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कहते हैं न जिसका हाथ रब ने थाम रखा हो, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. ऐसे कई किस्से सुनने को मिलते हैं जिसमें किसी ने मौत को मात दे दी या कोई केवल अच्छी किस्मत से काल के चंगुल से निकल आया हो. ऐसा ही एक शख्स हुआ त्सुतोमु यामागुची (Tsutomu Yamaguchi) जो दशकों पहले जापान के हिरोशिमा और नागासाकी (Hiroshima & Nagasaki) में एक के बाद एक हुई परमाणु बमबारी के काफी नजदीक होते हुए भी बच गया. सोचिए कोई एटम बम को झेलने के बाद भी जीवित बच सकता है? त्सुतोमु यामागुची ने तो मानो कुछ इसी तरह से यमदूतों को चकमा दिया.
6 अगस्त 1945 को गिरा पहला बम
अमेरिका ने मैनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत दुनिया के पहले परमाणु बम विकसित किए थे. जब ये बनकर तैयार हो गए तो अमेरिका ने इन्हें जापान पर इस्तेमाल करने का फैसला किया क्योंकि एशियाई देश के नेताओं ने घुटने टेकने से इनकार कर दिया था. 6 अगस्त 1945 की सुबह अमेरिकी वायु सेना ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम .लिटिल बॉय" गिराया था और इसके ठीक तीन दिनों बाद अमरीका ने नागासाकी शहर पर फैट मैन" परमाणु बम गिराया. ये अनोखे नाम बमों के कोड वर्ड थे.
हिरोशिमा से निकलने ही वाले थे त्सुतोमु यामागुची
जब परमाणु बम गिरा तो त्सुतोमु यामागुची हिरोशिमा छोड़ने की तैयारी कर रहे थे. उस समय 29 वर्षीय नेवल इंजीनियर अपने एंप्ला मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज के लिए तीन महीने की लंबी व्यापारिक यात्रा पर थे और अजीब इत्तेफाक था कि 6 अगस्त, 1945 को शहर में उनका आखिरी दिन था. उन्होंने और उनके सहयोगियों ने एक नए तेल टैंकर के डिजाइन पर लंबे समय तक काम किया था, और वह अंततः अपनी पत्नी, हिसाको और अपने नवजात बेटे, कात्सुतोशी के पास अपने घर नाागासाकी लौट रहे थे.
ग्राउंड जीरो से 3 किलोमीटर से भी कम दूरी पर थे यामागुची
tokyoweekende की खबर के अनुसार उस सुबह लगभग 8:15 बजे, यामागुची आखिरी बार मित्सुबिशी के शिपयार्ड की ओर जा रहे थे, जब उन्होंने ऊपर एक विमान के ड्रोन की आवाज सुनी. आकाश में उन्होंने एक अमेरिकी बी-29 बाम्बर को शहर के ऊपर उड़ते और पैराशूट से जुड़ी एक छोटी वस्तु को गिराते देखा. अचानक, आसमान में तेज रौशनी फूट पड़ी, बस इतनी ही देर में एक कानफोड़ू बम बज उठा. इसके साथ आई लहर ने यामागुची को जमीन से खींच लिया, उन्हें बवंडर की तरह हवा में घुमाया और पास के आलू के खेत में गिरा दिया. यामागुची ग्राउंड जीरो से 3 किलोमीटर से भी कम दूरी पर थे.
'लगा जैसे कोई फिल्म शुरू हो रही है'
बाद में उन्होंने ब्रिटिश अखबार द टाइम्स को बताया, "मुझे नहीं पता कि क्या हुआ था. मुझे लगता है कि मैं थोड़ी देर के लिए बेहोश हो गया था. जब मैंने अपनी आंखें खोलीं, तो सब कुछ अंधेरा था, और मैं ज्यादा कुछ नहीं देख सका. यह सिनेमा के शुरू होने जैसा था. परमाणु विस्फोट ने सुबह के सूरज को लगभग धुंधला करने के लिए पर्याप्त धूल और मलबा हवा में घोल दिया था.
'चेहरा, हाथ जल गए थे, कान के परदे फट गए थे'
उन्होंने आगे बताया- मैंन हिरोशिमा के आकाश में आग के एक मशरूमनुमा बादल को उठते हुए देखा. ये भयानक था. मेरा चेहरा और बांहें बुरी तरह जल गई थीं और दोनों कान के पर्दे फट गए थे. परमाणु हमले के बाद हिरोशिमा व नागासाकी में 4,000 डिग्री सेल्सियस की गर्मी पैदा हुई थी
दो साथी भी जीवित थे
इसके बाद यामागुची मित्सुबिशी शिपयार्ड के बचे हुए हिस्से की ओर बढ़े. वहां, उन्हें अपने कलीग अकीरा इवानागा और कुनियोशी सातो मिले. ये दोनों भी विस्फोट से बच गए थे. एक परमाणु हमले के बाद एक बेचैन रात बिताने के बाद, वे लोग 7 अगस्त को जागे और रेलवे स्टेशन की ओर चले दिए. उन्होंने सुना था कि ट्रेन किसी तरह अभी भी चल रही थी.
लाशों की परत के बीच तैरकर निकले
शहर के कई पुल टेढ़े-मेढ़े मलबे में तब्दील हो गए थे और एक नदी पार करने के लिए यामागुची को शवों की एक परत के बीच तैरने के लिए मजबूर होना पड़ा. स्टेशन पहुंचने पर, वह जले हुए और हतप्रभ यात्रियों से भरी एक ट्रेन में चढ़ गए और अपनी नागासाकी की यात्रा पर निकल पड़े. उनकी ट्रेन उन्हें आग, टूटी हुई इमारतों और सड़कों पर जली हुई और पिघली हुई लाशों के भयानक नजारों से होकर ले गई.
'हालत ऐसी थी कि मां भूत समझकर डर गई'
यामागुची 8 अगस्त को सुबह-सुबह नागासाकी पहुंचे और लंगड़ाते हुए अस्पताल पहुंचे. जिस डॉक्टर ने उसका इलाज किया वह उनके ही स्कूल का पूर्व सहपाठी था, लेकिन यामागुची के हाथों और चेहरे पर काले घाव इतने गंभीर थे कि वह व्यक्ति पहले तो उन्हें पहचान ही नहीं पाया. यामागुची अपनी पत्नी और बच्चे के पास लौट आए. जब वह पट्टियों में लिपटा हुआ घर लौटे, तो उनकी माँ उन्हें भूत समझकर डर गई.
'एक बम पूरा शहर कैसे खत्म कर देगा?'
बुरी हालत में होने के बावजूद, यामागुची ने 9 अगस्त की सुबह खुद को बिस्तर से बाहर निकाला और मित्सुबिशी के नागासाकी कार्यालय में काम के लिए पहुंचे. सुबह लगभग 11 बजे, उनकी कंपनी के निदेशक के साथ बैठक हुई. उन्होंने हिरोशिमा में काम की पूरी रिपोर्ट की मांग की थी. इंजीनियर ने 6 अगस्त की बिखरी हुई घटनाओं के बारे में बताया कि कैसे आखिरी दिन उन्होंने चकाचौंध कर देने वाली रोशनी देखी और बहरा कर देने वाले धमाके को सुना. लेकिन किसी ने उनका भरोसा नहीं किया कि एक अकेला बम पूरे शहर को कैसे नष्ट कर सकता है?
'इस बार परमाणु हमला नागासाकी पर हुआ'
यामागुची उन लोगों को समझाने की कोशिश कर ही रहे थे, कि तभी बाहर तेज रौशनी के साथ जोरदार धमाका हुआ. यामागुची जमीन पर गिर पड़े, कमरे के शीशे टूट गए और सारा मलबा अंदर आ गया. बाद में उन्होंने अखबार द इंडिपेंडेंट को बताया, "मुझे लगा कि मशरूम का बादल हिरोशिमा से ही मेरा पीछा कर रहा है." दरअसल इस बार परमाणु हमला नागासाकी पर हुआ था.
'सुरंग में छुप गए थे पत्नी और बच्चा'
नागासाकी पर गिरा परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से भी अधिक शक्तिशाली था. यामागुची की पट्टियां फट गई थीं, और वह कैंसर पैदा करने वाले रेडिएशन की चपेट में आ गया, लेकिन कमाल है कि उन्हें कुछ नहीं हुआ. उन्होंने तीन दिनों में दूसरी बार परमाणु विस्फोट का सामना किया था.
वे भागकर अपनी पत्नी और बेटे के पास पहुंचे, यहां उन्होंने देखा कि घर का एक हिस्सा मलबे में तब्दील हो गया है तो उन्हें अनहोनी की आशंका हुई, लेकिन उनका परिवार ठीक था और उन्हें थोड़ी चोटें आई हैं. जब विस्फोट हुआ तब उनकी पत्नी ने एक सुरंग में शरण ले ली थी. यह भाग्य का एक और अजीब मोड़ था. यदि यामागुची को हिरोशिमा में चोट नहीं लगी होती, तो उनका परिवार इस तरह सतर्क न हो पाता और नागासाकी में मारा जाता.
'बर्बादी की ऐसी बारिश के लिए तैयार रहे जापान'
विस्फोट के सोलह घंटे बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने एक भाषण दिया जिसमें पहली बार परमाणु बम के बारे में का पता चला. विस्फोट में लगभग 80,000 लोग तुरंत मारे गए थे, और उसके बाद के हफ्तों में हजारों लोग मारे गए. ट्रूमैन ने अपने बयान में चेतावनी दी कि यदि जापान ने आत्मसमर्पण नहीं किया, तो वह हवा से बर्बादी की ऐसी बारिश के लिए तैयार रहे, जैसी इस धरती पर कभी नहीं देखी गई.
घाव खतरनाक हो गए और लगातार उल्टियां होने लगीं
इसके बाद के दिनों में, यामागुची पर रेडिएशन का असर दिखने लगा. उसके बाल झड़ गए, उसकी बांहों पर घाव खतरनाक हो गए और उसे लगातार उल्टियां होने लगीं. 15 अगस्त को जब जापान के सम्राट हिरोहितो ने एक रेडियो प्रसारण में देश के आत्मसमर्पण की घोषणा की, तब भी वह अपने परिवार के साथ एक बम आश्रय स्थल में बंद थे. यामागुची ने बाद में द टाइम्स को बताया, "मुझे जिंदा बच जाने के बारे में कोई एहसास नहीं था. मुझे न तो खेद था और न ही खुशी. मैं बुखार से गंभीर रूप से बीमार था, लगभग कुछ भी नहीं खा रहा था, यहाँ तक कि मुश्किल से पानी पी भी रहा था. मुझे लगा कि मैं मरने वाला हूं.''
दशकों तक यामागुची ने किसी को नहीं बताई दास्तान
फिर भी रेडिएशन रिस्क के इतने सारे पीड़ितों से उलट यामागुची धीरे-धीरे ठीक हो गए और सामान्य जीवन जीने लगे. उन्होंने जापान पर कब्जे के दौरान अमेरिकी सशस्त्र बलों के लिए अनुवादक के रूप में काम भी किया और बाद में मित्सुबिशी में अपना इंजीनियरिंग करियर फिर से शुरू करने से पहले स्कूल में पढ़ाया.
1950 के दशक में उनके और उनकी पत्नी के दो और बच्चे भी हुए, जिनमें से दोनों लड़कियां थीं. यामागुची ने कविता लिखकर हिरोशिमा और नागासाकी की भयावह यादों को भुलाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने 2000 के दशक तक उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने अनुभवों पर कोई चर्चा नहीं की.
93 साल की उम्र में निधन
वह परमाणु हथियार विरोधी आंदोलन का हिस्सा बन गए. बाद में उन्होंने 2006 में न्यूयॉर्क की यात्रा की और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष परमाणु निरस्त्रीकरण के बारे में बात की. उन्होंने अपने भाषण में कहा, "दो बार परमाणु बमबारी का अनुभव करने और बच निकलने के बाद, इसके बारे में बात करना मेरी नियति है." साल 2010 में 93 साल की उम्र में त्सुतोमु यामागुची की मृत्यु हुई.