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मणिपुर हिंसा पर एक्शन मोड में केंद्र सरकार, तीन सदस्यों की टीम इम्फाल भेजी

एके मिश्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति 22 जनवरी को शाम लगभग 5.45 बजे इम्फाल पहुंची. इस समिति में नगा शांति वार्ता के मध्यस्थ एके मिश्रा के अलावा एसआईबी के ज्वॉइंट डायरेक्टर के मंदीद सिंह तुली और एसआईबी इम्फाल के ज्वॉइंट डायरेक्टर राजेश कुंबले शामिल हैं.

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मणिपुर में हिंसा
मणिपुर में हिंसा

मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा के मद्देनजर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तीन सदस्यीय टीम इम्फाल भेजी है. एके मिश्रा की अध्यक्षता में ये टीम मणिपुर की जमीनी स्थिति का आकलन करेगी.

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सूत्रों का कहना है कि एके मिश्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति 22 जनवरी को शाम लगभग 5.45 बजे इम्फाल पहुंची. इस समिति में नगा शांति वार्ता के मध्यस्थ एके मिश्रा के अलावा एसआईबी के ज्वॉइंट डायरेक्टर के मंदीद सिंह तुली और एसआईबी इम्फाल के ज्वॉइंट डायरेक्टर राजेश कुंबले शामिल हैं.

इम्फाल पहुंचने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीम ने मणिपुर के जातीय समूह के एक धड़े के साथ पहली बैठक  की. यह प्रतिनिधिमंडल बाद में मणिपुर के मेतेई सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन अरामबाई तंगोल से मुलाकात करेंगे. यह प्रतिनिधिमंडल मणिपुर में एक बार फिर भड़की हिंसा के बाद यहां पहुंचा है. बीती 17 जनवरी को भड़की हिंसा में दो पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी जबकि कई घायल हो गए थे.  

बता दें कि मणिपुर बीते आठ महीनों से हिंसा की आग में जल रहा है. यहां रह-रहकर हिंसा की घटनाएं लगातार हो रही हैं. हिंसा रोकने के लिए सरकार ने जिन सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया है, उपद्रवी उन पर भी हमला कर रहे हैं. हाल में मोरेह शहर में सुरक्षा चौकी पर हुए हमले में आईआरबी के दो जवानों की मौत हो चुकी है.

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मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?  

मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है. राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.  

मणिपुर में कानून बना हिंसा की जड़?  

मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं. पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके में है. 

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