धारा-370 से मुक्ति के बाद अब लद्दाख में धारा 371 की सुरक्षा की मांग उठी है. बौद्ध बहुल लेह जिले में लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद ने गुरुवार को केंद्र शासित क्षेत्र के स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए 'छठी अनुसूची, अनुच्छेद 371 या संविधान के अधिवास अधिनियम' के तहत सुरक्षा उपायों की मांग की.
लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास बहुमत है, ने भी एक और प्रस्ताव पारित किया, जिसमें LAHDC अधिनियम में संशोधन की मांग की गई, ताकि लद्दाख के स्वदेशी लोगों को भूमि, रोजगार, प्राकृतिक संसाधन, पर्यावरण और संस्कृति के स्वामित्व जैसे विषयों पर पूर्ण नियंत्रण दिया जा सके.
दोनों प्रस्तावों को हिल काउंसिल के उपाध्यक्ष और बीजेपी नेता टेरसिंग सैंडुप ने रखा. इस पर टसरिंग वांडस, मुमताज हुसैन और लोबजंग न्यांटक समेत कई पार्षदों के हस्ताक्षर हैं. कोरजोन ज्युरमेट दोरजे की अगुवाई में कांग्रेस ने वॉकआउट किया और कहा कि केंद्र शासित प्रदेश वर्तमान रूप में अपूर्ण है.
प्रस्ताव के संकल्प में कहा गया, 'लद्दाख के विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू, उसके रणनीतिक स्थान और नाजुक पारिस्थितिक तंत्र के कारण, समाज के सभी वर्गों में कटाई भूमि, रोजगार, पर्यावरण, व्यवसाय और संस्कृति की सुरक्षा के लिए 'संवैधानिक सुरक्षा' की मांग कर रही है.'
30 सदस्यीय हिल काउंसिल में 26 सदस्य चुने जाते हैं और चार को बिना किसी मतदान अधिकार के नामांकित किया जाता है. LAHDC में भाजपा के 18 निर्वाचित सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस के पांच, नेशनल कॉन्फ्रेंस के दो और एक निर्दलीय सदस्य हैं. लद्दाख से बीजेपी सांसद और हिल काउंसिल के पदेन सदस्य जमैयांग त्सेरिंग नामग्याल ने प्रस्तावों का स्वागत किया
बीजेपी सांसद जमैयांग त्सेरिंग नामग्याल ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश के निर्माण के बाद, यह लद्दाख के लोगों का सुनहरा इतिहास लिखने का दूसरा मौका है, क्योंकि हम उनकी सुरक्षा पर बात कर रहे हैं. किसी भी राज्य से लद्दाख की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि जनसांख्यिकी, सामाजिक-आर्थिक और जलवायु स्थिति, भौगोलिक कारक और सीमा पहलू अलग हैं.
सांसद जमैयांग त्सेरिंग नामग्याल ने 6 वीं अनुसूची के तहत लद्दाख समाज में बहुविवाह और पशु बलि जैसे प्रथागत कानूनों के पुनरुद्धार पर अपनी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश की तरह, हमें भी सुरक्षा उपायों का विकल्प देना चाहिए और इस निष्कर्ष पर नहीं जाना चाहिए कि डोमिसाइल अधिनियम जैसे कानून तब तक लद्दाख के लिए एक आपदा हो सकते हैं जब तक हमें वास्तविकता का पता नहीं है.