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कर्नाटक: 1994 का वो चुनाव, जिसमें जगदीश शेट्टार ने CM बोम्मई को हराया

शेट्टार आरएसएस और जनसंघ के जमाने से ही बीजेपी में ही रहे हैं. उनके पिता शिवप्पा शेट्टार भी जनसंघ के साथ थे. वहीं बसवराज बोम्मई जनता दल से साल 2008 में बीजेपी में आए. शेट्टार ने साल 1994 के चुनावों में ही बोम्मई को हराया था.

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बसवराज बोम्मई और जगदीश शेट्टार (फाइल फोटो)
बसवराज बोम्मई और जगदीश शेट्टार (फाइल फोटो)

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और लिंगायत समुदाय के नेता व पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार के रास्ते अलग-अलग हो चुके हैं. बोम्मई कर्नाटक में बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं और उम्मीद है कि वह मई में होने वाले चुनावों में अपनी पार्टी को सत्ता में वापस ला सकते हैं. वहीं शेट्टार भी बीजेपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उन्होंने साल 2012 में सत्ता संभाली थी और 2013 के चुनावों में प्रदेश में पार्टी की सत्ता में वापसी नहीं करा पाए थे. हालांकि शेट्टार ने हाल ही में चुनाव लड़ने के लिए टिकट से इनकार किए जाने के बाद बीजेपी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन कर ली और फिर से सुर्खियों में आ गए. 

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शेट्टार आरएसएस और जनसंघ के जमाने से ही बीजेपी में ही रहे हैं. उनके पिता शिवप्पा शेट्टार भी जनसंघ के साथ थे और जब 1990 के दशक में हुबली में ईदगाह मैदान में बवाल हुआ था, जगदीश शेट्टार इसका हिस्सा थे.  

बेंगलुरु से करीब 400 किमी दूर मध्य हुबली शहर में ईदगाह मैदान है, जहां मुस्लिम समुदाय को लंबी अवधि के लिए लीज पर जमीन मिली हुई है और वो यहां साल में दो बार ईद की नमाज पढ़ते हैं. इस मैदान को कित्तूर रानी चेन्नम्मा मैदान भी कहा जाता है, अन्य समय में खेलों और सार्वजनिक बैठकों के लिए इसका उपयोग किया जाता है, लेकिन नमाज के लिए जमीन का इस्तेमाल करने का अधिकार रखने वाले मुस्लिम समूह अंजुमन-ए-इस्लाम ने जब जमीन पर निर्माण करना चाहा, तो माहौल खराब होने लगा. कई लोग इस निर्माण के खिलाफ कोर्ट गए थे. यह मुद्दा सालों तक अदालतों में घूमता रहा  और यह हिंदुत्व के उदय के लिए एक शुरुआती बिंदु बन गया- जिसे अब हिंदुत्व के रूप में जाना जाता है और इसके साथ ही राज्य में बीजेपी का उदय भी हुआ.  

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1992 में हुआ था बवाल 

साल 1992 में बीजेपी समेत दक्षिणपंथी समूहों ने गणतंत्र दिवस के दिन इस मैदान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया. अंजुमन-ए-इस्लाम ने इसका विरोध किया, लेकिन निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए ध्वज को फहराया गया और फिर पुलिस ने हटा दिया. बाद में उमा भारती समेत कई अन्य नेताओं ने भी स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने का प्रयास किया, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जल्द ही हिंसा भड़क उठी. 

शेट्टार ने बोम्मई को चुनाव में हराया 

ईदगाह मैदान का मुद्दा, राज्य में बीजेपी के उदय की प्रमुख वजहों में से एक माना जाता है. जहां बीजेपी दक्षिण के दूसरे राज्यों में कहीं नहीं है, वहां कर्नाटक में वो कई बार सत्ता पर काबिज हो चुकी है. इसी विवाद के बीच साल 1994 में जगदीश शेट्टार हुबली ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े और पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए. यह एक ऐसी पार्टी में उनके चुनावी पदार्पण के लिए एकदम सही समय था, जो अभी भी राज्य में अपने पांव जमा रही थी. उन्होंने जिस उम्मीदवार को हराया था, वह कोई और नहीं बल्कि बसवराज बोम्मई थे. बसवराज बोम्मई तब जनता दल के उम्मीदवार थे और शेट्टार ने उन्हें करीब 16,000 वोटों से शिकस्त दी थी.  

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2008 में बीजेपी में शामिल हुए बोम्मई 

शेट्टार की तरह बोम्मई भी एक राजनीतिक परिवार में पैदा हुए थे. उनके पिता एसआर बोम्मई 1980 के दशक के आखिरी में राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वह 2008 में भाजपा में शामिल हुए और पार्टी में आगे बढ़े. बोम्मई गृह मंत्री थे जब उन्हें बीएस येदियुरप्पा की जगह राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया था. जब बोम्मई ने अपने मंत्रिमंडल का गठन किया, तो यह उम्मीद की गई थी कि वरिष्ठ नेता जगदीश शेट्टार मंत्रालय में शामिल होंगे क्योंकि शेट्टार, येदियुरप्पा के मंत्रिमंडल का हिस्सा रह चुके थे. हालांकि शेट्टार ने यह कहते हुए बोम्मई की कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया कि वह मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अपने से जूनियर व्यक्ति के मंत्रिमंडल में शामिल होना ठीक नहीं होगा.  

शेट्टार के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने से संदेश गया कि वह खुद को बोम्मई का सीनियर मानते हैं. हालांकि दोनों की उम्र में पांच साल से कम का अंतर है. हो सकता है कि शेट्टार खुद को सीएम पद का दावेदार मानते हों या फिर उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए खुद को मंत्री होने से वंचित कर दिया.  

शेट्टार ने बीएल संतोष पर लगाया था आरोप 

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वहीं जब बोम्मई से पूछा गया कि जीत का सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड और साफ छवि के बावजूद शेट्टार को 2023 के चुनावों के लिए टिकट क्यों नहीं दिया गया. बोम्मई ने निर्णय के लिए केंद्रीय नेतृत्व पर जोर दिया. शेट्टार खुद कहते हैं कि यह फैसला पार्टी महासचिव बीएल संतोष की वजह से लिया गया. 

जब शेट्टार ने टिकट नहीं मिलने पर अपनी नाराजगी जाहिर की तो केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और प्रह्लाद जोशी के साथ बोम्मई हुबली में उनके घर गए. बोम्मई ने बताया कि पूर्व सीएम को मनाने के लिए अमित शाह ने फोन भी किया था और उन्हें दिल्ली में बड़ा पद देने का वादा भी किया था, लेकिन शेट्टार को मनाने की ये सारी कोशिशें नाकाम रहीं. पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि राज्यसभा सीट और दिल्ली में बड़ा पद देने की पेशकश की गई थी, वो उनके सार्वजनिक विरोध के बाद ही आई थी. शेट्टार और बोम्मई के बीच तीन राउंड ऐसे थे, जिनमें बोम्मई कभी नहीं जीत पाए.  

बोम्मई को शेट्टार से मिली हार 

दशकों से, बोम्मई को शेट्टार से हार ही मिली है, चाहे वो शुरुआती चुनावी हार हो, उनके द्वारा मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार करना या फिर अब शेट्टार को पार्टी में बनाए रखने के लिए एक असफल प्रयास. राजनीति से हटकर अगर देखा जाए तो दोनों लिंगायत नेता एक-दूसरे के काफी करीबी हैं, लेकिन कम से कम राजनीति रूप से बोम्मई की पार्टी में अपने सीनियर नेता के साथ यादें आनंदमय नहीं रही हैं. 

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(रिपोर्ट- माया शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार)

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