पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मणिपुर के लोगों से मानवता की खातिर शांति अपनाने का आग्रह किया है. साथ ही उन्होंने पूर्वोत्तर राज्य के लोगों को आश्वासन दिया कि वह उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं. ममता ने ट्वीट किया कि मणिपुर की दिल दहला देने वाली कहानियां सुनकर मेरा दिल बहुत दुखता है. मानव जीवन को कभी भी नफरत के क्रूर प्रयोगों की पीड़ा नहीं सहनी चाहिए. साथ ही कहा कि मानवता की लौ को फिर से जगाएं और भारत इन घावों को भर देगा.
विपक्षी गुट I.N.D.I.A. के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल मणिपुर गया था. इसमें टीएमसी की सदस्य भी शामिल है. ममता ने कहा कि मैं मणिपुर के बहादुर भाइयों और बहनों से मानवता की खातिर शांति अपनाने का आग्रह करती हूं. हम आपके साथ खड़े हैं, हम आपके लिए अटूट समर्थन और करुणा की पेशकश कर रहे हैं.
टीएमसी नेता सुष्मिता देव ने कहा कि मुझे लगता है कि मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह पर से विश्वास पूरी तरह खत्म हो गया है. आम लोग और जनता अब मणिपुर के सीएम का समर्थन नहीं कर रहे हैं. मणिपुर के राज्यपाल उइके को सौंपे गए ज्ञापन में दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने वाले विपक्षी सांसदों ने राज्य में शांति और सद्भाव लाने के लिए प्रभावित लोगों के तत्काल पुनर्वास की मांग की.
मणिपुर में कब भड़की हिंसा?
मणिपुर में 3 मई को कुकी समुदाय की ओर से निकाले गए 'आदिवासी एकता मार्च' के दौरान हिंसा भड़की थी. इस दौरान कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. तब से ही वहां हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. जानकारों का मानना है कि बातचीत से ही इस हिंसा को शांत किया जा सकता है, लेकिन समस्या ये है कि बातचीत को कोई तैयार हो नहीं रहा है. हिंसा में अब तक 150 लोग मारे जा चुके हैं.
मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?
मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है. राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नागा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है. मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं. पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.