
मणिपुर हिंसा के एक साल बीतने के बाद भी अभी तक पूर्वोत्तर के इस राज्य में शांति बहाल नहीं हो सकी है. लगातार सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं. कई इलाकों में गोलीबारी हो रही है. आठ सितंबर को कांगपोकपी जिले के सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले के बाद से इंफाल की सड़कों पर जबरदस्त प्रदर्शन देखा जा सकता है. विष्णुपुर के मोइरांग इलाके में लोग डर के साए में जीने को मजबूर हैं.
इससे पहले छह सितंबर को इंफाल में मणिपुर राइफल्स की दो बटालियन दफ्तर के बाहर हथियार लूटने की कोशिश हुई. नौ सितंबर को छात्रों ने इंफाल की सड़कों पर प्रदर्शन मार्च निकाला तो मुख्यमंत्री समेत राज्यपाल के घर का घेराव करने की कोशिश की. एक सितंबर को पश्चिमी इंफाल पर ड्रोन से हमला हुआ तो छह सितंबर को हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित विष्णुपुर जिले में आरपीजी से हमला किया गया.
विष्णुपुर जिले के मोइरांग इलाके में आरपीजी से हमला हुआ था, जिससे रॉकेट मणिपुर के पहले मुख्यमंत्री एम कोईरांग के आवास पर गिरा, जहां एक व्यक्ति की मौत हो गई. यह धमाका इतना तीव्र था कि दीवारों पर रॉकेट के टुकड़े टूटकर जहां-तहां बिखर गए.
पूर्व सीएम कोईरांग के पोते केल्विन ने आज तक को बताया कि उन्होंने सुपरसोनिक धमाके की आवाज सुनी और धमाके से ठीक पहले वह घर के दूसरे हिस्से में चले गए थे. अगर ऐसा नहीं होता तो मरने वालों में उनका नाम भी शामिल होता.
बता दें कि मोइरांग का इलाका विष्णुपुर जिले में पहाड़ी इलाकों से 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर है. इतनी दूरी पर मारे गए रॉकेट से पता चलता है कि मणिपुर में अब किस तरह के हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है.
मोइरांग से तीन किलोमीटर आगे विष्णुपुर जिले के त्रंगलाबी गांव में छह सितंबर की सुबह 4:30 बजे यहां भी तगड़ा धमाका हुआ और. हमले की तीव्रता इतनी ज्यादा थी कि घर के पीछे बने शौचालय की पूरी दीवार धराशाई हो गई और रॉकेट के टुकड़े आसपास की दीवारों पर देखे गए. सुबह का समय होने की वजह से परिवार के ज्यादातर लोग घर की सुरक्षित जगह सो रहे थे, जिसे रॉकेट भेद नहीं पाया लेकिन जो हिस्सा कमजोर था वहां रॉकेट के निशान दिखाई दे रहे हैं.
एक स्थानीय निवासी प्रिया बताती हैं कि जब धमाका हुआ तो डर से सब उठ गए. दहशत आज भी कायम है क्योंकि यह नहीं पता कि ऐसा हमला फिर कब हो जाए.
बता दें कि पिछले 16 महीने से मणिपुर के लोग शांति बहाली का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि जीवन ठप्प हो चुका है. आजीविका का साधान पूरी तरह से ठप है. भविष्य संकट में है और चिंता जीवन बचाने की है. प्रिया बताती हैं कि यहां के लोग मानसिक ट्रॉमा में हैं और आर्थिक रूप से पूरी तरह तबाह हो चुके हैं क्योंकि ना सरकार हिंसा रोक पा रही है ना प्रभावित इलाकों में लोगों की मदद कर पा रही है. वह पूछती हैं कि हम इस हालत में कब तक जिएंगे?
क्यों नहीं थम रही है हिंसा
सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर मणिपुर में हिंसा थम क्यों नहीं रही है? इसके कई कारण हैं. आसान भाषा में समझें तो ये पूरी लड़ाई दो जातीय समूह कुकी और मैतई के बीच की है. ज्यादार मैतई समुदाय के लोग घाटी में रहते हैं और वहीं कुकी समुदाय के लोग पहाड़ों पर रहते हैं. हिंसा के बाद तो इन दोनों समुदायों का एक-दूसरे के स्थानों पर जाना बिलकुल बंद सा है. यही अलगाव हिंसा न थमने का एक बड़ा कारण भी है.
दोनों की अलग-अलग लोकेशन होने के चलते पूरा इलाका एक सरहद में बदल गया है. रिपोर्ट के अनुसार, दोनों ने अपने लिए सेफ बंकर बना लिए हैं. भारी मात्रा में हथियार दोनों के पास ही मौजूद हैं. जिससे जब मौका मिलता है तब वो एक-दूसरे पर हमला करते हैं और फिर बंकर में छिप जाते हैं. घाटी और पहाड़ी होने के चलते उन्हें रोक पाना भी मुश्किल हैं.