scorecardresearch
 

कर्नाटक चुनाव में बागी फैक्टर: दलबदलू उम्मीदवारों के जीतने की कितनी संभावनाएं?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही नेताओं का दल बदलने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. हालांकि दलबदलुओं के चुनाव जीतने की कितनी संभावनाएं हैं, बीते तीन विधानसभा चुनाव के विश्लेषण से समझते हैं.

Advertisement
X
हाल ही में बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए जगदीश शेट्टार (फाइल फोटो)
हाल ही में बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए जगदीश शेट्टार (फाइल फोटो)

कर्नाटक चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज कई नेताओं ने एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थाम लिया है. इनमें सबसे ज्यादा चर्चा प्रदेश के पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी की है, जिन्हें बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो वो कांग्रेस में शामिल हो गए. इसके अलावा नेताओं एक लंबी लिस्ट है, जो इधर-उधर से हुए हैं. इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस टीम (DIU) के एक विश्लेषण से पता चलता है कि अगर कोई दलबदलू बीजेपी या कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, तो जनता दल (सेक्युलर) की तुलना में उसके जीतने की संभावना अधिक रही है. 

Advertisement

DIU ने राज्य के बीते तीन विधानसभा चुनावों- 2008, 2013 और 2018 के आंकड़ों का विश्लेषण किया. साल 2008 में 107 दल बदलने वाले नेताओं ने चुनाव लड़ा, जिनमें से 25 उम्मीदवार जीते और 82 हारे. साल 2013 में 103 दलबदलुओं ने चुनाव लड़ा, इनमें से 16 जीते और 87 हारे. इसके अलावा बीते चुनावों यानी 2018 में एक दल से दूसरे में जाने के बाद चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या बढ़कर 131 हो गई, जिनमें से 37 जीते और 94 उम्मीदवार चुनाव हार गए.  

फाइल फोटो

कुल मिलाकर बीते तीन विधानसभा चुनावों में 341 दलबदलू उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, जिनमें से 78 यानी केवल 23 फीसदी ही जीते, जबकि 263 हारे. 2018 विधानसभा चुनावों में सबसे अधिक संख्या के साथ, समय के साथ-साथ टर्नकोट उम्मीदवारों की संख्या बढ़ रही है. हालांकि, चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या उस हिसाब से नहीं बढ़ी है.

Advertisement

जेडीएस में दलबदलू कम जीतते हैं   

पार्टी बदलकर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत अलग-अलग दलों के बीच अलग-अलग रहा. बीते दो चुनावों में सबसे ज्यादा दलबदलू नेता बीजेपी की टिकट पर लड़कर चुनाव जीते. आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले तीन चुनावों में दूसरे दलों से जेडीएस में आने वाले नेता सिर्फ 20 फीसदी ही चुनाव जीत पाए, जबकि बीजेपी या कांग्रेस के उम्मीदवारों के रूप में चुनाव लड़ने वाले दलबदलुओं के जीतने की संभावना करीब 40 फीसदी रही है. 

फाइल फोटो

आंकड़ों के रुझान से पता चलता है कि दलबदलू सत्ता वाली पार्टी से चुनाव लड़ने पर अधिकतर जीतते हैं या फिर जिस पार्टी के जीतने की संभावना होती है. आंकड़े यह भी संकेत देते हैं कि दूसरे दलों की तुलना में दलबदलू नेताओं के लिए बीजेपी अधिक आकर्षक है. हो सकता है कि इसकी वजह बीजेपी की लोकप्रियता और चुनाव में लाभ हो. 

यूपी-गुजरात में कम जीतते हैं दलबदलू 

आंकड़ों के मुताबिक, कुछ दलबदलू उम्मीदवार चुनावी जीत हासिल कर सकते हैं, उनमें से ज्यादातर राज्य में ऐसा करने में विफल रहते हैं. यह राजनीतिक अस्थिरता के लिए संभावित जोखिम और राजनीतिक प्रतिनिधियों के बीच वफादारी की कमी को भी दिखाता है, जब एक राजनीतिक प्रणाली में दलबदलू व्यवहार प्रचलित हो जाता है. उदाहरण के लिए यूपी और गुजरात जैसे राज्यों में दलबदलुओं के चुनाव जीतने की क्षमता बहुत कम है.  

Advertisement

261 में से सिर्फ 36 उम्मीदवार जीते 

गुजरात में अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, साल 1998 और 2017  के बीच 261 दलबदलुओं ने चुनाव लड़ा. इनमें से सिर्फ 36 उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए यानी सात में से सिर्फ एक उम्मीदवार की जीत हुई. DIU के विश्लेषण में पाया गया कि बागियों की जीतने की क्षमता पार्टियों में शामिल होने के बाद भी नहीं सुधरी.  

यूपी में 10 चुनावों में सिर्फ 15 फीसदी ही जीते 

उत्तर प्रदेश में स्थिति थोड़ी अलग रही है. जैसा कि 1980 और 2017 के बीच हुए पिछले 10 विधानसभा चुनावों के औसत से पता चलता है कि 15 प्रतिशत से भी कम पार्टी के उम्मीदवार विधानसभा में दोबारा गए, जो कि बहुत कम है. आंकड़ों से पता चलता है कि चुनाव से पहले राजनीतिक दल बदलने वालों से ज्यादा सिटिंग विधायक के जीतने की संभावना अधिक होती है. 

 

Advertisement
Advertisement