दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) के एकेडमिक काउंसिल के कुछ सदस्यों ने बीए (ऑनर्स) के कोर्स से महाश्वेता देवी (Mahasweta Devi) की कहानी और दो दलित लेखकों को हटाने का विरोध किया है. काउंसिल ने कोर्स से महाश्वेता देवी की कहानी 'द्रौपदी' को हटाने को मंजूरी दे दी है. साथ ही दो और दलित लेखकों भी हटा दिया है, जिसके बाद विरोध शुरू हो गया है. सदस्यों ने काउंसिल के सदस्यों पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है.
डीयू एकेडमिक काउंसिल के 15 सदस्यों ने आपत्ति जताते हुए नोटिस दिया है और लिखा है कि ये पाठ्यक्रम के साथ 'बर्बरता' है. इस नोट में लिखा है कि कमेटी ने दो दलित लेखकों बामा और सुकीरथरिणी को हटा दिया है और उनकी जगह ऊंची जाति की लेखक रमाबाई को जगह दे दी गई. सदस्यों ने आपत्ति जताते हुए नोट में लिखा है, 'कमेटी ने बिना कुछ सोचे-समझे मनमाने ढंग से महाश्वेता देवी की लघु कहानी द्रौपदी को पाठ्यक्रम से हटाने को कह दिया है. ये कहानी डीयू के पाठ्यक्रम में 1999 से शामिल थी.' सदस्यों का कहना है कि कमेटी ने महाश्वेता की कोई और दूसरी लघु कहानी को भी शामिल करने से इनकार कर दिया.
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सदस्यों ने आरोप लगाया है कि निगरानी समिति ने हमेशा से दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को लेकर पूर्वाग्रह का रवैया अपनाया है. उसने हमेशा पाठ्यक्रम से ऐसी आवाजें हटाने की कोशिशें की हैं. आरोप ये भी है कि समिति में कोई भी दलित या आदिवासी समुदाय का सदस्य नहीं है.
वहीं, इन आरोपों पर निगरानी समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर एमके पंडित ने न्यूज एजेंसी से कहा, 'मुझे नहीं पता कि वो लेखक दलित थे. अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष मीटिंग में मौजूद थे.' उन्होंने कहा, 'क्या वो अपने विषय के एक्सपर्ट नहीं हैं. आर्ट्स, सोशल साइंस के डीन भी मीटिंग में थे. क्या वो एक्सपर्ट नहीं हैं? लोकतंत्र में असहमति होना लाजमी है. वो हमारे कलीग हैं और हम उनके विचारों का सम्मान करते हैं.' उन्होंने कहा कि कुछ कहानियां सालों से पढ़ाई जा रही हैं, जिनमें अब बदलाव होना तय है.
मंगलवार को 12 घंटे चली लंबी बैठक के बाद एकेडमिक काउंसिल ने 2022-23 के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को लागू करने की मंजूरी भी दे दी. साथ ही 4 साल के यूजी प्रोग्राम को भी मंजूर कर लिया गया.