मद्रास हाई कोर्ट ने डीएमके मंत्रियों उदयनिधि स्टालिन, पीके शेखर बाबू और सांसद ए राजा के खिलाफ एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन द्वारा दायर याचिकाओं पर 'अधिकार वारंट' की रिट जारी करने से इनकार कर दिया है. संगठन ने डीएमके मंत्रियों के अपने पद पर बने रहने को लेकर सवाल उठाए थे.
हाई कोर्ट ने कहा कि सनातन धर्म की तुलना एचआईवी, मलेरिया, डेंगू से करना संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है. कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति द्वारा विभाजनकारी टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए. संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को संविधानवाद के सिद्धांतों पर चलना चाहिए.
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डीएमके मंत्रियों के पद पर बने रहने को लेकर उठे थे सवाल
हिंदू संगठन ने डीएमके मंत्रियों के सनातन धर्म के खिलाफ टिप्पणियों को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की थी. कोर्ट से अधिकार वारंट की रिट जारी करने की मांग की गई थी, जिसमें मंत्रियों से उनके पद पर बने रहने को लेकर जवाब तलब किया जा सकता था. हालांकि, कोर्ट ने हिंदू संगठनों की मांगों को खारिज कर दिया.
हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाए थे कि आखिर वे (डीएमके के मंत्री) किस अधिकार के तहत आधिकारिकत पद पर बने हैं? जस्टिस अनीता सुमंत ने दो हिंदू मुन्नानी पदाधिकारियों और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई की.
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'सनातन धर्म विरोधी कार्यक्रम' में लिया था हिस्सा
याचिका में कहा गया था कि डीएमके मंत्रियों ने एक 'सनातन धर्म विरोधी कार्यक्रम' में हिस्सा लिया था और कथित रूप से हिंदू धर्म की व्यवस्था और परंपराओं के खिलाफ बयानबाजी की थी.
उच्च पद पर बैठे लोगों को जांच कर बोलना चाहिए
याचिकाओं को खारिज करते हुए, जस्टिस अनीत सुमंत ने हालांकि कहा कि उच्च पदों पर बैठे लोगों को अधिक जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए और बयान देने से पहले ऐतिहासिक घटनाओं को सत्यापित करना चाहिए. उनकी जांच करनी चाहिए.