मणिपुर में मैतेई समुदाय के अनुसूचित जनजाति के दर्जे को लेकर मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. बीजेपी नेता और मणिपुर पर्वत क्षेत्रीय परिषद के अध्यक्ष डिंगांगलुंग गंगमेई ने ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई है.
अर्जी में कहा गया कि हाईकोर्ट ने इस समस्या की असली जड़ नहीं समझी. ये सरकार का नीतिगत मुद्दा था. इसमें कोर्ट की कोई भूमिका नहीं थी. क्योंकि सरकार के आदेश से ये अनुसूचित जनजाति की केंद्रीय सूची में शामिल करवाने की संविधान सम्मत प्रक्रिया में कोर्ट का कोई जिक्र नहीं है. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में बुनियादी गलती की है. कई अन्य भूलें भी हाईकोर्ट के आदेश में हैं जो संवैधानिक प्रक्रिया के उलट हैं.
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाए जिसमें मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए अधिसूचना जारी करने का फरमान दिया गया है.
मणिपुर हिंसा में 54 लोगों की गई जान
आपको बता दें कि मणिपुर में बिगड़े माहौल के चलते कई लोगों की जान चली गई. न्यूज एजेंसी पीटीआई ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया कि मणिपुर अब तक 54 लोगों की जान जा चुकी है. पीटीआई ने बताया कि 54 मृतकों में 16 शव चुराचंदपुर जिला अस्पताल के मुर्दाघर में रखे गए हैं, जबकि 15 शव इम्फाल ईस्ट के जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान में हैं.
इसके अलावा इंफाल पश्चिम के लाम्फेल में क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान ने 23 लोगों के मरने की पुष्टि की है. हालात पर काबू पाने के लिए सेना और असम राइफल्स के करीब 10,000 सैनिकों को राज्य में तैनात किया गया है.
मणिपुर में कैसे शुरू हुई हिंसा? मैतेई और नगा-कुकी समुदाय क्यों है आमने-सामने? सवाल-जवाब में समझें सबकुछ...
कैसे शुरू हुई हिंसा?
- तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई.
- इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे.
- तीन मई की शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.