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कंचनजंगा एक्सप्रेस एक्सीडेंट: जानिए क्यों जरूरी है LHB कोच वाली ट्रेन, जानलेवा साबित हुए ICF डिब्बे

जनवरी 2024 की रेल मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रेलवे के कुल यात्री रोलिंग स्टॉक का 50.5 प्रतिशत एलएचबी है, जबकि 49.5 प्रतिशत आईसीएफ बेड़े का है. नवंबर 2020 में CAG ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा था कि ICF कोच की वजह से LHB कोच की तुलना में 98 प्रतिशत ज़्यादा मौतें हुई हैं.

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नीले रंग वाला आईसीएफ कोच है जबकि लाल वाला एलएचबी कोच है
नीले रंग वाला आईसीएफ कोच है जबकि लाल वाला एलएचबी कोच है

पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन के पास 17 जून को कॉनकॉर मालगाड़ी 13174 स्टेशन पर खड़ी अगरतला-सियालदाह कंचनजंगा एक्सप्रेस से टकरा गई. जिस समय यह हादसा हुआ उस समय मालगाड़ी कथित तौर पर लगभग 80 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी. कंचनजंगा एक्सप्रेस के तीन डिब्बे पूरी तरह से पटरी से उतर गए, जबकि ट्रेन के दो डिब्बे भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए. हादसे में मालगाड़ी के लोको पायलट और यात्री ट्रेन के गार्ड सहित लगभग 9 लोगों की मौत हो गई.

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कथित तौर पर दुर्घटना इसलिए हुई क्योंकि क्षेत्र में स्वचालित सिग्नलिंग प्रणाली काम नहीं कर रही थी और मैन्युअल सिग्नलिंग प्रक्रियाओं का पालन किया जा रहा था. दुर्घटना के दौरान 13174 अगरतला-सियालदह कंचनजंगा एक्सप्रेस पुराने ICF (इंटीग्रल कोच फैक्ट्री) कोच का उपयोग कर रही थी.

आईसीएफ और एलएचबी में अंतर

यहां यह बताना जरूरी है कि भारतीय ट्रेनों में गहरे नीले रंग वाले कोच को ICF (Integral Coach Factory) कोच कहा जाता है जबकि लाल रंग वाले कोच को LHB (Linke Hofmann Busch) कहा जाता है. हालांकि वर्तमान में हल्के नीले रंग में भी एलएचबी कोच बनाए जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल हफसफर एक्सप्रेस और शताब्दी एक्सप्रेस में किया जाता है.आईसीएफ कोच (ICF Coach) एक पारंपरिक रेलवे कोच हैं जिनका डिजाइन आईसीएफ (इंटीग्रल कोच फैक्ट्री), पेराम्बुर, चेन्नई, भारत द्वारा विकसित किया गया था. वहीं, एलएचबी कोच (LHB Coach) को जर्मनी के लिंक-होफमैन-बुश द्वारा तैयार किया गया, जिसके बाद से इसका निर्माण भारत में ही किया जा रहा है.

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खतरनाक साबित हुए पुराने ICF कोच

पुराने ICF रेक बार-बार सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा साबित हुए हैं. 13 जनवरी, 2022 को उत्तर बंगाल में 15633 बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस डिरेल हो गई थी जिसमें 9 यात्रियों की मौत हो गई और 50 लोग घायल हो गए थे. इस ट्रेन में भी ICF कोच का इस्तेमाल किया जा रहा था. CAG (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने अतीत में सरकार को ICF रेक के इस्तेमाल के खिलाफ बार-बार चेतावनी दी है और सरकार से सभी ICF रेक को स्टेनलेस स्टील से बने आधुनिक LHB (लिंक-हॉफमैन-बुश) कोच से बदलने के लिए कहा है ताकि यात्रियों के लिए रेल यात्रा को सुरक्षित बनाया जा सके.

नवंबर 2020 में CAG ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा था कि ICF कोच की वजह से LHB कोच की तुलना में 98 प्रतिशत ज़्यादा मौतें हुई हैं. CAG की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से 2018 के बीच 20 ट्रेन दुर्घटनाओं (पटरी से उतरने और टक्कर सहित) में से 17 ट्रेनों में ICF और तीन में LHB कोच थे. ICF कोच वाली ट्रेनों की दुर्घटनाओं में 371 लोगों की जान चली गई और 1,142 लोग घायल हुए, जबकि LHB कोच वाली दुर्घटनाओं में छह लोगों की मौत हुई और 115 लोग घायल हुए.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 जून 2014 को डिब्रूगढ़ राजधानी एक्सप्रेस (एलएचबी कोच) के तेज गति से पटरी से उतरने के बावजूद पलटने की घटना में कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन 20 मार्च 2015 को बछरावां रेलवे स्टेशन के पास आईसीएफ के साथ देहरादून-वाराणसी जनता एक्सप्रेस के पटरी से उतरने के बाद 38 यात्रियों की मौत हो गई और 150 लोग घायल हो गए.

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एलएचबी उत्पादन बढ़ाने का समय

तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल ने 2017 में वादा किया था कि 2022 तक रेलवे में सभी आईसीएफ रेक को सुरक्षित एलएचबी रेक से बदल दिया जाएगा. सितंबर 2020 में, सीएजी ने एक बार फिर आईसीएफ रेक के उपयोग पर गहरी चिंता जताई और कहा कि इस तरह उत्पादन की वर्तमान दर के साथ, सभी आईसीएफ रेक को एलएचबी रोलिंग स्टॉक से बदलने में 8 साल और लगेंगे.

एलएचबी कोचों के उत्पादन की वर्तमान दर (रेल मंत्रालय द्वारा घोषित वित्त वर्ष 2023-24 में 7000 कोच निर्मित) के साथ, पूरे आईसीएफ बेड़े का एलएचबीकरण एक दूर के लक्ष्य की तरह लगता है. वर्तमान में एलएचबी रेक चेन्नई में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, रायबरेली में मॉडर्न कोच फैक्ट्री (एमसीएफ) और कपूरथला में रेल कोच फैक्ट्री (आरसीएफ) द्वारा बनाए जा रहे हैं. लेकिन सरकार अभी भी लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई है.

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जनवरी 2024 की रेल मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रेलवे के कुल यात्री रोलिंग स्टॉक का 50.5 प्रतिशत एलएचबी है, जबकि 49.5 प्रतिशत आईसीएफ बेड़े का है. लगभग 35,450 आईसीएफ कोचों को एलएचबी कोचों से बदलने की जरूरत है. भारतीय रेलवे के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया है कि चालू वित्त वर्ष के अंत तक सभी आईसीएफ रेक को एलएचबी रोलिंग स्टॉक से बदलने की दिशा में काम पूरा हो जाएगा.

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हमें LHB कोच की आवश्यकता क्यों है?

पारंपरिक ICF रोलिंग स्टॉक की तुलना में LHB कोच के कई अहम फायदे हैं. LHB कोच के कुछ फायदे इस प्रकार हैं:

एंटी-क्लाइम्बिंग : LHB कोचों को एंटी-क्लाइम्बिंग विशेषताओं के साथ डिज़ाइन किया गया है ताकि टक्कर के दौरान वे एक-दूसरे पर न चढ़ें. इससे दुर्घटनाओं की गंभीरता को कम करने में मदद मिलती है.

दुर्घटना रोकने में सहायक: LHB रेक को दुर्घटना के प्रति सहनीय बनाया गया है, जिसका अर्थ है कि वे टक्कर के दौरान कम नुकसान कर सकते हैं.

अग्निरोधी सामग्री: LHB कोचों के निर्माण में उपयोग की जाने वाली सामग्री अक्सर अग्निरोधी होती है, जिससे आग से संबंधित दुर्घटनाओं का जोखिम कम होता है और यात्रियों को अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है.

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आपातकालीन ब्रेकिंग सिस्टम: LHB रेक उन्नत ब्रेकिंग सिस्टम से लैस होते हैं जिन्हें आपातकालीन स्थितियों में लागू किया जा सकता है. यह ट्रेन की गति को तेज़ी से कम करने में मदद करता है, जिससे आसन्न टक्कर की स्थिति में प्रभाव कम से कम होता है.

पटरी से उतरने के दौरान सुरक्षा: एलएचबी कोच पटरी से उतरने की स्थिति में यात्रियों को चोट लगने के जोखिम को कम करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं. डिज़ाइन में पटरी से उतरने के दौरान पलटने और लुढ़कने जैसे कारकों को ध्यान में रखा गया है.

सुधारित सस्पेंशन सिस्टम: एलएचबी रेक में उन्नत सस्पेंशन सिस्टम हैं जो बेहतर स्थिरता और नियंत्रण प्रदान करते हैं. यह यात्रियों की समग्र सुरक्षा और आराम में योगदान देता है, खासकर उच्च गति वाली यात्रा के दौरान.

उन्नत सिग्नलिंग और संचार प्रणाली: एलएचबी कोच आधुनिक सिग्नलिंग और संचार प्रणालियों से लैस हैं जो ट्रेन संचालन की समग्र सुरक्षा को बढ़ाते हैं. ये सिस्टम ट्रेनों के बीच सुरक्षित दूरी बनाए रखने और ट्रेन चालक दल और नियंत्रण केंद्रों के बीच संचार को बेहतर बनाने में मदद करते हैं.

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एलएचबी कोचों का सिद्ध सुरक्षा रिकॉर्ड
स्टेनलेस स्टील से बने एलएचबी कोच आईसीएफ रेक की तुलना में अधिक टिकाऊ होते हैं और तेज रफ्तार के दौरान पटरी से उतरने के संदर्भ में इनका सुरक्षा रिकॉर्ड बहुत मजबूत है. अगस्त 2021 में असम के चायगांव रेलवे स्टेशन के पास गुवाहाटी-हावड़ा सरायघाट एक्सप्रेस पटरी से उतर गई, जिसमें किसी के हताहत होने की खबर नहीं आई.

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अक्टूबर 2023 में नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस के चार डिब्बे पटरी से उतर गए, जिसमें सिर्फ़ चार लोग हताहत हुए. 2023 बालासोर त्रासदी और भी भयानक हो सकती थी अगर भारतीय रेलवे ने कोरोमंडल एक्सप्रेस और SMVT बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस में ICF कोच का इस्तेमाल किया होता.

कब और कहां शुरू हुआ निर्माण?
नीले रंग वाले आईसीएफ (Integral Coach Factory) कोच के निर्माण की शुरुआत साल 1952 में हुई. ये तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) में तैयार किया जाता है.वहीं, लाल रंग वाले कोच को LHB (Linke Hofmann Busch) को बनाने की शुरुआत साल 2000 में हुई. इसको जर्मनी की कम्पनी लिंक हाफमेन बुश (M/S ALSTROM Linke Holf Busch Germany) द्वारा डिजाईन किया गया है. ये कोच रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला में बनाए जाते हैं

(रिपोर्ट- अमर्त्य सिन्हा)

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