मराठा आरक्षण को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सर्वोच्च अदालत ने शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. अदालत के फैसले के अनुसार, अब किसी भी नए व्यक्ति को मराठा आरक्षण के आधार पर कोई नौकरी या कॉलेज में सीट नहीं दी जा सकेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मराठा समुदाय को कोटा के लिए सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित नहीं किया जा सकता है, यह 2018 महाराष्ट्र राज्य कानून समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है. कोर्ट ने कहा कि हम 1992 के फैसले की फिर से समीक्षा नहीं करेंगे, जिसमें आरक्षण का कोटा 50 फीसदी पर रोक दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन है. कोर्ट के इस फैसले से पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले किए गए दाखिले बने रहेंगे, पहले की सभी नियुक्तियों में भी छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. यानी पहले के दाखिले और नियुक्तियों पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.
पांच जजों ने तीन अलग-अलग फैसला दिया, लेकिन सभी ने माना की मराठा समुदाय को आरक्षण नहीं दिया जा सकता, आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है, आरक्षण सिर्फ पिछड़े वर्ग को दिया जा सकता है, मराठा इस कैटेगरी में नही आते हैं, राज्य सरकार ने इमरजेंसी क्लॉज के तहत आरक्षण दिया था, लेकिन यहां कोई इमरजेंसी नहीं था.
आपको बता दें सुप्रीम कोर्ट की इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के अलावा न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट शामिल हैं, जिन्होंने आज फैसला सुनाया है.
क्या है आरक्षण का गणित
विभिन्न समुदायों व आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिए गए आरक्षण को मिलाकर महाराष्ट्र में करीब 75 फीसदी आरक्षण हो गया है. 2001 के राज्य आरक्षण अधिनियम के बाद, महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 52% था. 12-13% मराठा कोटा के साथ राज्य में कुल आरक्षण 64-65% हो गया था. केंद्र द्वारा 2019 में घोषित आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा भी राज्य में प्रभावी है.