मणिपुर में पिछले 58 दिनों से जारी हिंसा का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इस समय बीजेपी सरकार पर हमला कर रहा है और सीएम बीरेन सिंह से इस्तीफा मांगा जा रहा है. विपक्ष के हमले के बीच मुख्यमंत्री बीरेन सिंह दोपहर तीन बजे राज्यपाल से मुलाकात करेंगे. मणिपुर के सीएम राज्यपाल से मिलकर मौजूदा हालात को लेकर ब्रीफ करेंगे.
इस बीच सीएम बीरेन सिंह के आधिकारिक आवास के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है क्योंकि सैकड़ों महिलाएं इलाके में मार्च कर रही हैं और विरोध में बैठी हैं. वे नारे लगा रहे हैं कि सीएम को पद नहीं छोड़ना चाहिए. सूत्रों के हवाले से ख़बर हैं मणिपुर में शांति के लिए कुकी समाज और मैतेई समाज से बैक चैनल के माध्यम बातचीत शुरू की जायेगी.
राज्यपाल अनसुइया उईके से जल्द ही कुकी समुदाय के प्रतिनिधि, विधायक, सिविल सोसायटी के लोग मिलेंगे. सूत्रों की माने तों बैक चैनल के माध्यम सीएम बीरेन सिंह मैतेई समाज के वरिष्ठ लोगों, विधायकों और सिविल सोसायटी के लोगों से मिलेंगे. वहीं विपक्ष का कहना है कि मुख्यमंत्री राज्य में हिंसा का दौर रोकने में पूरी तरह विफल रहे हैं लिहाजा उन्हें तुरंत इस्तीफा देना चाहिए और केंद्र को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर देना चाहिए.
शनिवार को शाह से मिले थे सीएम
दूसरी तरफ कांग्रेस नेता दो दिन से मणिपुर के दौरे पर हैं और लगातार राहत शिविरों में जाकर प्रभावितों से मुलाकात कर रहे हैं. हालांकि बीजेपी राहुल के दौरे को राजनीतिक से प्रायोजित बता रही है. विपक्ष के हमले के बीच रविवार को ही सीएम एन बीरेन सिंह ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. इसके बाद चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया था. शनिवार को ही मणिपुर की स्थिति को लेकर गृहमंत्री शाह ने 18 पार्टियों के साथ सर्वदलीय बैठक की थी. बैठक में सपा और आरजेडी ने मणिपुर के सीएम बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग की थी. साथ ही मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने की भी मांग की थी.
गृहमंत्री अमित शाह से हुई मुलाकात को लेकर सीएम बीरेन सिंह ने ट्वीट किया है. उसमें लिखा है कि आज गृहमंत्री अमित शाह से नई दिल्ली में मुलाकात कर मणिपुर में जमीनी स्तर पर बनी स्थिति के बारे में जानकारी दी. अमित शाह जी की कड़ी निगरानी में, राज्य और केंद्र सरकार पिछले सप्ताह में हिंसा को काफी हद तक सक्षम रही है. बीरेन सिंह ने अपने ट्वीट में आगे लिखा है कि माननीय केंद्रीय गृहमंत्री ने आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार मणिपुर में शांति बनाए रखने के लिए हर संभव कदम उठाएगी.
बीजेपी बहुमत से बनी थी सरकार
20222 में हुए विधानसभा चुनाव में मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में 32 सीट जीत कर बीजेपी ने सत्ता में वापसी की थी. बीजेपी 2017 में कांग्रेस की 28 सीटों की तुलना में सिर्फ 21 सीटें होने के बावजूद दो स्थानीय दलों - एनपीपी और एनपीएफ के साथ हाथ मिलाकर सरकार बनाने में सफल रही थी. हालांकि 2022 में बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा और राज्य की सत्ता पाने में कामयाब रही.
कौन है सीएम बीरेन सिंह
साल 1961 में मणिपुर के लुवांसंगबम ममंग लेइकाई में एक हिंदू परिवार में जन्मे बीरेन सिंह को बचपन से ही फुटबॉल में दिलचस्पी थी. जब वह 18 साल के थे, तब मणिपुर की राजधानी इंफाल में एक मैच के दौरान सीमा सुरक्षा बलों (बीएसएफ) की फुटबॉल टीम में चुन लिए गए.वह राज्य के बाहर खेलने वाले मणिपुर के पहले खिलाड़ी थे. उन्होंने 1992 तक राज्य टीम के लिए खेलना जारी रखा. वह पूर्व फुटबॉलर खिलाड़ी होने के साथ पत्रकारिता से भी जुड़े रहे हैं.
बीरेन सिंह 2002 में डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपल्स पार्टी में शामिल हुए और हिंगांग से विधानसभा चुनाव जीते. 2003 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने 2007 में पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और हिंगांग से विधायक बन गए. 2012 में, उन्होंने तीसरी बार चुनाव जीता, लेकिन मौजूदा सीएम के खिलाफ सत्ता संघर्ष में शामिल थे. इबोबी सिंह को कैबिनेट से बाहर कर दिया गया था. अक्टूबर 2016 में बीरेन ने एक बार फिर जोखिम लिया और तमाम तरह के अंसतोष जाहिर करते हुए इबोबी सिंह सरकार और कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. अक्टूबर 2016 में ही वो आधिकारिक तौर पर भाजपा में शामिल हो गए. 2017 में, हिंगांग से अपनी सीट बरकरार रखी और वे भाजपा के गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बने वह मणिपुर में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं.
तीन मई से शुरू हुई थी हिंसा
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च' का आयोजन किया गया था, जिसके बाद हिंसा शुरू हो गई थी. राज्य की 53 फीसदी आबादी मैतेई समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और यह मुख्यत: पर्वतीय जिलों में रहती है.
ऐसे हुई थी शुरूआत
- तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई.
- इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे.
- तीन मई की शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.
- ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा मांग रहा है.
- 20 अप्रैल को मणिपुर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने एक आदेश दिया था. इसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. इसके लिए हाईकोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का समय दिया है.
- मणिपुर हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नगा और कुकी जनजाति समुदाय भड़क गए. उन्होंने 3 मई को आदिवासी एकता मार्च निकाला.
शांति के लिए अब तक क्या-क्या हुआ?
केंद्र सरकार ने मणिपुर में हो रही हिंसा की जांच के लिए 4 जून को एक आयोग का गठन किया था. आयोग की अध्यक्षता गुवाहाटी हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस अजय लांबा कर रहे हैं. गृह मंत्रालय के मुताबिक, ये आयोग तीन मई और उसके बाद मणिपुर में हुई हिंसा और दंगों के कारणों की जांच करेगा.
(नोट- इस खबर में अपडेट आने के बाद हेडलाइन और न्यूज को संशोधित किया गया है.)