मणिपुर हिंसा के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदी वाला की पीठ मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगी. अर्जी में हिंसा ग्रस्त इलाकों में बेघर हुए मैतेई जनजाति के लोगों के पुनर्वास के लिए समुचित इंतजाम करने का आदेश देने की भी अपील की गई है.
इस हिंसा में अब तक 54 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, 100 से ज्यादा लोग घायल हैं. बताया जा रहा है कि यहां राशन, सब्जी और दवाइयों जैसी मूलभूत चीजें भी मिलना मुश्किल हो गई हैं. अगर मिल रही हैं तो उसके लिए दोगुनी-तीगुनी कीमत चुकानी पड़ रही है. कहा जा रहा है कि लोगों को एक लीटर पेट्रोल के लिए 200 रुपए तक चुकाने पड़ रहे हैं.
मणिपुर की राजधानी इंफाल की बात की जाए तो सोमवार को इंफाल के थंगल बाजार इलाके में कर्फ्यू में ढील दी गई. इस दौरान लोग जरूरी सामान खरीदने के लिए अपने घरों से बाहर निकले. एजेंसी के मुताबिक 54 मृतकों में 16 शव चुराचंदपुर जिला अस्पताल के मुर्दाघर में रखे गए हैं, जबकि 15 शव इम्फाल ईस्ट के जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान संस्थान में हैं. इसके अलावा इंफाल पश्चिम के लाम्फेल में क्षेत्रीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान ने 23 लोगों के मरने की पुष्टि की है. हालांकि, प्रशासन सिर्फ 37 लोगों की मौत की पुष्टि कर रहा है. मणिपुर में हिंसाग्रस्त इलाकों से अब तक 23,000 लोगों को निकालकर सैन्य छावनियों में ले जाया गया है.
कैसे हुई विवाद की शुरुआत?
बता दें कि मैतेई समुदाय की ओर से मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इसमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का मुद्दा उठाया गया था. याचिका में दलील दी गई थी कि 1949 में मणिपुर भारत का हिस्सा बना था. उससे पहले तक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था, लेकिन बाद में उसे एसटी लिस्ट से बाहर कर दिया गया.
हाई कोर्ट ने कहा था- मांग पर हो विचार
शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी मणिपुर (STDCM) ने हाई कोर्ट में दलील दी कि 29 मई 2013 को केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से मैतेई या मीतेई समुदाय से जुड़ी सामाजिक-आर्थिक जनगणना और एथनोग्राफिक रिपोर्ट्स मांगी थी, लेकिन राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. इसी पर मणिपुर हाई कोर्ट ने 20 अप्रैल को राज्य सरकार को आदेश दिया कि वो चार हफ्तों के अंदर मैतेई समुदाय की ओर से एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करे.
रैली के दौरान हुई थी झड़प
इसके विरोध में तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला था. इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई थी. इसके बाद हालात इतने बिगड़ गए कि कई जिलों में कर्फ्यू लगाना पड़ा गया. इंटरनेट और ब्रॉडबैंड बैन कर दिया गया. सेना और अर्ध सैनिक बलों की 54 टुकड़ियां तैनात कर दी गईं. मैतेई मणिपुर की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. इसके अलावा मणिपुर की आबादी में नागा और कुकी आदिवासी आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा है, जो पहाड़ी जिलों में रहते हैं.