घरेलू हिंसा अधिनियम का जिक्र करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि यह 'दुर्भाग्यपूर्ण' है कि एक पति के पास अपनी पत्नी के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम जैसा कोई प्रावधान नहीं है.
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एस वैद्यनाथन की पीठ ने पशुपालन और पशु चिकित्सा विज्ञान निदेशक के 18 फरवरी, 2020 के आदेश के खिलाफ एक पशु चिकित्सक, पी शशिकुमार द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.
शशिकुमार ने दावा किया कि तलाक से कुछ दिन पहले उनकी पूर्व पत्नी द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर, उन्हें नौकरी से हटा दिया गया था. पत्नी ने उन पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया था. इसपर कोर्ट ने कहा कि "शिकायत का समय साफ दर्शाता है कि उसने (पत्नी) तलाक के आदेश का अनुमान लगाया और याचिकाकर्ता के लिए अनावश्यक परेशानी पैदा की."
दरअसल, साल 2015 में शशिकुमार की पत्नी ने सलेम में न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवाया था. साथ शशिकुमार के खिलाफ तलाक का मामला शुरू किया. इसके बाद, शशिकुमार ने सलेम में जज के सामने एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी पत्नी उसके साथ क्रूरता कर रही थी और स्वेच्छा से उसे छोड़ दिया. जिसके बाद अब उसने तलाक का केस भी दर्ज करा दिया.
बताया गया कि तलाक की याचिका पर फैसला आने के ठीक चार दिन पहले महिला ने पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवा के निदेशक को घरेलू हिंसा की शिकायत भेज दी, जिसका मामला कोर्ट में था. इसके बाद, शशिकुमार को 18 फरवरी, 2020 को सेवा से निलंबित कर दिया गया. एक दिन बाद दंपति का 19 फरवरी, 2020 को तलाक हो गया.
इसी के आधार पर कोर्ट ने आगे कहा, "पति और पत्नी को यह समझना चाहिए कि अहंकार और असहिष्णुता जूते की तरह हैं और घर में आने से पहले उन्हें बाहर ही उतार देना चाहिए. नहीं तो बच्चों को दयनीय जीवन का सामना करना पड़ता है."जस्टिस वैद्यनाथन ने कहा कि विवाह किसी व्यक्ति के जीवन में "पवित्र" घटना है. आखिर में उन्होंने पशुपालन निदेशक को शशिकुमार को 15 दिनों के भीतर सेवा में वापस लाने का आदेश दिया.