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करगिल दिवसः दो राज्यों से रिपोर्ट, कहीं शहीदों के परिजन मायूस तो कहीं धरने पर बैठे

सोमवार को एक ओर देश जहां करगिल पर विजय का जश्न मना रहा था, तो दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग थे जो अब भी मायूस थे. ये वो लोग हैं जिन्होंने करगिल में अपने शहीदों को खोया है. झारखंड में शहीदों के परिवार वाले आज भी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिल रही. वहीं, यूपी के लखनऊ में एक हमले में शहीद हुए जवान की बूढ़ी मां मदद के लिए धरने पर बैठी हैं.

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शहीदों के परिवार अब भी सरकार की ओर आस से देख रहे हैं.
शहीदों के परिवार अब भी सरकार की ओर आस से देख रहे हैं.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • झारखंड में मदद की आस में परिवार
  • लखनऊ में धरने पर बैठी बूढ़ी मां

सोमवार को एक ओर देश जहां करगिल पर विजय का जश्न मना रहा था, तो दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग थे जो अब भी मायूस थे. ये वो लोग हैं जिन्होंने करगिल में अपने शहीदों को खोया है. झारखंड में शहीदों के परिवार वाले आज भी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिल रही. वहीं, यूपी के लखनऊ में एक हमले में शहीद हुए जवान की बूढ़ी मां मदद के लिए धरने पर बैठी हैं.

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झारखंड की राजधानी रांची से 90 किमी दूर गुमला जिले पड़ता है. यहां के दाउदनगर पुग्गु में करगिल में शहीद हुए जान अगस्तुस एक्का का घर है. उनकी पत्नी माल्यानी एक्का बताती हैं कि राज्य सरकार की ओर से उन्हें कोई मदद नहीं मिली है. 2018 में पेंशन भी बंद हो गई थी. हालांकि, काफी कोशिशों के बाद 26 जुलाई 2020 से दोबारा शुरू हो गई. वो कहती हैं बच्चे जब छोटे थे तब उनके पति शहीद हो गए थे. अब बड़े हो गए हैं, लेकिन बेरोजगार हैं. बिहार रेजिमेंट से लेकर तमाम जगहों पर गुहार लगाने के बाद भी नौकरी नहीं मिली है.

इसी जिले के जशपुर रोड के करौंदी में शहीद बिरसा ओरान का घर है. उनकी पत्नी का कहना है कि इतने सालों में सबकुछ भुला दिया गया है. कोई पूछता तक नहीं है. वो कहती हैं कि घर में एक जवान बेटा है जो बेरोजगार है. उसे अब तक नौकरी नहीं मिली है. वो पूछती हैं कि क्या शहीद के परिवार को इतना मान-सम्मान भी नहीं मिलना चाहिए. 

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बिरसा मुंडा के परिवार से आने वाले रोशन मुंडा कहते हैं कि बलिदान चाहे किसी भी युद्ध में हुआ हो, छोटा या बड़ा नहीं होता. गलवान, उड़ी और पुलवामा के शहीदों के परिजनों को तमाम सहूलियतें दी जा रही हैं, ठीक है लेकिन करगिल में शहीद हुए जवानों के परिवारों को मत भुलाइए.

ये भी पढ़ें-- करगिल दिवस पर इजरायल ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि, बताया कैसे की थी युद्ध में भारत की मदद

लखनऊ में धरने पर बैठी बूढ़ी मां

यूपी की राजधानी लखनऊ में एक बूढ़ी मां भी मदद की आस में विजय दिवस के दिन धरने पर बैठीं. उनके बेटे विवेक सक्सेना बीएसएफ में सहायक कमांडेंट थे. 8 जनवरी 2003 को मणिपुर के चंदेल के साजिक तंपक गांव में 250 से ज्यादा उग्रवादियों से लड़ते-लड़ते विवेक शहीद हो गए थे. उनकी शहादत के 18 साल बीत जाने के बाद भी उनके परिवार को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है.

शहीद की मां सावित्री देवी अपने बेटे रंजीत के साथ अधिकारियों से लेकर तहसील प्रशासन तक गुहार लगा चुकी हैं, लेकिन कोई उनकी नहीं सुन रहा है. इसलिए वो अपने बेटे के साथ सोमवार को सरोजिनी नगर के कृष्णा लोक कॉलोनी स्थित शहीद विवेक सक्सेना के स्मारक स्थल पर धरने पर बैठ गईं.

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बेटे रंजीत के साथ धरने पर बैठीं शहीद विवेक सक्सेना की मां.

आज तक से बात करते हुए शहीद की मां सावित्री सक्सेना ने कहा कि सरकार ने ग्राम सभा में भूमि का आवंटन और एकमुश्त राशि समेत अन्य लाभ दिए जाने की घोषणा भी की थी लेकिन सरकार द्वारा घोषित कोई भी लाभ आज तक नहीं दिए गए. उन्होंने कहा कि अगर सरकार उनके बेटे को सम्मान नहीं दे सकती तो वो मेडल वापस करना चाहतीं हैं. उनकी शहादत के बाद उनके इस अदम्य साहस को देखते हुए शौर्य चक्र और पुलिस मेडल से सम्मानित किया था. 

इस मामले पर सरोजिनी नगर के तहसीलदार अपनी गलती को छुपाने की कोशिश करते नजर आए. मजिस्ट्रेट उमेश कुमार सिंह का कहना है कि मूल निवासी ना होने के चलते उनका जमीन का आवंटन नहीं हो सका है. हालांकि आज तक के सवाल पर बचते हुए उन्होंने मामले को जल्द सुनकर निपटाने की बात कही है.

 

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