महाराष्ट्र और कर्नाटक का सीमा विवाद फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा है. सीमा विवाद को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के नेताओं में जुबानी जंग चल रही है.
बीते हफ्ते ये सीमा विवाद हिंसा और तोड़फोड़ में भी बदल गया था. तब मराठी और कन्नड़ एक्टिविस्ट ने दोनों ओर की गाड़ियों को निशाना बनाया था. इस मामले में पुलिस ने कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया था.
9 दिसंबर को लोकसभा में एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना से सांसद धैर्यशील माने ने भी इस मुद्दे को उठाया था. उन्होंने कहा था कि कर्नाटक के मराठी भाषाई इलाकों में विरोध हो रहा है, आंदोलन हो रहे हैं और वहां 'आतंक का माहौल' है. उन्होंने आरोप लगाया था कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे लोग डर रहे हैं और कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो गई है.
महाराष्ट्र और कर्नाटक का सीमा विवाद इतना गहरा है कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कहा था कि जब तक सुप्रीम कोर्ट से ये मसला सुलझ नहीं जाता, तब तक विवादित इलाकों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर देना चाहिए. इतना ही नहीं, जनवरी 2021 में ठाकरे ने तो विवादित इलाकों को 'कर्नाटक अधिकृत महाराष्ट्र' तक कह डाला था.
1. विवाद की जड़ क्या है?
1947 में आजादी मिलने के बाद देश में भाषाई आधार पर राज्यों के बंटवारे की मांग उठने लगी. पहले श्याम धर कृष्ण आयोग बना. इस आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन को देशहित के खिलाफ बताया.
लेकिन लगातार उठ रही मांगों के बाद 'जेवीपी' आयोग बना. यानी जवाहर लाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया. इस आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का सुझाव दिया.
इसके बाद 1953 में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ. 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून बना और इस आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बने. महाराष्ट्र को उस समय बंबई और कर्नाटक को मैसूर के नाम से जाना जाता था.
2. अब विवाद क्या है?
आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था. आज के समय के कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे.
आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा है.
इसके बाद 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की.
जब मांग जोर पकड़ने लगी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया.
इस आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. आयोग ने निप्पणी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को देने का सुझाव दिया. इस पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई, क्योंकि वो बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था.
3. महाराष्ट्र की क्या है मांग?
महाराष्ट्र बेलगावी पर अपना दावा करता है. इसके अलावा वो कर्नाटक के हिस्से के 814 गांवों पर भी अपना दावा करता है.
महाराष्ट्र का कहना है कि कर्नाटक के हिस्से में शामिल उन गांवों को उसमें मिलाया जाए, क्योंकि वहां मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है.
4. कर्नाटक का क्या है कहना?
कर्नाटक भाषाई आधार पर राज्यों के गठन और 1967 की महाजन आयोग की रिपोर्ट को ही मानता है.
कर्नाटक बेलगावी को अपना अटूट हिस्सा बताता है. वहां सुवर्ण विधान सौध का गठन भी किया गया है, जहां हर साल विधानसभा सत्र होता है. विधानसभा का विंटर सेशन बेलगावी में 19 से 30 दिसंबर तक होगा.
इतना ही नहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मबई ने हाल ही में महाराष्ट्र के अक्कलकोट और सोलापुर में कन्नड़ भाषी इलाकों के विलय की मांग की थी. साथ भी ये भी दावा किया था कि सांगली जिले के जाट तालुका के कुछ गांव कर्नाटक में शामिल होना चाहते हैं.
5. केंद्र सरकार का क्या है रुख?
पिछले हफ्ते सीमा विवाद को लेकर तनाव बढ़ने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलाया था.
बुधवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात की.
इस दौरान शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहा है कि इस मसले का हल सड़क पर नहीं हो सकता. सिर्फ संवैधानिक तरीके से इसका हल हो सकता है.
उन्होंने सलाह दी है कि सीमा पर तनाव कम करने के लिए 6 मंत्रियों का पैनल बनाएं, जिसमें दोनों राज्यों के मंत्री शामिल हों. साथ ही ये भी सलाह दी है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट इस विवाद पर फैसला न सुना दे, तब तक कोई दावा न करें.
6. सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा मामला?
18 साल पहले 2004 में महाराष्ट्र सरकार इस सीमा विवाद को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई थी. महाराष्ट्र सरकार ने 814 गांवों उसे सौंपने की मांग की थी.
2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मसले को आपसी बातचीत से हल किया जाना चाहिए. साथ ही ये भी सुझाव दिया था कि भाषाई आधार पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ सकती है.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 30 नवंबर को सुनवाई हुई थी. महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने इस मामले की अर्जेंट बेसिस पर सुनवाई करने की अपील की है.