पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका को पवित्र और ईमानदार व राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने उनके विचारों का समर्थन किया और कहा कि न्यायाधीशों को अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं को अपने फैसलों को प्रभावित करने की अनुमति देने से बचना चाहिए. कोलकाता में कंटेमपररी ज्यूडिशियल डेवलपमेंट पर एक सम्मेलन में बोलते हुए, ममता बनर्जी ने अदालतों को नागरिकों के लिए न्याय का 'महत्वपूर्ण मंदिर' बताया.
उन्होंने कहा कि अदालतें नागरिकों के लिए न्याय पाने और उनके संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने के लिए अंतिम उम्मीद होती हैं. ममता ने सीजेआई चंद्रचूड़ की उपस्थिति में मंच से कहा, 'किसी को अपमानित करना मेरा इरादा नहीं है, लेकिन मेरी विनम्र अपील है कि कृपया देखें कि न्यायपालिका में कोई राजनीतिक पूर्वाग्रह न हो. न्यायपालिका बिल्कुल शुद्ध, ईमानदार और पवित्र होनी चाहिए'.
बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा, 'न्यायपालिका हमारे लिए एक महत्वपूर्ण मंदिर है. यह बिल्कुल मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजाघर की तरह है. लोगों को न्याय दिलाना हमारा सर्वोच्च अधिकार है. मेरा मानना है कि न्यायपालिका लोगों की, लोगों के लिए, लोगों द्वारा होनी चाहिए. लोगों को न्यायपालिका से उम्मीदें हैं क्योंकि उन्हें विश्वास है कि अदालतों से उन्हें न्याय मिलेगा. अगर न्यायपालिका आम लोगों की मदद नहीं कर सकती तो उन्हें न्याय कहां से मिलेगा? जब वे किसी समस्या या किसी अत्याचारी चीज का सामना करते हैं, तो वे अधिक रुचि के साथ केवल यही आशा करते हैं कि न्यायपालिका उनकी समस्याओं का समाधान कर सकती है. यह न्याय पाने और संवैधानिक अधिकारों को कायम रखने की आखिरी उम्मीद है'.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कार्यक्रम में बोलते हुए इस बात पर जोर दिया कि कैसे निर्णय संवैधानिक नैतिकता पर आधारित होने चाहिए न कि न्यायाधीश की नैतिकता की अवधारणा पर. हम न्यायाधीशों को अपनी विचारधाराओं पर लिखते हुए देखते हैं. उदाहरण के लिए, एक न्यायाधीश ने कहा कि वह लिव-इन में रह रहे कपल को सुरक्षा नहीं देगा, क्योंकि वे बिना शादी के अपनी सहमति से रिश्ते में थे. कानून उन रिश्तों की रक्षा करता है जो अपनी प्रकृति में विवाह की तरह के हैं, फिर भी हम न्यायाधीशों को यह लिखते हुए पाते हैं कि वे सुरक्षा नहीं दे सकते'.
उन्होंने कहा, 'अगर उस कपल को ऑनर किलिंग का खतरा हो, तो क्या न्यायाधीश संवैधानिक नैतिकता को कायम रखने के बजाय अपने निजी विचारों पर कायम रहेगा? वह अपने व्यक्तिगत विचारों से अपने फैसले को प्रभावित होने देगा कि क्या नैतिक है और क्या अनैतिक?' मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों की भूमिका लोगों की सेवा करना है और उन्हें खुद को देवता के रूप में पेश करने की कथित धारणा के प्रति आगाह किया. सीजेआई ने कहा, 'न्यायाधीश यह तय नहीं कर सकते कि समाज कैसा होगा. हम संविधान के सेवक हैं, स्वामी नहीं'.