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अयोध्या हुआ...अब काशी-मथुरा की बारी है? ये सवाल इसलिए क्योंकि काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का मामला सुर्खियों में था. इसी बीच मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद भी चर्चा में आ गया है. मथुरा विवाद में भी स्थानीय अदालत में एक वाद दायर किया गया है, जिसमें ईदगाह मस्जिद का सर्वे कराने की मांग की गई है.
काशी और मथुरा का विवाद भी कुछ-कुछ अयोध्या की तरह ही है. हिंदुओं का दावा है कि काशी और मथुरा में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाकर वहां मस्जिद बनवाई थी. औरंगजेब ने 1669 में काशी में विश्वनाथ मंदिर तुड़वाया था और 1670 में मथुरा में भगवा केशवदेव का मंदिर तोड़ने का फरमान जारी किया था. इसके बाद काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई.
मथुरा में इस विवाद की चर्चा पिछले साल तब शुरू हुई थी, जब अखिल भारत हिंदू महासभा ने ईदगाह मस्जिद के अंदर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करने और उसका जलाभिषेक करने का ऐलान किया था. हालांकि, हिंदू महासभा ऐसा कर नहीं सकी थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश चुनाव में 'मथुरा की बारी है...' जैसे नारे भी खूब चले.
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के बारे में यहां जानें
लेकिन ये विवाद है क्या?
- इस पूरे विवाद की कहानी 1670 से शुरू होती है. मुगल शासक औरंगजेब ने 1670 में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया. जिस मंदिर को ध्वस्त किया गया, उसे 1618 में बुंदेला राजा यानी ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने 33 लाख मुद्राओं में बनवाया था.
- मुगल दरबार आने वाले इटालियन यात्री निकोलस मनुची ने अपनी किताब 'Storia do Mogor' यानी 'मुगलों का इतिहास' में बताया है कि कैसे रमजान के महीने में श्रीकृष्ण जन्मस्थान को ध्वस्त किया गया और वहां ईदगाह मस्जिद बनाने का फरमान जारी हुआ.
- मुगलों का राज होने की वजह से यहां हिंदुओं के आने पर रोक लगा दी गई. नतीजा ये हुआ कि 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई. इसमें मराठाओं की जीत हुई. इसके बाद वहीं पर मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण किया.
13.37 एकड़ जमीन को लेकर है विवाद
- मराठाओं ने ईदगाह मस्जिद के पास ही 13.37 एकड़ जमीन पर भगवान केशवदेव यानी श्रीकृष्ण का मंदिर बनवाया. लेकिन धीरे-धीरे ये मंदिर भी जर्जर होता चला गया. कुछ सालों बाद आए भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया और जमीन टीले में बदल गई.
- 1803 में अंग्रेज मथुरा आए और 1815 में उन्होंने कटरा केशवदेव की जमीन को नीलाम कर दिया. इसी जगह पर भगवान केशवदेव का मंदिर था. बनारस के राजा पटनीमल ने इस जमीन को खरीदा. बताया जाता है कि उन्होंने ये जमीन 1,410 रुपये में खरीदी थी.
- राजा पटनीमल इस जगह पर फिर से भगवान केशवदेव का मंदिर बनवाना चाहते थे, लेकिन वो ऐसा नहीं कर सके. 1920 और 1930 के दशक में जमीन खरीद को लेकर विवाद शुरू हो गया. मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि अंग्रेजों ने जो जमीन बेची, उसमें कुछ हिस्सा ईदगाह मस्जिद का भी था.
- फरवरी 1944 में उद्योगपति जुगल किशोर बिरला ने राजा पटनीमल के वारिसों से ये जमीन साढ़े 13 हजार रुपये में खरीद ली. आजादी के बाद 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना और ये 13.37 एकड़ जमीन कृष्ण मंदिर के लिए इस ट्रस्ट को सौंप दी गई.
फिर हुआ 1968 का विवादित का समझौता
- अक्टूबर 1953 में मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ और 1958 में पूरा हुआ. इस मंदिर के लिए उद्योगपतियों ने चंदा दिया. ये मंदिर शाही ईदगाह मस्जिद से सटकर बनाया गया.
- 1958 में एक और संस्था का गठन हुआ, जिसका नाम श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान था. कानूनी तौर पर इस संस्था का 13.37 एकड़ जमीन पर कोई हक नहीं था.
- लेकिन 12 अक्टूबर 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया. इसमें तय हुआ कि 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे.
- इस समझौते को श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट नहीं मानता है. वो इस समझौते को धोखा बताता है. ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है.
लेकिन विवाद क्यों है?
- जैसा कि ऊपर बता चुके हैं कि हिंदुओं का दावा है कि यहां मंदिर था, जिसे औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी. हिंदुओं का मानना है कि जिस जगह पर ईदगाह मस्जिद को बनाया गया है, ये वही जगह है जहां कंस की जेल हुआ करती थी.
- हिंदू पक्ष का दावा है कि जहां पर ईदगाह मस्जिद बनी है, वहीं पर मथुरा के राजा कंस की जेल हुआ करती थी. इसी जेल में देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था. फिलहाल ये मामला कोर्ट में है. हिंदू पक्ष ने पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक देने की मांग की है.