महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव के मद्देनजर ओबीसी वर्ग को समुचित प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण मामले में गठित आयोग की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने असंतोष जताया. शीर्ष अदालत ने रिपोर्ट में की गई सिफारिशों का आधार आंकड़ों पर आधारित और तर्क संगत बनाने को कहा. कोर्ट ने कहा कि ये आधी-अधूरी रिपोर्ट खुद रिपोर्ट करती है कि उसमें कोई आंकड़ा नहीं है और तर्क भी नहीं. ऐसे में ये कोर्ट राज्य के चुनाव आयोग सहित किसी भी संबंधित अधिकरण को ये सिफारिशें लागू करने से मना करती है.
जस्टिस एएम खानविलकर की अगुआई वाली पीठ ने आयोग की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मुहैया कराए गए आंकड़ों की सत्यता जांचने आयोग को पड़ताल करनी चाहिए थी. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सीधा लिख दिया कि अन्य पिछड़ी जातियों को स्थानीय निकायों में उचित प्रतिनिधित्व मिल रहा है. कोर्ट ने सख्ती से पूछा कि आयोग को कैसे पता चला कि आंकड़े ताजा सही और सटीक हैं?
इस पर सरकार के वकील ने कहा कि आयुक्त की मौजूदगी में ही आंकड़े सीएम के पास आए थे. इस दलील से नाराज जस्टिस खानविलकर ने कहा कि सरकारी काम काज क्या ऐसे ही होता है? कोई तो अनुशासन और विधि प्रक्रिया होगी कामकाज की? रिपोर्ट पर कोई तारीख नहीं है तो ऐसे में हम ये कैसे पता लगाएं कि रिपोर्ट मामले की गहराई तक सोच समझ के बाद बनाई गई है या फिर बस यूं ही!
आयोग के कामकाज का यही ढर्रा रहेगा तो हमें रिपोर्ट और इसमें की गई अनुशंसाओं पर शक क्यों न हो? क्योंकि लगता है ये कहीं से कट पेस्ट किया गया है! रेशनल rational की वर्तनी तक सही नहीं लिखी गई है. जस्टिस माहेश्वरी ने टिप्पणी की कि आपकी रिपोर्ट के समर्थन में एक भी तर्क नहीं है. अपनी सिफारिशों को तर्क से सिद्ध करने का एक भी प्रयास नहीं.
बचाव करते हुए आयोग की ओर से वकील शेखर नाफड़े ने कहा कि ये तो अंतरिम रिपोर्ट है. ये सिर्फ रिजर्वेशन के अनुपात और अन्य मानदंडों की समीक्षा करती है.
जस्टिस खानविलकर ने कहा कि इस दलील में भी दम नहीं है, क्योंकि आयोग ने अपनी रिपोर्ट और अनुशंसा में पहले आंकड़ों को नकार ही दिया. फिर उन्हीं पर अपनी रिपोर्ट को आधारित भी कर दिया, लेकिन बिना तर्क और दलीलों के, आखिर आपकी रिपोर्ट का आधार क्या है? नाफड़े ने फिर कहा कि आयोग अपनी सिफारिशों को हरेक स्थानीय निकाय के साथ तर्क संगत ढंग से सिद्ध कर सकता है.
जस्टिस खानविलकर ने कहा, तो एक हफ्ते एक महीने या फिर किसी भी अवधि में साबित करें, लेकिन बिना इसके हम आपको इस अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर तो आगे नहीं बढ़ने देंगे.
जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि डाटा को जस का तस चिपका देने के अलावा भी आपको अपनी ओर से कुछ तो करना था. जस्टिस खानविलकर ने कहा कि उसी वजह से आपकी आरक्षण नीति को पहले भी मंजूरी नहीं मिली थी.