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शरीर पर भस्म, माथे पर तिलक, कानों में कुंडल और... 16 नहीं नागा साधु करते हैं 17 शृंगार

महिलाओं के 16 शृंगार तो आपने सुने हैं, लेकिन नागा साधुओं का 17 शृंगार न सिर्फ रोचकता जगाता है, बल्कि हर एक शृंगार की अपनी विशेषता और अपनी कहानी है. इन सभी अलंकारों का सीधा संबंध भोलेनाथ शिव शंकर से है और हर शृंगार कहीं न कहीं उनके ही किसी न किसी स्वरूप का हिस्सा है. 

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महाकुंभ में पहुंचे नागा साधुओं का शृंगार भी रोचक होता है. डमरू इस शृंगार के सबसे अहम हिस्सा है
महाकुंभ में पहुंचे नागा साधुओं का शृंगार भी रोचक होता है. डमरू इस शृंगार के सबसे अहम हिस्सा है

प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में नागा साधु विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं. इन साधुओं की परंपरा, शृंगार और रहन-सहन में एक अद्भुत रहस्य और आध्यात्मिकता छिपी होती है. महाकुंभ के दौरान अमृत (शाही) स्नान के अवसर पर नागा साधुओं का ये शृंगार देखने लायक होता है. इस शृंगार की तैयारी रात से ही शुरू हो जाती है, ताकि सुबह भोर में शाही स्नान के लिए वे पूरी तरह से तैयार हों. पत्रकार व लेखक धनंजय चोपड़ा की किताब "भारत में कुंभ" में नागा साधुओं के सत्रह शृंगार का विस्तार से उल्लेख किया गया है. आइए जानते हैं इन सत्रह शृंगारों की विशेषताएं.

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महिलाओं के 16 शृंगार तो आपने सुने हैं, लेकिन नागा साधुओं का 17 शृंगार न सिर्फ रोचकता जगाता है, बल्कि हर एक शृंगार की अपनी एक विशेषता और अपनी एक कहानी है. इन सभी अलंकारों का सीधा संबंध भोलेनाथ शिव शंकर से है और हर शृंगार कहीं न कहीं उनके ही किसी न किसी स्वरूप का हिस्सा है. 

1. भभूत या भस्म
नागा साधुओं के लिए भभूत वस्त्र के समान है. स्नान के बाद वे इसे पूरे शरीर पर लगाते हैं. इसे श्मशान से प्राप्त राख से बनाया जाता है, लेकिन कई साधु इसे हवन सामग्री और गोबर जलाकर तैयार करते हैं. इस भभूत को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को भी वितरित किया जाता है. भभूत बनाने की प्रक्रिया में हवन सामग्री और गाय के गोबर को भस्म किया जाता है. हवन कुंड में पीपल, पाकड़, आम, बेलपत्र, केले के पत्ते आदि के साथ कच्चे दूध का उपयोग किया जाता है. इन सामग्रियों को मिलाकर गोले (लड्डू) बनाए जाते हैं. इन गोलों को बार-बार आग में तपाया जाता है और फिर कच्चे दूध से ठंडा किया जाता है. इस प्रकार तैयार भभूत को नागा संन्यासी प्रसाद के रूप में लोगों को देते हैं और स्वयं अपने शरीर पर लगाते हैं.

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2. लंगोट या कौपीनः भभूत के अलावा, नागा साधु लंगोट या कौपीन पहनते हैं. यह उनके अनुयायियों को असहजता से बचाने या हठयोग का पालन करने के लिए पहना जाता है. लंगोट, प्राचीन काल से ही साधुओं के वेश का अभिन्न अंग रहा है. इसके तीन कोर तीन तप, तीन लोक और तीन व्रत के प्रतीक होते हैं. यह ब्रह्मचर्य पालन का सभी सबसे सहयोगी वस्त्र है और भगवान शिव के प्रसिद्ध रुद्रांश हनुमान जी द्वारा धारण किया हुआ वस्त्र है. इसका अध्यात्मिक महत्व भी इसलिए अधिक है.

3. रुद्राक्षः नागा साधुओं के लिए रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतीक है. वे इसे गले और शरीर पर धारण करते हैं. कुछ साधु तो रुद्राक्ष की मालाओं से पूरे शरीर को सजाते हैं. रुद्राक्ष को भगवान शिव की नेत्रों से गिरा जल माना जाता है. धरती पर इन्हें साक्षात शिव स्वरूप ही मानते हैं. ये रुद्राक्ष एकमुखी, दो मुखी, तीनमुखी, चारमुखी और पंचमुखी तक होते हैं. रुद्राक्ष में पड़ी धारियों के आधार पर उनके मुख तय किए जाते हैं.

4. चंदन, रोली और हल्दीः माथे पर चंदन, रोली या हल्दी का तिलक नागा साधुओं के शृंगार का अभिन्न हिस्सा है. इनसे ये माथे पर त्रिपुंड बनाते हैं, छाप लगाते हैं और भुजा पर भी लेप लगाते हैं. इसके लाल-पीले रंग त्याग और तप के प्रतीक हैं. भगवान शिव को भी चंदन का लेप लगाया जाता है.

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5. लोहे का छल्लाः नागा साधु अपने पैरों में लोहे का छल्ला पहनते हैं. कभी-कभी चांदी के छल्ले भी देखने को मिलते हैं.

6. हाथ में कड़ा: नागा साधुओं के हाथ में कड़ा उनका मुख्य आभूषण है, ये कड़ा लोहे, पीतल, चांदी या अन्य धातु से बना होता है.

7. अंगूठीः नागा साधु रत्नजड़ित अंगूठियां पहनते हैं और अपनी जटाओं में मोतियों से सजी सामग्री भी लगाते हैं.

8. कुंडलः कानों में कुंडल धारण करना उनके शृंगार का हिस्सा है. ये कुंडल चांदी या अन्य धातु के बने होते हैं.

9. फूलों की मालाः नागा साधु गेंदे और अन्य फूलों की मालाओं से अपनी जटाओं, गले और कमर को सजाते हैं. फूल माला उनके शृंगार का 

10. जटाः जटा बांधना और रखना नागा साधुओं के शृंगार का सबसे अहम हिस्सा हैं. गुंथी हुई जटाएं नागा साधुओं की पहचान हैं. वे इन्हें कभी नहीं काटते, सिवाय अपने गुरु की मृत्यु पर. जटाओं को रुद्राक्ष, रत्नजड़ित माला या फूलों से सजाया जाता है. जटा सीधे तौर पर भगवान शिव का प्रतीक है. उन्होंने इसी जटा में चंद्रदेव को सजाया है और गंगा अवतरण के समय इन्हीं जटाओं के जरिए उन्हें रोक कर उनका वेग भी कम किया था. जब सती दाह से शिवजी क्रोधित हो गए थे तब उन्होंने दक्ष यज्ञ को नष्ट करने के लिए अपनी जटा तोड़कर ही वीरभद्र को प्रगट किया था.

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11. पंचकेशः यह उनके शृंगार और परंपरा का हिस्सा है, जिसे वे अपने साथ रखते हैं.

12. काजल या सूरमाः आंखों में काजल लगाना उनके शृंगार का एक महत्वपूर्ण भाग है.

13. अर्धचंद्रः भगवान शिव के प्रतीक के रूप में नागा साधु सिर पर चांदी का अर्धचंद्र धारण करते हैं.

14. डमरूः डमरू भी भगवान शिव का प्रतीक है, जिसे वे अपने पास रखते हैं. इसी डमरू के नाद से माहेश्वर सूत्र की उत्तपत्ति हुई थी, जिसके आधार पाणिनी ने व्याकरण रचा था. 

15. चिमटाः नागा साधु के शृंगार में सबसे जरूरी अंग चिमटा भी होता है. यह धूनी रमाने और आशीर्वाद देने के काम आता है.

16. गंडाः गंडा नागा साधु के लिए उनके गुरु की मौजूदगी का प्रतीक है, जिसे वे हमेशा धारण करते हैं.

17. अस्त्र-शस्त्रः धर्म सैनिक कहलाने वाले नागा साधु अपने साथ शस्त्र भी रखते हैं. ये भी इनके शृंगार का हिस्सा हैं. इसमें वह फरसा, तलवार, त्रिशूल और लाठी जैसे अस्त्र-शस्त्र अपने साथ रखते हैं. त्रिशूल भगवान शिव का अस्त्र है. फरसा भी उनका ही अस्त्र है, जिसे उन्होंने परशुराम को दिया था. इसी तरह उन्होंने रावण को चंद्रहास खड्ग वरदान में दी थी. ये सारे शस्त्र उनके ही प्रतीक हैं.  

महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं के इन सत्रह शृंगारों को देखना एक अद्वितीय अनुभव है. यह परंपरा न केवल उनकी आध्यात्मिकता को प्रदर्शित करती है, बल्कि उनकी रहस्यमयी और अनुशासित जीवनशैली की झलक भी देती है. श्रद्धालु इन्हें देखकर अपने जीवन में शिवत्व का अनुभव करते हैं.

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