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लेस्बियन जोड़े को करवाचौथ मनाते दिखाने वाले विज्ञापन पर जस्टिस चंद्रचूड़ की बात हर किसी को सुननी चाहिए

महिलाओं में कानूनी जागरूकता बढ़ाने के लिए NALSA की ओर से आयोजित एक वेबिनार में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जब एक महिला से उसकी पहचान के साथ ही जाति, वर्ग, धर्म, विकलांगता और लैंगिक आधार जैसी पहचान जुड़ती हैं, तो उसे हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है.

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महिलाएं सिर्फ़ महिला के तौर पर एक पहचान नहीं हैं- जस्टिस चंद्रचूड़
महिलाएं सिर्फ़ महिला के तौर पर एक पहचान नहीं हैं- जस्टिस चंद्रचूड़
स्टोरी हाइलाइट्स
  • डाबर के विज्ञापन पर बोले जस्टिस चंद्रचूड़
  • कानून के प्रावधानों और समाज की सच्चाइयों में काफी अंतर है
  • पुरुष जागरुक होंगे, तभी महिला अधिकारों में आएगी मज़बूती

करवा चौथ पर डाबर के एक विज्ञापन में लेस्बियन जोड़े को दिखाने पर उठे विवाद में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस धनंजय वी चंद्रचूड़ की टिप्पणी सामने आई है. महिलाओं में कानूनी जागरूकता बढ़ाने के लिए NALSA की ओर से आयोजित एक वेबिनार में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी बात रखी.

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नेशनल लीगल सर्विसेज ऑथोरिटी ऑफ इंडिया और राष्ट्रीय महिला आयोग के इस साझा कार्यक्रम में जस्टिस चंद्रचूड़ ने दो टूक कहा कि कानून के आदर्श प्रावधानों और समाज की सच्चाइयों में काफी अंतर दिखता है. तभी तो जनहित का हवाला देते हुए उस विज्ञापन को वापस लेने के लिए कंपनी को मजबूर होना पड़ा.

उन्होंने कहा कि जनता की असहिष्णुता की वजह से वो विज्ञापन हटाना पड़ा. जबकि महिलाओं के अधिकारों को मजबूती देने के लिए कई कानून बनाए गए हैं. लेकिन कानून और जनता समाज में महिलाओं की वास्तविक स्थिति दोनों में अंतर है.

विज्ञापन के खिलाफ डाबर ने मांगी थी माफ़ी

बता दें कि डाबर के इस विज्ञापन के आते ही सोशल मिडिया पर इसके खिलाफ टिप्पणियों की बाढ़ आ गई. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने चेतावनी दी कि विज्ञापन वापस नहीं लिया गया तो नाराज जनता, डाबर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगी और कम्पनी को जनता और कानूनी मुश्किल का सामना करना होगा. इसके बाद कम्पनी ने विज्ञापन वापस लेकर बिना शर्त माफी मांगी.

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महिलाएं सिर्फ़ महिला के तौर पर एक पहचान नहीं हैं

जस्टिस चंद्रचूड़ ने महिलाओं के लिए भी कहा कि वे सिर्फ़ महिला के तौर पर एक पहचान नहीं हैं. अनुसूचित जाति या फिर ट्रांसजेंडर महिला को कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कोर्ट के कई फैसलों में भी ये बातें साफ-साफ उजागर होती हैं. भेदभाव के कई मानदंड हैं. जाति, धर्म, दिव्यंगता या फिर लैंगिक आधार पर भेदभाव होता है.

पुरुष जागरुक होंगे, तभी महिला अधिकारों में आएगी मज़बूती

जस्टिस चंद्रचूड़ ने  कहा कि महिलाओं के अधिकारों को लेकर सार्थक और सकारात्मक मजबूती तभी संभव होगी जब इस मुद्दे पर पुरुषों में भी जागरूकता आए. ज‌स्टिस चंद्रचूड़ ने हाल में ‌दिए एक फैसले का जिक्र किया. इसमें उन्होंने अनुसूचित जाति की महिलाओं पर हो रहे जुल्म और भेदभाव को देखा था.

उन्होंने कहा कि जब एक महिला से उसकी पहचान के साथ ही जाति, वर्ग, धर्म, विकलांगता और लैंगिक आधार जैसी पहचान जुड़ती हैं, तो उसे हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है. उदाहरण के लिए, ट्रांसवुमन को उनकी विषमलैंगिक पहचान के कारण हिंसा का सामना करना पड़ सकता है.

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