कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को 8वें दिन सुनवाई हुई. इस दौरान कर्नाटक सरकार ने जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच के सामने दावा किया कि 2021 तक स्कूलों में लड़कियां हिजाब नहीं पहनती थीं. 2022 में इसे लेकर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने सोशल मीडिया पर मूवमेंट चलाया. सोची समझी साजिश के तहत इसमें बच्चों को शामिल किया गया.
कर्नाटक सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता स्टूडेंट्स पीएफआई से प्रेरित हैं. हाईकोर्ट ने भी सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने में अज्ञात लोगों का हाथ माना था. पुलिस ने भी हाईकोर्ट में इसे लेकर साक्ष्य पेश किए थे. उन्होंने कहा कि 2004 से 2021 तक हिजाब को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि सरकार पीएफआई के खिलाफ चार्जशीट की कॉपी कोर्ट में पेश करेगी.
2021 तक ड्रेस को लेकर नहीं हुआ विवाद- कर्नाटक सरकार
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि अगर सरकार ने 5 फरवरी की अधिसूचना जारी नहीं की होती तो यह कर्तव्य की अवहेलना होती. तुषार मेहता के मुताबिक, 29 मार्च 2013 को उडुपी के पीयू कॉलेज में प्रस्ताव पास हुआ था कि ड्रेस तय की जाएगी. इसके बाद ड्रेस तय की गई. इसमें हिजाब नहीं था. हर कोई ड्रेस में आता था. 2014 में कर्नाटक सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर पीयू कॉलेजों में कॉलेज डेवलेपमेंट कमेटी (College Development Committee) बनाने का निर्देश दिया. 1 फरवरी 2014 को CDC के लिए सर्कुलर जारी किया गया. 2018 में उडुपी के पीयू कॉलेज की CDC ने ड्रेस के कलर और प्रकार को निर्धारित करते हुए सर्कुलर जारी किया. 2019 में फिर प्रस्ताव पास हुआ कि ड्रेस जारी रहेगी. याचिकाकर्ताओं ने 2021 में पीयू कॉलेज में एडमिशन लिया और नियमों का पालन करने का संकल्प लिया. उन्होंने अब तक ड्रेस कोड का पालन किया जा रहा था.
PFI ने चलाया था मूवमेंट
तुषार मेहता के मुताबिक, 2022 में सोशल मीडिया पर पीएफआई के द्वारा हिजाब को लेकर मूवमेंट शुरू किया गया. सोशल मीडिया पर मूवमेंट को लोगों की धार्मिक भावनाओं के आधार पर आंदोलन बनाने के लिए तैयार किया गया था. सोशल मीडिया के जरिए लोगों से हिजाब पहनने को कहा गया. पीएफआई के खिलाफ मामला भी दर्ज किया गया था. इसे लेकर चार्जशीट भी दाखिल की गई है. यह कुछ बच्चों का काम नहीं है, जो हिजाब पहनना चाहते हैं. ये सुनियोजित साजिश है. ये स्टूडेंट्स पीएफआई की सलाह के मुताबिक काम कर रहे हैं.
सुनवाई के दौरान सबरीमला का जिक्र भी आया!
हिजाब विवाद में सुप्रीम कोर्ट में मौखिल सुनवाई पूरी हो गई है. कोर्ट ने सभी पक्षों को बाकी दलीलों को लिखित में दाखिल करने के लिए कहा है. सुनवाई के दौरान जस्टिस धूलिया ने कहा कि क्या हम आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को अलग कर स्थिति से नहीं निपट सकते?
इस पर याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत दवे ने जवाब दिया कि हाईकोर्ट ने तो केवल जरूरी धार्मिक प्रथा पर ही मामले को निपटा दिया. कोर्ट को इस सवाल का फैसला करना होगा कि क्या कोई धार्मिक प्रथा धर्म का एक अभिन्न अंग है या नहीं, हमेशा इसबात पर सवाल उठेगा कि धर्म का पालन करने वाले समुदाय द्वारा इसे ऐसा माना जाता है या नहीं. एक समुदाय तय करता है कि कौन सी प्रथा उसके धर्म का एक अभिन्न अंग है, क्योंकि समुदाय मेअधिकांश लोगों की राय सम्मलित होती है. अगर समुदाय की आवाज नहीं सुनी गई तो विरोध का का स्वर उठेगा.
कोर्ट ने कहा- स्कूलों में असमानता न रहे, इसलिए ड्रेस लागू
जस्टिस गुप्ता ने कहा कि ड्रेस का विचार स्कूलों में असमानता के विचार से बचना है. कई स्कूलों में असमानता देखी जा सकती है, इसलिए ड्रेस की जरूरत महसूस हुई. इसमें अमीरी या गरीबी नहीं दिखा सकते. दवे ने जवाब दिया कि मैं बिल्कुल सहमत हूं कि हर संस्था को अपनी पहचान पसंद है. सबरीमाला फैसले और हिजाब मामले में हाईकोर्ट के फैसले में अंतर है.
जस्टिस गुप्ता ने फिर पूछा कि वहां सभी को मंदिर में प्रवेश का मौलिक अधिकार नहीं है? दवे ने कहा कि नहीं, अब फैसले के बाद यह तय हो गया है कि हर कोई मंदिरों में प्रवेश कर सकता है. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि सबरीमला मामला अभी 9 जजों की पीठ के पास लंबित है। लेकिन हम उस पर नहीं जा रहे हैं.
दुष्यंत दवे ने कहा, लड़कियां हिजाब पहनना चाहती हैं, तो इससे किसके संवैधानिक अधिकार का हनन हुआ है? दूसरे छात्रों का या स्कूल का? सार्वजनिक व्यवस्था का पहलू. यही एकमात्र आधार है जिस पर हमारे खिलाफ तर्क दिया जा सकता है. इससे किसी की शांति, सुरक्षा भंग नहीं होती और शांति को कोई खतरा नहीं है. इस मामले में गरिमा का सवाल बहुत महत्वपूर्ण है. जैसे, एक हिंदू महिला अपने सिर को ढकती है यह बहुत सम्मानजनक है.