चुनावी राज्य कर्नाटक में बीते एक दशक में एक चिंताजनक प्रवृत्ति देखी जा रही है. दरअसल विधानसभा चुनावों में आपराधिक मामलों का सामना कर रहे उम्मीदवारों के जीतने की संख्या बढ़ती जा रही है.
आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले उम्मीदवारों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है यानी राजनीतिक दल ऐसे लोगों को टिकट दे रहे हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं. इसके साथ ही आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों के जीतने की संख्या भी बढ़ी है. इसे नीचे दिए गए अलग-अलग प्वाइंट्स में समझते हैं.
- कर्नाटक में साल 2004 से संसद और विधानसभा चुनाव लड़ने वाले 20 में से 3 उम्मीदवारों ने अपने दागी बैकग्राउंड की सूचना दी. इन 3 दागी उम्मीदवारों में से एक को पॉलिसीमेकर के रूप में चुना गया था.
- पिछले तीन विधानसभा चुनावों में आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की हिस्सेदारी में पांच प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि राज्य में जीत के आंकड़े में करीब 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
- आपराधिक मामलों वाले जीतने वाले उम्मीदवारों का प्रतिशत 2008 में 20 प्रतिशत से बढ़कर क्रमशः 2013 और 2018 में 34 प्रतिशत और 35 प्रतिशत हो गया.
- कर्नाटक की दो बड़ी पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस में बीते दोनों विधानसभा चुनावों में दागी विधायकों की हिस्सेदारी कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी में रही है.
यह क्यों मायने रखता है?
चुनाव जीतने वाले दागी उम्मीदवारों की संख्या में बढ़ोतरी चिंता का विषय है और राजनीतिक दलों की उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है.
आंकड़ों से समझते हैं-
कर्नाटक में आपराधिक मामलों वाले विजयी उम्मीदवारों का प्रतिशत बढ़ा है. साल 2018 में 221 में से 77 विधायकों यानी 35 फीसदी ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की थी. जबकि साल 2013 में विधानसभा चुनाव के दौरान 218 में से 74 विधायकों यानी 34 फीसदी ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की जानकारी दी थी.
बीजेपी ने बीते चुनावों में आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों की संख्या में बढ़ोतरी की है. इसके साथ ही चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार भी बीजेपी में तेजी से बढ़े हैं. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार, साल 2013 में चुने गए पार्टी के लगभग 33 प्रतिशत उम्मीदवार आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे थे. इसके बाद साल 2018 में यह आंकड़ा बढ़कर 41 फीसदी हो गया.
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी, साल 2018 में इस पार्टी के चुने गए विधायकों की संख्या में से 30 फीसदी आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे थे. इसके अलावा राज्य के तीसरे राजनीतिक दल जनता दल (सेक्युलर) के भी 30 फीसदी विधायकों ने हलफनामों में अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे. डेटा से पता चलता है कि कई उम्मीदवार दागी बैकग्राउंड वाले हैं और उनमें से कई राज्य विधानसभाओं के लिए चुने जाते हैं.
साल 2008 और 2018 के बीच आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले उम्मीदवारों की संख्या में मामूली तेजी के बाद बावजूद कर्नाटक कई राज्यों की तुलना में काफी नीचे है. हालांकि राज्य में ऐसे उम्मीदवारों के चुनाव जीतना एक चिंताजनक प्रवृत्ति है.
हाल की एक रिपोर्ट में एडीआर और कर्नाटक इलेक्शन वॉच ने 801 सांसदों/विधायकों की वित्तीय घोषणाओं और लंबित आपराधिक मामलों का विश्लेषण किया, जिन्होंने साल 2004 से विधानसभा या लोकसभा का चुनाव जीता है. इससे पता चला है कि 30 फीसदी यानी 239 सांसद/विधायक ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे और 19 फीसदी यानी 150 सांसद/विधायक के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित थे.
वाशिंगटन में कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो मिलन वैष्णव ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीतिक दल कूटनीति की वजह से भ्रष्ट राजनेताओं और अपराधियों की जांच करने और उनकी जगह स्वच्छ, ईमानदार उम्मीदवारों को रिप्लेस करने से बचते हैं.
वैष्णव ने कहा, "राजनीतिक दलों के लिए फंड एक महत्वपूर्ण फैक्टर है. चुनाव तेजी से महंगे हुए हैं, जबकि पार्टी संगठन कमजोर हो गए हैं. पार्टियां मजबूत जेब वाले उम्मीदवारों के लिए बेताब हैं, जो न केवल अपने अभियानों को फंड करें बल्कि अन्य उम्मीदवारों को सब्सिडी देने के विशेषाधिकार के लिए पार्टियों को भुगतान भी कर सकते हैं." वैष्णव ने कहा कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार आमतौर पर स्वच्छ और ईमानदार प्रत्याशियों से अधिक अमीर होते हैं, इसलिए उनके पास चुनाव लड़ने के साधन और प्रोत्साहन हैं.
अब आगे क्या होगा?
राजनीतिक सफलता का सबसे आखिरी बेंचमार्क जीत को माना जाता है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से दागी उम्मीदवारों की जीत की अधिक संभावना लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है. डेटा कर्नाटक में निष्पक्ष और नैतिक चुनाव सुनिश्चित करने के लिए उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता पर जोर डालता है.