संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने केंद्र के अनुरोध पर नौकरशाही में ‘लेटरल एंट्री’ भर्ती के लिए जारी अपना विज्ञापन तीन दिन पहले रद्द कर दिया था. कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों द्वारा ‘लेटरल एंट्री’ भर्ती का विरोध किए जाने के बीच एक तथ्य पर किसी का ध्यान नहीं गया, वो है मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लेटरल एंट्री पर लाया गया प्रस्ताव.
दरअसल, छठे केंद्रीय वेतन आयोग (सीपीसी) की सिफारिश पर काम करते हुए, मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यालय ने जनवरी 2011 में संयुक्त सचिव स्तर पर 10% पदों को लेटरल एंट्री के जरिए भरने का प्रस्ताव दिया था.
मनमोहन सिंह भी थे समर्थक!
इसका मतलब यह हुआ कि तब मनमोहन सरकार खुद ऐसा मानती थी कि इस लेटरल भर्ती के जरिए कम समय में जरूरी नियुक्तियां की जा सकती हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रिकॉर्ड से पता चलता है कि इस संबंध में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के एक नोट में कहा गया था कि लेटरल आवदेक (lateral entrants) का चयन “यूपीएससी द्वारा उनके बायोडाटा और साक्षात्कार/सीमित प्रतिस्पर्धी परीक्षा के आधार पर किया जाएगा.”
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छठे वेतन आयोग ने तकनीकी या विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता वाले कुछ पदों की पहचान करने की सिफारिश की थी, जो किसी भी सरकारी सेवा में नहीं हैं. सिफारिश की गई थी कि अनुबंध पर उपयुक्त उम्मीदवारों से पदों को भरा जाना चाहिए.
करीब दो साल बाद, जून 2013 में, रिकॉर्ड से पता चलता है कि डीओपीटी के व्यय विभाग और संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने वेतन आयोग की सिफ़ारिश की जांच की थी. UPSC ने "अपने अधिदेश के अनुसार चयन करने" पर सहमति जताई.
मंत्रालयों ने दी ठंडी प्रतिक्रिया
DoPT के रिकॉर्ड में कहा गया था चयन पद्धति "पूरा प्रस्ताव उपलब्ध होने के बाद ही तैयार की जाएगी." इसके बाद, लेटरल एंट्री प्रस्ताव पर एक कॉन्सेप्ट नोट प्रसारित किया गया और विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से विशेष नॉलेज (specialised knowledge) की जरूरत वाले पदों की पहचान करने के लिए कहा गया.
2013 के कॉन्सेप्ट नोट को जून 2014 में फिर से सर्कुलेट किया गया, लेकिन आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, "बहुत कम" जवाब मिले और प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका. इसके बाद 2017 में फिर यही लेटरल एंट्री वाला मुद्दा सुर्खियों में आया.
2018 में फिर हुई चर्चा
आधिकारिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि 28 अप्रैल, 2017 को पीएमओ की बैठक में लेटरल एंट्री योजना पर चर्चा की गई थी. शुरूआती निर्णय यह था कि इसे यूपीएससी के दायरे से बाहर रखा जाए और लेटरल भर्ती प्रक्रिया का संचालन किया जाए. विज्ञापन को अंतिम रूप से लेकर कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) के लिए उम्मीदवारों की सिफारिश का जिम्मा कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति को दिया गया.
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कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली चयन समिति को लेटरल एंट्री के लिए संयुक्त सचिवों का चयन करना था. यह कहा गया था कि उप सचिवों/निदेशकों के पैनल का नेतृत्व गृह, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) और वित्त के प्रभारी तीन सचिवों में से सबसे वरिष्ठ अफसर करेगा.
मोदी सरकार ने 2018 में किया यह फैसला
हालांकि, 11 मई, 2018 को डीओपीटी के एक अधिकारी ने कहा कि अगर इन पदों को इस तरह से भरा जाना है तो यूपीएससी (परामर्श से छूट) विनियमन में संशोधन करना होगा, यानि नियमों में बदलाव करना होगा. बाद में एक साल के भीतर पुनर्विचार किया गया और सरकार ने लेटरल एंट्री भर्ती को यूपीएससी को ही सौंपने का फैसला किया.
1 नवंबर, 2018 को यूपीएससी ने कहा कि वह एक बार में एक उम्मीदवार की सिफारिश करेगा और प्रत्येक पद के लिए दो अन्य नामों को आरक्षित सूची में रखेगा. इसमें आगे स्पष्ट किया गया: "चयन की इस प्रक्रिया को एक बार का मामला माना जा रहा है, न कि हर साल जारी रहने वाली एक नियमित प्रक्रिया."
कब आया लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सबसे पहले लेटरल एंट्री कॉन्सेप्ट लेकर आयी थी. साल 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (Admin Reforms Commission) का गठन किया गया और वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली इस आयोग के अध्यक्ष थे. ‘कार्मिक प्रशासन का नवीनीकरण-नई ऊंचाइयों को छूना’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में आयोग की एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि उच्च सरकारी पदों जिसके लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है, उन पर लेटरल एंट्री शुरू की जाए.