केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि फिल्मों में दिखाई जाने वाली हिंसा का समाज पर गहरा असर पड़ता है, लेकिन इसे नियंत्रित करने के लिए सरकार की हस्तक्षेप करने की कुछ सीमाएं हैं. हाई कोर्ट ने टिप्पणी की है कि हिंसा को महिमामंडित करने वाली फिल्मों के निर्माताओं को इस पर विचार करना चाहिए.
महिला आयोग ने उठाया फिल्मों में बढ़ती हिंसा का मुद्दा
यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जब राज्य महिला आयोग के वकील की ओर से फिल्मों में बढ़ती हिंसा का मुद्दा उठाया गया है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस ए.के. जयशंकरन नांबियार और जस्टिस सी.एस. सुधा की विशेष पीठ कर रही थी, जो हेमा कमेटी रिपोर्ट से जुड़े मामलों पर विचार कर रही है.
बता दें कि हेमा कमेटी रिपोर्ट 2017 में केरल सरकार द्वारा गठित एक विशेष कमेटी की रिपोर्ट है, जिसका उद्देश्य मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के खिलाफ शोषण और भेदभाव की जांच करना था.
'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी एक अहम मुद्दा'
हाई कोर्ट ने कहा, 'मीडिया में हिंसा के महिमामंडन का गहरा असर पड़ता है, लेकिन सवाल यह है कि इसमें सरकार कितना हस्तक्षेप कर सकती है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी एक महत्वपूर्ण पहलू है. हमें यह भी सोचना होगा कि क्या फिल्में सिर्फ समाज में मौजूद हिंसा को प्रतिबिंबित कर रही हैं?'
इसके अलावा कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है कि मनोरंजन उद्योग में श्रमिकों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. हाई कोर्ट 4 अप्रैल को हेमा कमेटी की रिपोर्ट से जुड़ी याचिकाओं के एक समूह पर फिर से विचार करेगा.