scorecardresearch
 

पाकिस्तानी सहित 3 युवक कर्नाटक HC से रिहा, लगा था आतंकवाद का आरोप

आरोपियों में बेंगलुरु का सैयद अब्दुल रहमान, कोलार जिले के चिंतामणि का अफसर पाशा उर्फ ​​खुशीरुद्दीन और पाकिस्तान के कराची के मोहम्मद फहद खोया शामिल थे. इन तीनों पर यूएपीए और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के कई प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे.

Advertisement
X
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

अदालत ने एक पाकिस्तानी नागरिक समेत 3 लोगों को यूएपीए के तहत आरोपों से बरी कर दिया है. इन लोगों पर 2012 में बेंगलुरु सेंट्रल जेल के अंदर कथित तौर पर आतंकी साजिश रचने का आरोप था. अदालत ने राज्य सरकार की अभियोजन स्वीकृति में प्रक्रियागत खामी पाई, जिसके कारण इन लोगों को बरी कर दिया गया.

Advertisement

आरोपियों में बेंगलुरु का सैयद अब्दुल रहमान, कोलार जिले के चिंतामणि का अफसर पाशा उर्फ ​​खुशीरुद्दीन और पाकिस्तान के कराची के मोहम्मद फहद खोया शामिल थे. इन तीनों पर यूएपीए और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के कई प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे. हालांकि, उन्हें इन आरोपों से बरी करते हुए, अदालत ने शस्त्र अधिनियम के तहत रहमान की सजा को बरकरार रखा है.

रहमान को अवैध रूप से रिवॉल्वर रखने और विस्फोटक छिपाने का दोषी पाया गया था, जिसके कारण उसे 10 साल की सजा सुनाई गई. न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार और न्यायमूर्ति जे एम खाजी की खंडपीठ ने पाशा और खोया की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया, जिसमें उनकी 2023 की सजा और आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी गई थी.

अदालत ने कहा कि यूएपीए के तहत मंजूरी देने से पहले समीक्षा समिति की रिपोर्ट पर विचार करना अनिवार्य है. चूंकि ट्रायल कोर्ट ने इस प्रक्रियागत चूक को नजरअंदाज कर दिया, इसलिए उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि मंजूरी आदेश अवैध था, जिससे यूएपीए के तहत आरोप गलत साबित हुए. अदालत ने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के लिए युवाओं की भर्ती करने और बेंगलुरु में हमले करने की आपराधिक साजिश के आरोपों को साबित करने के लिए स्वतंत्र सबूतों की अनुपस्थिति पर भी ध्यान दिया, जिसकी कथित तौर पर आरोपी के कारावास के दौरान योजना बनाई गई थी.

Live TV

Advertisement
Advertisement