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लक्षद्वीप पहुंचने में अब 5 घंटे और बचेंगे, वेसल पराली से सिर्फ 7 घंटे में पहुंचा टूरिस्ट्स का पहला बैच

लक्षद्वीप जाने वाले यात्रियों को अब 5 घंटे कम समय लगेगा. यहां सरकार ने पराली वेसल सर्विस शुरूी की है. एक वेसल 160 यात्रियों के पहले बैच को लेकर लक्षद्वीप पहुंच भी चुकी है. गुरुवार को पराली ने पर्यटकों को मंगलुरु के पुराने बंदरगाह तक केवल 7 घंटे में पहुंचाया. जबकि, पहले 13 घंटे लगते थे.

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A picture of Lakshadweep (Credits: PTI)
A picture of Lakshadweep (Credits: PTI)

लक्षद्वीप के टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सरकार पर्यटकों के लिए एक के बाद एक कई सुविधाएं मुहैया करा रही है. इसी क्रम में अब सरकार ने पराली नाम की एक नई वेसल सर्विस शुरू की है. इस हाईस्पीड वेसल सर्विस के कारण लक्षद्वीप जाने का समय 5 घंटे तक कम हो गया है. पराली 160 यात्रियों के पहले बैच को लेकर लक्षद्वीप पहुंच भी चुकी है. गुरुवार को पराली ने लक्षद्वीप से पर्यटकों को मंगलुरु के पुराने बंदरगाह तक केवल 7 घंटे में पहुंचाया. जबकि, पहले इस दूरी को तय करने में पूरे 13 घंटे लगते थे.

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एजेंसी से बात करते हुए 'एचएससी पराली' पर पर्यटकों के पहले बैच ने कहा कि यह एक अलग अनुभव था. नए जहाज में न केवल हाईस्पीट कनेक्टिविटी है, बल्कि यह पहले के जहाजों की तुलना में कहीं अधिक सुनिधाजनक है. इसे कार्गो कैरियर से यात्रियों को ले जाने वाले कैरियर में बदला गया है.

शुरू होगी मैंगलोर-लक्षद्वीप पर्यटक लाइनर सेवा

केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के तहत गठित लक्षद्वीप द्वीप समूह पर्यटन विकास प्राधिकरण कुछ ट्रायल रन के बाद मैंगलोर-लक्षद्वीप पर्यटक लाइनर सेवा शुरू करेगा. हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मानसून शुरू होने के बाद समुद्र कितना उग्र होगा. अधिकारियों ने कहा कि एलआईटीडीए ने कदमत में रिसेप्शन पॉइंट पर पहले से ही सुविधाएं बढ़ा रखी हैं, जो मुख्य भूमि से आगमन का निकटतम बंदरगाह है.

लक्षद्वीप के लोगों के लिए हो जाएगी आसानी

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बता दें कि साल की शुरुआत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की लक्षद्वीप द्वीप यात्रा के बाद प्रशासन ने कोच्चि और मंगलुरु में मुख्य भूमि के बीच कनेक्टिविटी में सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं. अधिकारियों के मुताबिक यह पहला कदम है और लक्षद्वीप के लोगों के लिए मुख्य भूमि में पश्चिमी घाट इको पर्यटन, शैक्षिक, स्वास्थ्य और मनोरंजन पर्यटन सहित कई प्रकार के पर्यटन के लिए मंगलुरु पहुंचना आसान हो जाएगा.

पुराना है लक्षद्वीप और कर्नाटक का साझा इतिहास

कर्नाटक और लक्षद्वीप 1783 से एक इतिहास साझा करते हैं, क्योंकि हैदर अली और टीपू सुल्तान ने लक्षद्वीप द्वीप में लुटेरों को घुसने नहीं दिया था और लक्षद्वीप को लुटने से रोका था. लेकिन 1799 के बाद जब मैसूर के पास श्रीरंगपट्टनम में टीपू सुल्तान की मौत हो गई थी तो लक्षद्वीप के लोगों ने फिर से अपनी स्वतंत्रता खो दी थी. तब अंग्रेजों ने इन द्वीपों पर कब्जा कर लिया था.

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