, जिन्हें संसदीय बहस के दौरान मंत्रिस्तरीय संशोधनों के माध्यम से मुख्य अधिनियम में शामिल किया गया है, संयुक्त संसदीय समिति की जांच को दरकिनार करते हुए.
वक्फ दर्जा हटाने पर आपत्ति
धारा 3डी, 1958 के अधिनियम के तहत प्राचीन स्मारकों के रूप में घोषित संपत्तियों से वक्फ का दर्जा हटा देती है, जिससे मस्जिदों और दरगाहों जैसे सदियों पुराने वक्फ समाप्त हो जाते हैं.