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मणिपुर में हथियारबंद समूह बने बड़ा खतरा, 48 दिन बाद भी क्यों नहीं थम रही हिंसा? अब तक 100 मौतें, हजारों लोग शिविरों में

मणिपुर में करीब 50 दिन से हिंसा जारी है. उग्रवादी अब नेताओं को अपना निशाना बना रहे हैं. अब तक हुई हिंसा में 100 से भी ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, सैकड़ों लोग जख्मी हो चुके हैं. हजारों ने घरों को आग लगा दी गई है. हालांकि हिंसा पर काबू पाने के लिए 10 हजार से भी ज्यादा सुरक्षाबलों को तैनात किया गया है. हिंसा फैलाने वाले सरेंडर भी कर रहे हैं लेकिन इन सब के बाद भी हिंसा नहीं रुक रही है.

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मणिपुर में 3 मई से जारी है हिंसा (फाइल फोटो)
मणिपुर में 3 मई से जारी है हिंसा (फाइल फोटो)

मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच 3 मई से शुरू हुई हिंसा अब भी जारी है. वहां हिंसक झड़पों में अब तक 100 से भी ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है. 10 हजार घर जलाए जा चुके हैं. 4100 से ज्यादा आगजनी की घटनाओं को दर्ज किया जा चुका है. डर के कारण हजारों लोग पलायन कर चुके हैं. सैकड़ों लोग तो मिजोरम और असम भाग गए हैं. करीब 50 हजार लोगों को राहत शिविरों में रखा गया है.

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केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री आरके रंजन का घर तक फूंक डाला गया. शांति बहाल करने के लिए कई बार प्रयास किए जा चुके हैं लेकिन हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं. सरकार और सरकारी तंत्र की कोई सुनने को तैयार नहीं है. केंद्रीय सशस्त्र बल की 84 कंपनियों को राज्य में तैनात किया गया है, असम राइफल्स के भी 10 हजार से ज्यादा जवान तैनात हैं, लेकिन सड़कों पर भारी सैन्य बल होने के बाद भी स्थिति बिगड़ती जा रही है. 

मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह ने एक बार फिर हथियारों से लैस लोगों से हमला न करने की अपील की है. उन्होंने कहा- वे किसी पर हमला न करें, शांति बनाकर रखें ताकि हम राज्य में सामान्य स्थिति बहाल कर सकें. हालांकि उन्होंने चेतावनी भी दी कि अगर बात नहीं मानी तो परिणाम भुगतने तैयार रहें. इसके अलावा सीएम ने कहा कि हिंसा के डर से अपने घरों छोड़कर भागे लोगों को बसाने के लिए उनके सरकार तीन से चार हजार प्री-फैब्रिकेटेड घरों का निर्माण करेगी, इन घरों का निर्माण दो महीने में हो जाएगा.

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मणिपुर हिंसा

SC पहुंचा मणिपुर में हिंसा का मामला

मणिपुर में हिंसा का मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कोर्ट में याचिका दाखिल कर आदिवासियों की सुरक्षा का इंतजाम सेना से कराने की गुहार लगाई गई है. मामले में शीघ्र सुनवाई के लिए मेंशन किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ ने तुरंत सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि यह मामला गंभीर है. मामला पूरी तरह से कानून व्यवस्था से जुड़ा हुआ है. लिहाजा फिलहाल सेना के दखल पर अदालत को आदेश जारी नहीं करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने तीन जुलाई को नियमित पीठ के आगे सुनवाई की जाने की बात कही.

सीनियर वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए गुहार लगा रहा हूं. सरकार के सुरक्षा सुनिश्चित करने के एलान और आश्वासन के बाद भी 70 आदिवासियों की हत्या हुई है. ऐसे में हम सेना के जरिए सुरक्षा निश्चित करने का आदेश जारी करने की अपील करते हैं. इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां ​​अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है. यह बात पहले भी पिछली याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान भी अदालत को बताई गई है. उस याचिका को गर्मी छुट्टियों के बाद सुनने के लिए सूचीबद्ध किया गया था. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि  यह कानून और व्यवस्था का गंभीर मुद्दा है. मुझे उम्मीद है कि कोर्ट को सेना के हस्तक्षेप आदि के लिए आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है.

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मणिपुर हिंसा

तो क्या इसलिए नहीं थम रहीं हिंसा

- केंद्रीय गृह मंत्री 29 मई को तीन दिन के दौरे पर इंफाल पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए विभिन्न मैतेई और कुकी समूहों से मुलाकात की थी. सूत्रों के मुताबिक दोनों समूहों ने आश्वासन दिया कि वे राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए काम करेंगे, लेकिन इसके बाद भी उग्रवादी समूह शांति बहाल के लिए तैयार नहीं हैं.

- जद(यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन ने मणिपुर हिंसा के लिए बीजेपी को दोषी माना है. उनका कहना है, ‘बीजेपी सरकार की लापरवाही और लचर रवैए से मणिपुर में हालात बेकाबू हो चुके हैं. कई दिनों से राज्य दो समुदायों के आपसी विवाद से जल रहा है. कई लोग मर चुके हैं और हजारों लोग, महिलाएं और बच्चे अपने घर-बार छोड़ अस्थायी टेंटों में रहने में विवश हैं. दूसरी तरफ सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है.’ अगर मणिपुर में भाजपा के अलावा किसी दूसरे दल की सरकार होती तो केंद्र कब का उसे बर्खास्त कर चुकी होती, लेकिन अपने नेताओं के भ्रष्टाचार और उनकी अकर्मण्यता बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को दिखायी नहीं देती.’

- एक हिंदी न्यजू पेपर ने दावा किया है कि CM एन बीरेन सिंह ने अपने इंटरव्यू में कहा है कि मणिपुर में फैली हिंसा के पीछे राज्य के बाहर से आए लोग, म्यांमार से आए जिम्मेदार हैं. यह कुकी-मैतेई की लड़ाई नहीं है, बल्कि म्यांमार से आए घुसपैठिए हिंसा फैला रहे हैं.

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मणिपुर हिंसा

हजारों लूटे हुए हथियार बरामद

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद उपद्रवियों ने सुरक्षा बलों से कई हथियार लूट लिए थे. इनमें से अब तक कुल 1,040 अत्याधुनिक हथियार, 230 जिंदा बम और कई तरह के 13,601 गोला-बारूद बरामद कर लिए गए हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले एक महीने में भीड़ ने करीब 4000 हथियार और 5 लाख राउंड कारतूस लूटे हैं.

कई जगह कर्फ्यू में ढील दी गई

मणिपुर में हिंसा के कारण कई इलाकों में सख्त पहरा है. इंटरनेट बैन भी है लेकिन कुछ जगहों में कर्फ्यू में छूट दी गई है. पिछले हफ्ते मणिपुर सरकार के सलाहकार (सुरक्षा) कुलदीप सिंह ने बताया था कि इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, थौबल और बिष्णुपुर जिलों में 15 घंटे, काकचिंग और फेरजावल जिलों में 12 घंटे और अन्य जिलों में 8 से 10 घंटे कर्फ्यू में ढील दी गई है. छह पहाड़ी जिलों में कर्फ्यू नहीं है.

पीएम मोदी हिंसा पर चुप क्यों?

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर निशाना साधा था. कांग्रेस नेता ने कहा था कि मणिपुर हिंसा के मामले में राज्य सरकार पूरी तरह से फैल हो गई है. गृह मंत्री अमित शाह भी मणिपुर गए थे, लेकिन इससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. कांग्रेस को भूल जाइए और अटल बिहारी वाजपेयी को ही याद कर लीजिए, ताकि मणिपुर में अमन-चैन वापस आ सके और शांति बहाल हो सके.

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उन्होंने कहा कि 22 साल पहले 18 जून 2001 को पहली बार मणिपुर जला था, तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब सभी दलों ने मांग की थी कि वो प्रधानमंत्री से मिलने चाहते हैं, अटल जी ने 6 दिन बाद ही सर्वदलीय मुलाकात की थी. 8 जुलाई को पीएम से दोबारा मुलाकात की गई थी. 8 जुलाई 2001 को अटलजी ने मणिपुर के लोगों से शांति की अपील की थी, लेकिन मौजूदा हालात में 40 दिन से ज्यादा बीत गए हैं, लेकिन पीएम मोदी ने अभी तक अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है. समान विचारधारा वाली 10 पार्टियां 10 जून से मणिपुर हिंसा के मामले में प्रधानमंत्री से मिलना चाह रही हैं.

मणिपुर हिंसा

NPP ने गठबंधन तोड़ने की दी चेतावनी

नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वाई जॉयकुमार सिंह ने 17 जून को कहा कि अगर आने वाले दिनों में स्थिति नहीं सुधरी तो हम बीजेपी के साथ अपने गठबंधन पर फिर से विचार करेंगे. एनपीपी बीजेपी के साथ अपने समीकरणों पर फिर से विचार करने को मजबूर हो जाएगी. हम मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकते.

उन्होंने कहा कि मणिपुर में अनुच्छेद 355 लागू है, इसलिए यहां के लोगों की सुरक्षा करना राज्य और केंद्र की जिम्मेदारी है लेकिन हिंसा से निपटने के लिए कोई उचित योजना नहीं बनाई जा रही है. फिलहाल हालात में सुधार के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं. प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था बिगड़ती जा रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के बावजूद हालात में कुछ खास बदलाव नहीं आया. 

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15 संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र को भेजा ज्ञापन

पंद्रह अलग-अलग संगठनों ने मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर संयुक्त राष्ट्र को एक ज्ञापन भेजा है. ज्ञापन में मांग की गई है कि यूएन स्थापित अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून के अनुसार हस्तक्षेप करे. इसके अलावा ज्ञापन में गरीबी, सैन्यीकरण, भारत के केंद्रीय सुरक्षा बलों की भूमिका और कुकी उग्रवादियों द्वारा ऑपरेशन ग्राउंड नियमों के लगातार उल्लंघन जैसे मुद्दों को उठाया गया है. 

मणिपुर हिंसा

ऐसे पूरे प्रदेश में फैल गई हिंसा

- तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई. 

- इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. 

- तीन मई की शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.

- ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है. 

- पिछले महीने मणिपुर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने एक आदेश दिया था. इसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. इसके लिए हाईकोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का समय दिया था. 

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- मणिपुर हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नगा और कुकी जनजाति समुदाय भड़क गए. उन्होंने 3 मई को आदिवासी एकता मार्च निकाला.

मणिपुर हिंसा

मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?

- मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है.

- राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.

- मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.

- पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.

मैतेई और कुकी समुदाय के क्या हैं तर्क?

- मैतेई समुदायः एसटी का दर्जा की मांग करने वाले संगठन का कहना है कि ये सिर्फ नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा नहीं है, बल्कि ये पैतृक जमीन, संस्कृति और पहचान का मसला है. संगठन का कहना है कि मैतेई समुदाय को म्यांमार और आसपास के पड़ोसी राज्यों से आने वाले अवैध प्रवासियों से खतरा है. ऑल मैतेई काउंसिल के सदस्य चांद मीतेई पोशांगबाम का दावा है कि कुकी म्यांमार की सीमा पार कर यहां आए हैं और मणिपुर के जंगलों पर कब्जा कर रहे हैं. उन्हें हटाने के लिए राज्य सरकार अभियान चला रही है. 

- कुकी समुदायः ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन नेहिसियाल ने बताया था, 'इस पूरे विरोध की वजह ये थी कि मैतेई अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहते थे. उन्हें एसटी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिला तो वो हमारी सारी जमीन हथिया लेंगे.' केल्विन का दावा था कि कुकी समुदाय को संरक्षण की जरूरत थी क्योंकि वो बहुत गरीब थे, उनके पास न स्कूल नहीं थे और वो सिर्फ झूम की खेती पर ही जिंदा थे.


 

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