Hijab Row: ढाई महीने से चल रहे कर्नाटक के हिजाब विवाद में हाईकोर्ट में मंगलवार को फैसला सुना दिया. अब यह विवाद हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है. दरअसल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब ना इस्लामिक आस्था के मुताबिक अनिवार्य प्रथा है, ना ही ये अधिकार है. अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि इस्लाम में जो महिलाएं हिजाब नहीं पहनतीं, उनको पापी नहीं बताया गया है.
हाईकोर्ट का फैसला आते ही जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे मुसलमानों के लिए हानिकारक बताते हुए कहा कि इसका धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव पड़ता है. जबकि कर्नाटक हाईकोर्ट के 129 पेज के फैसले में हिजाब को लेकर कुरान मजीद और हदीस के आधार पर अपने निर्णय को तर्क, न्याय और विधि सम्मत बताया है और कहा है कि इन्हीं धार्मिक पुस्तकों में हिजाब पहनने को लेकर सिर्फ सिफारिश की गई है, अनिवार्यता नहीं रखी गई है, तो सवाल है कि क्या छात्राएं अब भी फैसला खारिज करेंगी?
आज अपना फैसला सुनाने के दौरान हाईकोर्ट में तीन जजों की पीठ ने यह भी कहा कि इस पूरे हिजाब विवाद में कुछ अनदेखे यानी छिपे हुए तत्व हैं, जिन्हें पहचान करके कार्रवाई करनी जरूरी है. सबसे बड़ी चिंता की बात यही है, क्योंकि ऐसे तत्वों के कारण ही हिजाब विवाद में मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा हाशिए पर पहुंच रही है.
जनवरी के महीने में कर्नाटक के उडुपी में एक कॉलेज से शुरू हुआ हिजाब विवाद कर्नाटक हाईकोर्ट से आए फैसले के बाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. तीन महीने से चल रहे इस मुद्दे में छात्राएं शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहन सकती हैं या नहीं, इससे ज्यादा विवाद इस बात पर शुरू हो गया कि हिजाब इस्लाम में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा है या नहीं?
विवाद अब इस बात पर बढ़ रहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल दी जा रही है. इस विवाद में अब ये मोड़ भी आ गया है कि जानबूझकर इस्लामिक परंपराओं को पूरा करने से रोका जा रहा है, इसीलिए आपको आज समझना जरूरी है कि हिजाब का विवाद यहां तक कैसे पहुंच गया?
पहला सवाल: हिजाब विवाद में लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला क्या है ?
- मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और इस प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है.
- यानी संविधान में अनुच्छेद 25 के मुताबिक सभी नागरिकों को स्वतंत्र रूप से धर्म के आचरण, अभ्यास और प्रचार के अधिकार में हिजाब पहनने का अधिकार नहीं आता है.
- राज्य की तरफ से स्कूल ड्रेस का निर्धारण अनुच्छेद 25 के तहत छात्रों के अधिकारों पर एक उचित प्रतिबंध है. इस तरह अदालत ने मुस्लिम छात्राओं की तरफ से हिजाब पहनने पर सरकारी प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज में प्रवेश से इनकार को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी.
दूसरा सवाल: मुद्दा हिजाब पहनकर कॉलेज में आने का था तो फैसला हिजाब की धर्म के मुताबिक अनिवार्य ना बताने पर क्यों आया ?
- इसके लिए आजतक ने सीधे कर्नाटक में एडवोकेट जनरल प्रबुलिंग नवादिकी से जानकारी मांगी. नवादिकी के मुताबिक, पहला सवाल था कि हिजाब धार्मिक दृष्टिकोण से अनिवार्य है? सुप्रीम कोर्ट के सबरीमाला केस में दिए फैसले के संदर्भ में अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कोई प्रमाण पेश नहीं किया कि ये धार्मिक रूप से अनिवार्य है. इसलिए कोर्ट ने इसे मौलिक अधिकार नहीं माना है.
- यानी कर्नाटक की छात्राओं की तरफ से लगी 8 याचिकाओं में एक याचिका ये भी थी कि हिजाब जैसी धार्मिक प्रथा में दखल ना देने के लिए अदालत निर्देश दे, इसीलिए अदालत ने मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने को इस्लामी आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं माना.
तीसरा सवाल: क्या हिजाब से बड़ा मुद्दा अब ये बनने जा रहा है कि कैसे हिजाब को अनिवार्य धार्मिक प्रथा मानने से इनकार किया गया?
- इसके लिए आजतक ने मुस्लिम धर्मगुरुओं और मुस्लिम वोट की राजनीति करने वाले नेताओं से जवाब पूछा है. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, हम असहमत हैं, क्योंकि ये फंडामेंटल राइट, स्पीच, रीलिजन, एक्सप्रेशन को खत्म करता है. संविधान की प्रस्तावना में लिखा है, अगर मेरा बिलीफ है कि सिर पर हिजाब पहनूंगी तो मेरा अख्तियार है, आप क्यों देखें कि एसेंशियल है कि नहीं. हम यही तो कह रहे हैं एसेंशियलिटी का टेस्ट कोर्ट कैसे करेगा, इसलिए अपील करने की जरूरत है.
- कादरिया इंटरेनशनल ऑर्गेनाइजेशन प्रमुख मौलाना सईद उल कादरी ने कहा कि इस्लाम में कोई चीज जरूरी है या नहीं, हराम है या हलाल है? ये सब चीज कुरान शरीफ की मुक्कमिल तालीम से पता चलता है. हदीसों का अध्ययन करके समझाएं, उसी से शरीयत बनी है, उसी से हमारा पर्सनल लॉ बना है. अब कोर्ट कह रहा है कि हिजाब एसेंशियल पार्ट इस्लाम है या नहीं, ये कोर्ट में जज नहीं बल्कि इस्लामिक स्कॉलर तैय करते हैं. ये जजमेंट आया है तो हिंदुस्तानी कानून के हिसाब से सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे कि ये हमारा पर्सनल लॉ है. क्या एसेंशियल है और क्या नहीं? ये हदीस के मुताबिक करेंगे. कोर्ट का जजमेंट फाइनल नहीं, हम सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे.
- यही कारण है कि अब सुप्रीम कोर्ट में छह मुस्लिम छात्राओं की तरफ से याचिका दायर कर दी गई है, जिसमें से पांच छात्राएं वहीं हैं जो हाईकोर्ट भी गई थीं. मांग रखी है कि कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगाए.
चौथा सवाल: क्या कर्नाटक की छात्राएं हाईकोर्ट का फैसला नहीं मानने वाली हैं ?
सवाल की वजह समझने के लिए कुछ वीडियो और तस्वीरें काफी हैं जिनमें देखा जा सकता है कि हाईकोर्ट की तरफ से हिजाब को लेकर आए फैसले के बाद मुस्लिम छात्राएं सरकारी स्कूल से परीक्षा का बायकॉट करके बाहर जाने लगीं. कर्नाटक के यादगीर में एक सरकारी कॉलेज से ऐसी 35 छात्राओं ने परीक्षा का बहिष्कार कर दिया. प्रिंसिपल के समझाने के बावजूद छात्राएं एग्जाम हॉल से बाहर चली गईं.
पांचवां सवाल: क्या मुस्लिमों को लगता है कि हिजाब को अनिवार्य धार्मिक प्रथा ना मानने का हाईकोर्ट का फैसला गलत है ?
करीब 74 दिन से कर्नाटक में चल रहे इस विवाद में आए फैसले के बाद भी मुस्लिम छात्राएं इसे इंसाफ नहीं मानती हैं, क्योंकि इनकी दलील ये है कि हिजाब पहनकर स्कूल आने से रोकना संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का हनन है. जबकि हाईकोर्ट ने धार्मिक किताबों को गहनता से पढ़ने और दलीलें सुनने के बाद माना है कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों में हिजाब नहीं आता,क्योंकि ये इस्लामिक आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं.
(दिल्ली से हिमांशु मिश्रा, मिलन शर्मा, संजय शर्मा और बेंगलुरु से नागार्जुन के साथ प्रमोद माघव की रिपोर्ट)