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भोजपुरी को आधिकारिक भाषा का दर्जा देने के सवाल पर सरकार से क्या मिला जवाब, जानिए

इस अनुसूची में भारत की आधिकारिक भाषाएं शामिल हैं. इस सूची में अभी 22 भाषाएं हैं लेकिन मूल रूप से इसमें 14 भाषाओं को रखा गया था. बाद में आठ और भाषाओं को जोड़ा गया.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • किसी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कोई तय मानदंड नहीं- गृह मंत्रालय
  • कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भोजपुरी के लिए उठा चुके हैं मांग

भोजपुरी बोलने वालों की लंबे अर्से से मांग रही है कि इस भाषा को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए. इस अनुसूची में भारत की आधिकारिक भाषाएं शामिल हैं. इस सूची में अभी 22 भाषाएं हैं लेकिन मूल रूप से इसमें 14 भाषाओं को रखा गया था. बाद में आठ और भाषाओं को जोड़ा गया.  

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1971 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद भोगेंद्र झा ने इस मुद्दे पर लोकसभा में बिल पेश किया था जो नामंजूर कर दिया गया था. इतने साल बाद पिछले साल मार्च में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि वो भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए सकारात्मक कदम उठा रही है.  

इस संदर्भ में ताजा स्थिति क्या है ये जानने के लिए इंडिया टुडे ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत  गृह मंत्रालय को याचिका भेजी. इसमें पूछे गए सवालों में ये सवाल भी शामिल था, किसी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की प्रक्रिया और मानदंड क्या है और क्या भोजपुरी को इस अनुसूची में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है?

गृह मंत्रालय से मिला अस्पष्ट जवाब

इस आरटीआई पर गृह मंत्रालय से जो जवाब मिला वो अस्पष्ट था. गृह मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा कि आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं और “भोजपुरी समेत अन्य भाषाओं को इसमें शामिल करने के लिए मांग की जा रही हैं.” जवाब में आगे कहा गया, “वर्तमान में, आठवीं अनुसूची में किसी भाषा को शामिल करने के लिए कोई तय मानदंड नहीं हैं.” 

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गृह मंत्रालय के मुताबिक, “पूर्व में पाहवा (1996) और सीताकांत मोहपात्रा (2003) कमेटियों के जरिए इस तरह का मानदंड तय करने की कोशिशें की गई थीं लेकिन वो अनिर्णायक रहा.”   

गृह मंत्रालय का जवाब हैरान करने वाला है क्योंकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर अग्रिम मोर्चे पर रही है. 2013 में, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने वादा कया था कि अगर बीजेपी केंद्र की सत्ता में आई तो भोजपुरी को आठवीं सूची में शामिल किया जाएगा.  

मौजूदा कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने एक कदम और आगे जाकर कहा था, “मेरी मूल भाषा भी भोजपुरी है, और मैं अन्य पार्टी नेताओं के साथ मिलकर अपनी इस प्रिय भाषा को संविधान में उसका स्थान दिलाने के लिए कड़ी मेहनत करूंगा.”  

योगी आदित्यनाथ भी कर चुके हैं मांग

उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 28 अप्रैल 2016 को गोरखपुर लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद के नाते कहा था कि वे भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र में एनडीए सरकार के सामने ये मुद्दा रखेंगे. तब संसद में योगी आदित्यनाथ ने कहा था,  भोजपुरी दुनिया की सबसे बड़ी उपभाषा (बोली) है जिसे 16 करोड़ लोग भारत में सिर्फ उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में 27 अन्य देशों में भी बोलते हैं. उन्होंने कहा था कि मूल रूप से अनुसूची में 14 ही भाषाएं थीं लेकि नेपाली, सिंधी और मैथिली को बाद में जोड़ा गया. योगी आदित्यनाथ ने तब दावा किया था कि इन भाषाओं की तरह ही भोजपुरी में भी आठवीं अनुसूची में शामिल होने के लिए सारी योग्यता है.  

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इससे पहले जुलाई 2009 में भी योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा में भोजपुरी के मुद्दे को उठाया था. तब उन्होंने यूपीए सरकार से भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की थी. 

भोजपुरी बोलने वाले कितने लोग?

हमने अपनी आरटीआई में ये भी पूछा था कि भारत और विदेश में कितने लोग भोजपुरी बोलते हैं. इस सवाल को गृह मंत्रालय ने ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (ORGI) के भाषा संभाग  को भेज दिया. वहां से मिले जवाब में कहा गया कि उनके पास इस संबंध में कोई जानकारी मौजूद नहीं है. आश्चर्यजनक है कि ORGI के “2001 ऐब्स्ट्रैक्ट ऑफ स्पीकर्स स्ट्रैंथ ऑफ लैंग्वेज्स एंड मदर टंग्स” के मुताबिक 33,099,497 लोगों ने अपनी मातृभाषा भोजपुरी बताई थी.

विदेश मंत्रालय ने 2018 में लोकसभा को सूचित किया था कि “दुनिया भर में भोजपुरी बोलने वालों की संख्या करीब 28.50 लाख है. जबकि केंद्रीय कानून मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ऑन रिकॉर्ड भोजपुरी को आधिकारिक मान्यता की मांग कर चुके हैं वहीं केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार इस दिशा में कदम उठाने को लेकर अनिश्चित नजर आती है. हमने सरकार से जब अनेक लोगों की इस ‘प्रिय भाषा’  पर सरकार से सीधी प्रतिक्रिया लेनी चाही तो आप देख सकते हैं जो जवाब मिला वो अस्पष्ट और स्थिति को सीधे साफ करने वाला नहीं था.

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