सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अवमानना मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को दोषी करार दिए जाने पर कांग्रेस नेता और सीनियर अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा है कि अवमानना की ताकत का प्रयोग लोहार की हथौड़े की तरह किया जा रहा है.
कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया, 'प्रशांत भूषण. अवमानना की शक्ति का प्रयोग लोहार के हथौड़े की तरह किया जा रहा है. जब संविधान और कानूनों की रक्षा करने की आवश्यकता होती है तो न्यायालय असहाय क्यों होते हैं, दोनों के लिए समान तरीके से "अवमानना" दिखाते हैं. बड़े मुद्दे दांव पर लगे हैं. इतिहास हमें खारिज करने के लिए कोर्ट का मूल्यांकन करेगा.'
Prashant Bhushan
Contempt power being used as a sledgehammer
Why are Courts helpless when institutions that need to protect the constitution and the laws show “ open contempt " for both ?
Larger issues are at stake
History will judge the Court for having let us down
— Kapil Sibal (@KapilSibal) August 22, 2020
कपिल सिब्बल से पहले कोर्ट के रुख पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा था कि जो शख्स उच्च पद पर बैठता है, चाहे वो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या जज कोई भी हो, वो कुर्सी बैठने के लिए होती है ना कि खड़े होने के लिए. प्रशांत भूषण के ट्वीट के संदर्भ में जब अरुण शौरी से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें हैरानी हो रही है कि 280 कैरेक्टर लोकतंत्र के खंभे को हिला रहे हैं. उन्हें नहीं लगता है कि सुप्रीम कोर्ट की छवि इतनी नाजुक है. 280 कैरेक्टर से सुप्रीम कोर्ट अस्थिर नहीं हो जाता.
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बता दें कि अवमानना मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी करार दिया था. सजा पर सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने अपनी दलील में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए कोर्ट में कहा था कि, 'बोलने में विफलता कर्तव्य का अपमान होगा. दुख है कि मुझे अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया गया है, जिसकी महिमा मैंने एक दरबारी या जयजयकार के रूप में नहीं बल्कि 30 वर्षों से एक संरक्षक के रूप में बनाए रखने की कोशिश की है.'
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सुप्रीम कोर्ट में प्रशांत भूषण का कहना था, 'मैं सदमे में हूं और इस बात से निराश हूं कि अदालत इस मामले में मेरे इरादों का कोई सबूत दिए बिना इस निष्कर्ष पर पहुंची है. कोर्ट ने मुझे शिकायत की कॉपी नहीं दी. यह विश्वास करना मुश्किल है कि कोर्ट ने पाया कि मेरे ट्वीट ने संस्था की नींव को अस्थिर करने का प्रयास किया.' उन्होंने कहा, 'लोकतंत्र में आलोचना जरूरी है. हम ऐसे समय में रह रहे हैं जब संवैधानिक सिद्धांतों को सहेजना व्यक्तिगत निश्चिंतता से अधिक महत्वपूर्ण होना चाहिए. बोलने में असफल होना कर्तव्य का अपमान होगा. यह मेरे लिए बहुत ही बुरा होगा कि मैं अपनी प्रमाणिक टिप्पणी के लिए माफी मांगता रहूं.'