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कॉलेजियम सिस्टम: संविधान सुप्रीम... लेकिन जजों की नियुक्ति में प्रभाव बढ़ाना चाहता है केंद्र

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियु्क्ति पर केंद्र ने अपनी मंशा लगभग साफ कर दी है कि इस प्रक्रिया में उसकी भी सुनी चाहिए. कानून मंत्रालय द्वारा चीफ जस्टिस को भेजे गए पत्र से ये बात साफ हो गई है. अब सवाल ये है कि इस पत्र के बाद सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति प्रतिक्रिया में आगे कैसे बढ़ने जा रहा है.

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सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में केंद्र सरकार अपना प्रतिनिधित्व चाहती है. केंद्र सरकार का दावा है कि कॉलेजियम सिस्टम में सरकार का प्रतिनिधि शामिल होने से इस प्रणाली में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की भावना आएगी.  केंद्र सरकार ने इसी मंशा के साथ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ को एक चिट्ठी लिखी है. ये चिट्ठी केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा लिखी गई है. 

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बता दें कि केंद्र सरकार न्यायपालिका पर लगातार जोर दे रहा है कि न्यायपालिका में उच्च पदों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार को भी शामिल किया जाए.  

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति में हो सरकार का नुमाइंदा

इसी प्रक्रिया में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को एक पत्र लिखा है और कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्तियों पर निर्णय लेने वाले कॉलेजियम में पारदर्शिता और सार्वजनिक उत्तरदायित्व लाने के लिए सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए.  रिजिजू ने कहा कि इसके लिए एक सर्च-कम-इवोलूशन कमेटी बनाई जानी चाहिए. 

केंद्र सरकार का ये पत्र जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में आमूल-चूल बदलाव की बाद करता है. 6 जनवरी को लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए सुझाव देने वाली मूल्यांकन समिति  में एक सरकारी नॉमिनी शामिल होना चाहिए. पत्र में हाई कोर्ट के कॉलेजियम में राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के लिए भी पैरवी की गई है. 

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कॉलेजियम से बाहर के जजों की राय भी अहम
 
रिपोर्ट के अनुसार पत्र में योग्य नामों का एक पूल बनाने की बात कही गई है, जिसे नियुक्तियों को अंतिम रूप देने के लिए कॉलेजियम को भेजा जाएगा. पत्र में यह भी प्रस्ताव है कि कॉलेजियम के बाहर के अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश भी अपनी सिफारिशें सर्च-कम-इवोलूशन कमेटी को भेज सकते हैं. 

बता दें कि पिछले सप्ताह ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा था कि ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट विधायिका के अधिकार क्षेत्र में घुसने की कोशिश कर रहा है. 

इसके बाद केंद्र ने अपने पत्र में स्पष्ट कहा है कि जजों को चुनने में केंद्र की भूमिका होनी चाहिए. 1993 से ही एक अधिकार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का रहा है. 

संविधान सबसे सुप्रीम 

इस पत्र को लिखने की खबर मीडिया में आने के बाद कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि सीजेआई को लिखे गए पत्र की बातें बिल्कुल सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की टिप्पणियों और निर्देशों के अनुरूप है. इस मामले पर सुविधा की राजनीति नहीं करनी चाहिए, खासकर कि न्यायपालिका के नाम पर. भारत का संविधान सर्वोच्च है और कोई भी इससे ऊपर नहीं है." 

बता दें कि किरेन रिजिजू ने ये प्रतिक्रिया तब दी जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि ये  बेहद खतरनाक है. न्यायिक नियुक्तियों में बिल्कुल सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए

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कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी इस पत्र पर प्रतिक्रिया दी और कहा, "वीपी जगदीप धनखड़ का हमला. फिर अब कानून मंत्री. यह सब टकराव के लिए की जा रही है, पहले न्यायपालिका को डराया जा रहा है फिर कब्जा करने की तैयारी है. कॉलेजियम को सुधार की जरूरत है. लेकिन यह सरकार जो चाहती है वह एक तरह की पूरी अधीनता है, इस सरकार के उपाय न्यायपालिका के लिए जहर की गोली साबित हो सकते हैं."

कॉलेजियम सिस्टम के साथ डटकर खड़ा है सुप्रीम कोर्ट 

बता दें कि सरकार जहां कॉलेजियम सिस्टम में बदलाव चाहती है वहीं सुप्रीम कोर्ट मजबूती के साथ इसके पक्ष में खड़ा है.  इस समय सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस मुकेश शाह, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना हैं. 

संयोगवश, जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ उस मामले की सुनवाई कर रही है जिसमें जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर सुनवाई हो रही थी. इस मामले पर अंतिम बहस के दौरान जस्टिस कौल ने कहा था, "कोई भी प्रणाली एक आदर्श प्रणाली नहीं है, यह अंततः मनुष्यों द्वारा ही चलाई जाती है. लेकिन यहां चिंता यह है कि सरकार एक ऐसा वातावरण बना रही है जहां मेधावी लोग जज बनने के लिए अपनी सहमति वापस ले रहे हैं."

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