कोरोना का कहर बरकरार है और कई देशों में अगली लहर के रूप में महामारी के आने की चेतावनी भी जारी की जा रही है. इस बीच प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 के बाद पहले दो हफ्तों में दिल का दौरा (Heart Attack) और स्ट्रोक का खतरा तीन गुना बढ़ जाता है.
लैंसेट के अध्ययन में यह दावा किया गया है कि स्वीडन में पिछले साल एक फरवरी से 14 सितंबर 2020 के बीच 86,742 कोरोना मरीजों और 3,48,481 आम लोगों में एक्यूट मायोकार्डिनल इन्फार्क्शन या हर्ट अटैक पड़ने के खतरे का तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर रिसर्च किया गया है.
स्वीडन में उमिया यूनिवर्सिटी में कार्यरत और स्टडी रिपोर्ट के सहयोगी लेखक ओस्वाल्डो फोन्सेका रोड्रिगेज ने कहा कि कोरोना से उबरने के बाद शुरुआती दो हफ्तों में एक्यूट मायोकार्डिनल इन्फार्क्शन और स्ट्रोक को लेकर तीन गुना ज्यादा जोखिम पाया गया. शोधकर्ताओं द्वारा सहरुग्णता, उम्र, लिंग और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों पर गौर करने पर यह बात सामने आई कि मायोकार्डिनल इन्फार्क्शन और स्ट्रोक का खतरा बराबर ही रहा.
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अध्ययन में दो सांख्यिकीय विधियों का उपयोग
उमिया विश्वविद्यालय से संबंधित और स्टडी की सह-लेखिका इयोनिस कट्सौलारिस ने कहा कि परिणाम बताते हैं कि कोरोना मरीजों के इलाज में हृदय संबंधी जटिलताएं एक अहम पहलू रही है. साथ ही हमारे परिणाम यह भी दिखाते हैं कि कोरोना के खिलाफ टीकाकरण करना कितना महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से बुजुर्ग जिनको हर्ट अटैक की संभावना ज्यादा है.
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के दौरान दो सांख्यिकीय विधियों (statistical methods) द मैच्ड कोहोर्ट स्टडी और सेल्फ कंट्रोल्ड केस सीरीज का इस्तेमाल किया.
उन्होंने कहा कि सेल्फ कंट्रोल्ड केस सीरीज स्टडी एक ऐसी विधि है जिसे मूल रूप से वैक्सीन के बाद होने वाली जटिलताओं के जोखिम को निर्धारित करने को लेकर खोजा गया था.
स्टडी लिखने वालों ने कहा कि इन दोनों तरीकों से पता चलता है कि कोरोना एक्यूट मायोकार्डिनल इन्फार्क्शन और इस्केमिक स्ट्रोक के लिए एक जोखिम कारक है.